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क्या हुआ था कश्मीरी पंडितों के साथ?, 30 साल बाद भी खौफनाक दास्तां बयां करते समय छलके आंसू

locationजम्मूPublished: Jan 19, 2020 04:45:21 pm

Jammu Kashmir News: कश्मीरी पंडितों (Kashmiri Pandits) के पलायन की कहानी किसी से छिपी नहीं है, उस समय कट्टरपंथियों ने उनके पास तीन ही (Kashmiri Pandits Palayan) विकल्प छोड़े थे (Kashmiri Pandits History) ‘धर्म बदलो, मरो या करो पलायन’ (Kashmiri Pandits Exodus Story) …
 

क्या हुआ था कश्मीरी पंडितों के साथ?,खौफनाक दास्तां बयां करते समय छलके आंसू

क्या हुआ था कश्मीरी पंडितों के साथ?,खौफनाक दास्तां बयां करते समय छलके आंसू

(जम्मू,योगेश): ”हम आएंगे अपने वतन और यही पर दिल लगाएंगे, यही मरेंगे और यही के पानी में हमारी राख बहाई जाएगी।” विधु विनोद चोपड़ा की आने वाले फिल्म ”शिकारा” के इस डॉयलाग के साथ दूनियाभर के कश्मीरी पंडितों ने सोशल मीडिया पर एक कैंपेन शुरू कर दिया है। यह फिल्म दर्शाती है कि कश्मीर घाटी से कश्मीरी पंडितों का कैसे पलायन हुआ और उन्हें कितनी पीड़ा सहनी पड़ी। पलायन के 30 वर्ष पूरे होने पर रविवार को जम्मू में भी कश्मीरी पंडितों की जल्द वापसी की मांग उठी। यहां कश्मीरी पंडितों ने प्रदर्शन कर निर्वासन दिवस मनाया। प्रदर्शनकारियों का कहना था कि हम अपने ही देश में शरणार्थी की तरह रह रहे हैं, लेकिन किसी को हमारी चिंता नहीं है। उन्होंने यह भी कहा कि वह जल्द से जल्द कश्मीर लौटना चाहते हैं।

 

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बचे थे केवल तीन विकल्प—’धर्म बदलो, मरो या करो पलायन’

 

क्या हुआ था कश्मीरी पंडितों के साथ?,खौफनाक दास्तां बयां करते समय छलके आंसू

पलायन की कहानी किसी से छिपी नहीं है। कश्मीर में पाकिस्तान प्रायोजित आतंकी संगठन जम्मू—कश्मीर लिबरेशन फ्रंट (JKLF) और हिजबुल मुजाहिद्दीन समेत विभिन्न संगठनों ने 1988 में धीरे-धीरे अपनी गतिविधियां बढ़ाना शुरू कीं। 1990 की शुरुआत में जिहादी इस्लामिक ताकतों ने कश्मीरी पंडितों पर ऐसा कहर ढाया कि उनके लिए सिर्फ तीन ही विकल्प थे- या तो धर्म बदलो, मरो या पलायन करो। रातों-रात कश्मीरी पंडितों को अपने घर परिवार छोडक़र जम्मू समेत देश के विभिन्न हिस्सों में शरणार्थी बनकर शरण लेनी पड़ी।

मनाना चाहते है वापसी का जश्न…

 

क्या हुआ था कश्मीरी पंडितों के साथ?,खौफनाक दास्तां बयां करते समय छलके आंसू

तीस साल में कितनी ही सरकारें बदलीं, कितने मौसम आए—गए, पीढिय़ां तक बदल गईं, लेकिन कश्मीरी पंडितों की घर वापसी और न्याय के लिए लड़ाई जारी है। इस सुमदाय के अस्तित्व, संस्कृति, रीति-रिवाज, भाषा, मंदिर और अन्य धार्मिक स्थल धीरे-धीरे समय चक्र के व्यूह में लुप्त होने की कगार पर है। अनुच्छेद 370 समाप्त होने के बाद हालात बदलने से बीते 30 वर्षों में पहली बार विस्थापित कश्मीरी पंडितों को घाटी में अपनी सम्मानजनक वापसी की उम्मीद जगी है। सभी कश्मीरी पंडित कश्मीर में अपनी वापसी का जश्न मनाना चाहते हैं।

