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Jodhpur News: पत्रिका कार्यशाला में चिलाकुमारी ने दिए टिप्स, युवाओं ने दिखाई रुचि

दिन की शुरुआत 'ब्लू प्रिंट्स: अ कम्युनिटी फोटो वॉक' से हुई, जिसका नेतृत्व अभ्युदय सिंह पंवार और अंकित बिश्नोई ने ऐतिहासिक मंडोर गार्डन में किया।

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Public Arts Trust of India

पब्लिक आर्ट्स ट्रस्ट ऑफ इंडिया की कार्यशाला। फोटो- पत्रिका

राजस्थान पत्रिका पैट्रन में पब्लिक आर्ट्स ट्रस्ट ऑफ इंडिया की ओर से आयोजित जोधपुर आर्ट्स वीक के चौथे दिन राजस्थान पत्रिका की कार्यशाला में नीले शहर के मध्य में फोटोग्राफी, संवाद, फिल्म, डिजाइन और क्यूरेटोरियल दृष्टिकोण का जीवंत संगम रचते हुए दर्शकों को गहराई से जोड़ा।

श्रीसुमेर स्कूल में फिल्मकार सचिन ने डॉकुस्तान और राजस्थान फिल्म कलेक्टिव के सहयोग से डॉक्यूमेंट्री फिल्ममेकिंग वर्कशॉप का संचालन किया। इसमें व्यावहारिक अभ्यास, फिल्म प्रदर्शन और चर्चाओं के माध्यम से प्रतिभागियों ने यह सीखा कि कैसे फिल्म बनाना अवलोकन के साथ-साथ दुनिया को समझने और व्यायायित करने की प्रक्रिया भी है।

कैमरे की नजर से बगीचे को देखें

दिन की शुरुआत 'ब्लू प्रिंट्स: अ कम्युनिटी फोटो वॉक' से हुई, जिसका नेतृत्व अभ्युदय सिंह पंवार और अंकित बिश्नोई ने ऐतिहासिक मंडोर गार्डन में किया। प्रतिभागियों को आमंत्रित किया गया कि वे अपने कैमरे की नजर से बगीचे को नए सिरे से देखें।

वहीं मायला बाग झालरा में हर्षिता शर्मा की ओर से संचालित टेरेबल ड्रॉइंग क्लब ने पतंग-निर्माण को एक कल्पनाशील अनुभव में बदल दिया। दिन का समापन वॉल्ड सिटी इंस्टॉलेशन्स के क्यूरेटर वॉकथ्रू से हुआ, जहां पब्लिक आर्ट्स ट्रस्ट ऑफ इंडिया की क्यूरेटोरियल टीम ने विभिन्न प्रदर्शनी स्थलों और हस्तक्षेपों का मार्गदर्शन किया।

दर्शकों को किया मंत्रमुग्ध

दिन का अगला आकर्षण रहा ‘रेबल विदआउट अ पॉज’ अंतरराष्ट्रीय याति प्राप्त ब्रिटिश-भारतीय कलाकार चिलाकुमारी सिंह बर्मन के साथ संवाद। साक्षी महाजन और एमा समनर के साथ हुई इस बातचीत में बर्मन ने अपने साहसी कलात्मक अभ्यास पर प्रकाश डाला।

नीयॉन के बेखौफ प्रयोग, पॉप-कल्चर की जीवंत पुनर्व्याया और नारीवाद, पहचान व प्रवासी जीवन के विषयों से प्रेरित उनकी कला ने दर्शकों को मंत्रमुग्ध किया। उन्होंने बताया कि किस तरह उनकी कला प्रतिरोध का माध्यम बनी है और समकालीन संस्कृति पर उसका निरंतर प्रभाव पड़ रहा है। इस अवसर पर उनकी चर्चित टेट मोनोग्राफ की हस्ताक्षरित प्रतियां भी उपलब्ध थीं।