होली की मस्ती व उल्लास के रंग में रंगे लोगों की सीमा गली व नुक्कड़ों तक ही सीमित रह गई है। यही कारण है कि खुशियों को दर्शाने वाले चंग की मांग दिनों दिन घट रही है। बाजार में कृत्रिम चंगों की उपलब्धता ने भी इसकी लोकप्रियता को कम करने में कोई कसर नहीं छोड़ी।