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श्रीगंगानगर : सड़कों पर खिलौने बेच गाता है दर्द भरे गीत, गरीबी के बोझ तले दब रही है मखमली आवाज

श्रीगंगानगर का ईमान अली पूरी ईमानदारी और जिम्मेदारी से जिन्दगी की जद्दोजहद और अपने शौक को जी रही है। मुफलिसी किसी के जीने के अंदाज को खत्म नहीं कर सकती इसका जीता-जागता उदाहरण है ईमान अली। श्रीगंगानगर में जिला चिकित्सालय के सामने श्रीराम मंदिर के पीछे झुग्गी बस्ती में रहने वाले ईमान अली गजब के फनकार है जीवन की गरीबी को अपनी आवाज से अमीर बना लेते है।

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कहते है जस्बा हो तो सपना सच करने की हिम्मत आप में आ ही जाती है साइकिल पर फेरी लगाकर खिलौने बेचने वाला ये गीतकार अपने इलाके में किसी मंच का मोहताज नहीं है लेकिन इसकी गायकी देश-दुनिया में पहुंचे इस ख्वाइश के साथ ये अपने आप को मांझ रहा है जीवन में चुनौती कोई कमी नहीं लेकिन सपनों को पंख लगाने का हौसला ईमान अली को जिंदा दिल बनाए हुए है

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फटेहाल बस्ती में रहने वाले ईमान की आवाज में जादू है। लेकिन यह जादू चल नहीं रहा। वजह इतनी सी कि साइकिल पर फेरी लगाकर खिलौने बेचने वाले इस कलाकार को ऐसा कोई मंच नहीं मिला जो उसकी आवाज का जादू चला सके।ईमान की बस्ती में रहने वाले परिवार कभी जयपुर में बाईस गोदाम के आसपास रहते थे। रोजी-रोटी की तलाश में कई परिवार लगभग चार दशक पहले श्रीगंगानगर आए और पुश्तैनी काम जादू का खेल दिखाकर जीवनयापन करने लगे। सिर छुपाने को छत जयपुर में भी नसीब नहीं हुई और यहां आकर भी। अलबत्ता सरकारी योजनाओं का लाभ लेने के लिए जो आवश्यक दस्तावेज चाहिए, वह सब बने हुए हैं।

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पहचान को तरस रहे ईमान को गाने का शौक बचपन में ही लग गया। उसकी उम्र के दूसरे बच्चे जादू का खेल दिखाने के लिए सुबह होते ही पिता के साथ निकल जाते,वहीं ईमान अपनी झोंपड़ी बैठा रफी या किशोर के गाने गाता रहता। आवाज अच्छी थी सो घर वाले कभी उसके शौक में बाधा नहीं बने। उसकी उम्र के बच्चे सुबह होने पर रोटी का जुगाड़ करने के लिए जादू का खेल दिखाने के लिए निकल जाते, वहीं ईमान अपनी झोंपड़ी में बैठ कर रफी और किशोर के गीतों को गाकर सुर साधना करता। उम्र बढ़ी तो शादी हो गई। तब ईमान ने पुश्तैनी काम करने की बजाय साइकिल पर फेरी लगाकर खिलौने बेचने का काम पकड़ लिया।

संगीत की विधिवत शिक्षा लेने के लिए ईमान ने संगीत सिखाने वाले एक शिक्षक से संपर्क किया तो उन्होंने फीस बता दी। दिन भर फेरी लगाकर दो-ढाई सौ रुपए कमाने वाले ईमान के लिए फीस देना असंभव था, सो ऊपर वाले को ही गुरु मान सुर साधना शुरू कर दी। उसने हर उस गीत को गाया जिसे गाते हुए नवोदित गायकों के पसीने छूट जाते हैं। बिना किसी वाद्य यंत्र के ईमान जब गाता है तो मजाल है कि सुर भटक जाए। होठों से सीटी बजाकर वाद्य यंत्र की कमी को पूरी करते हुए जब वह गीत का अगला अंतरा गाता है तो सुनने वाला उसकी कला को दाद देने को मजबूर हो जाता है।

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ईमान कभी स्कूल नहीं गया। बावजूद इसके उसे अंग्रेजी के सभी अक्षरों का ज्ञान है। अपने गाने वह हिंगलिश में लिखता है। हिन्दी के अलावा पंजाबी, हरियाणवी, राजस्थानी और भोजपुरी गीत गाने वाले इस कलाकार को आज तक कोई मंच नहीं मिला। गाने के शौक को वह फेरी लगाकर खिलौने बेचते हुए तब पूरा कर लेता है जब कई बच्चे उसकी साइकिल को घेर लेते हैं। गाना सुनकर बच्चे भी खुश हो जाते हैं। उम्मीद का दामन थामे इस कलाकार का कहना है कि एक दिन उसे ऐसा मंच जरूर मिलेगा जो उसके सुरों को पहचान देगा। इस उम्मीद को बंधाए रखने में पत्नी शोभा भी मददगार है जो तंगहाली में भी उसे मंजिल मिलने का हौसला देती है।