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उम्मीद की किरण जगी…

कश्मीरी पंडित हर साल 19 जनवरी को अपना निर्वासन दिवस मनाते हुए अपने साथ हुए अत्याचार और अपने हक की तरफ देश दुनिया का ध्यान दिलाते हैं। 30 वर्षों से ही वह देश-विदेश में विभिन्न मंचों पर अपने लिए इंसाफ मांग रहे हैं। हालांकि केंद्र सरकार ने पिछले कुछ वर्षों में कश्मीरी पंडितों की कश्मीर वापसी के लिए कई कॉलोनियां बनाने के साथ उनके लिए रोजगार पैकेज का भी एलान किया, लेकिन वर्ष 2015 तक सिर्फ एक ही परिवार कश्मीर वापसी के पैकेज के तहत श्रीनगर लौटा। प्रधानमंत्री पैकेज के तहत रोजगार पाने वाले भी ट्रांजिट कॉलोनियों में ही सिमट कर रह गए हैं। अलबत्ता, पांच अगस्त 2019 को जम्मू—कश्मीर पुनर्गठन अधिनियम के लागू होने के बाद से विस्थापित कश्मीरी पंडितों में भी उम्मीद की एक नई किरण जगी है।

 

पनुन कश्मीर के चेयरमैन डॉ अजय चुरुंगु ने कहा कि अनुच्छेद 370 और 35ए जम्मू कश्मीर को धर्मनिरपेक्ष भारत में एक लघु इस्लामिक राज्य का दर्जा देते थे। अब यह समाप्त हो चुका है। अब जम्मू—कश्मीर धर्मनिरपेक्ष भारत का एक पूर्ण हिस्सा है। जेकेएलएफ और जमात-ए-इस्लामी पर भी पाबंदी लग चुकी है। इसलिए अब हमें अपनी वापसी की उम्मीद है।

 

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खत्म हो सियासत…

कश्मीरी हिंदू वेलफेयर सोसाइटी के सदस्य चुन्नी लाल ने कहा कि हमारे समुदाय के अधिकांश लोग कश्मीर से चले गए, लेकिन मुझ जैसे करीब तीन हजार लोग यहां रहे। हम लोगों की हालत आप देख सकते हैं। मेरी तरह यहां जो लोग रहे वे कुपवाड़ा, बारामुला समेत वादी के दूरदराज इलाकों में आतंकी हमलों से डर कर श्रीनगर आ गए। हमारी तरफ कोई ध्यान नहीं देता। जितनी सियासत कश्मीरियों के नाम पर हुई है, उसके समाप्त होने की उम्मीद की जा सकती है। अब मोदी सरकारी से उम्मीद जगी है कि हम लोगों के साथ इंसाफ होगा।

 

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जख्मों पर लगाते हैं नमक…

मोती लाल नामक एक कश्मीरी पंडित बुजुर्ग ने कहा कि यहां बहुत से लोग अक्सर कहते हैं कि आप क्यों निर्वासन दिवस मनाते हैं, आपको किसी ने नहीं निकाला, आप खुद निकले हैं। यह हमारे जख्मों पर नमक नहीं तो और क्या है। कौन अपने घर से निकलता है। हमें तो हिंदू होने की सजा मिली है। 19 जनवरी 1990 को जो हुआ, वह कश्मीर में सभी जानते हैं। अब अनुच्छेद 370 समाप्त हो चुका है, अब हमारी वापसी का रास्ता भी नजर आने लगा है।

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