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मारवाड़ी रीति रिवाज : कहीं वधू घोड़ी पर बैठ पहुंचती है ससुराल है तो कहीं दूल्हे के कपड़े देते हैं फाड़

मारवाड़ में विवाह की अनूठी रस्मे अनूठे रिवाज बढ़ रहा है परंपराओं को आधुनिकता के रंग देने की होड़

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कहीं वधू घोड़ी पर चढ़कर निभाती है रस्मे तो कहीं दूल्हे के कपड़े देते हैं फाड़

कहीं वधू घोड़ी पर चढ़कर निभाती है रस्मे तो कहीं दूल्हे के कपड़े देते हैं फाड़

जोधपुर. देव उठनी ग्यारस से सावों का सीजन शुरू हो चुका है। समूचे मारवाड़ में विवाह समारोह की धूम आगामी 14 दिसम्बर तक जारी रहेगी। सावों के सीजन में अधिकांश जगहों पर विवाह की अनूठी रस्में और रिवाज देखने को मिलते है तो कई जगहों पर विवाह की रस्मों और परम्पराओं में आधुनिकता के रंग भी झलकने लगे है। मारवाड़ की सुरंगी सुरमई संस्कृति की जड़ें अभी तक हमारे जनमानस में बड़ी मजबूती के साथ जुड़ी हुई है। खासतौर से मारवाड़ में वैवाहिक आयोजन के दौरान प्रचलित परंपराओं में कई समाजों में विभिन्न रोचक रस्मों की परंपराओं का निर्वहन आज भी जारी है।

दुल्हन की घोड़ी पर बंदोली

जोधपुर में श्रीमाली ब्राह्मण समाज में यह परंपरा है कि दूल्हे के विवाह मंडप पर आने से पूर्व दुल्हन घोड़े पर बैठ कर परिजनों सहित ससुराल पहुंचती है । वहां पर वर पक्ष की महिलाएं नजर उतारने के बाद शगुण के रूप में विवाह की बरी सौंपते है जिसे लेकर वधु वापस घर लौटती है। उसके बाद दूल्हे की बारात पाणिग्रहण संस्कार की रस्में पूरी करने पहुंचती है । श्रीमाली समाज के जयनारायण भट्ट ने बताया कि श्रीमाली समाज की यह रस्म कृष्ण रुक्मिणी विवाह की रस्म पर आधारित है।

परिवार के सदस्य को पहनाते हैं महिलाओं के कपड़े

ब्राह्मण समाज, माहेश्वरी समाज में विवाह के दौरान वधू पक्ष की महिलाएं बारात विदाई के दौरान वर के पिता दादा अथवा बड़े पिता अथवा कुल के वरिष्ठ सदस्य अथवा बड़े भाई को एक बाजोट पर बिठाकर महिलाओं के कपड़े पहनाए जाते हैं । माहेश्वरी समाज के विनोद तापडि़या ने बताया कि वधु पक्ष की महिलाओं की ओर से लिपस्टिक, काजल लगाकर और आभूषणों से शृंगार कर सब्जी, फलों व विवाह में बने मिष्ठान की माला पहनाई जाती है। गोद में नवजात शिशु को सौंपकर श्लील गालियां व मंगल गीत गाते है।

दुल्हन को उठा कर लेते हैं फेरे

श्रीमाली समाज में पाणिग्रहण संस्कार के दौरान अग्नि के समक्ष दूल्हे को दुल्हन को उठाकर फेरे लेने की परम्परा है। दुल्हन को हाथों में उठा कर फेरे खिलाने की परम्परा सदियों से चली आ रही है।

परिजन फाड़ते है दुल्हे के कपड़े

सिंधी समाज में शादी के दौरान दूल्हे की हल्दी रस्म के बाद दूल्हे के परिजन व रिश्तेदार मिल कर उसके कपड़े फाड़ते है । सिंधी समाज के वरिष्ठ सदस्य नारायण खटवानी ने बताया कि इसे अच्छा शगुन माना जाता है। समाज के जेठानंद लालवानी ने बताया कि दूल्हे को यह आभास कराया जाता है अब गृहस्थ जीवन शुरू होने जा रहा है तो नए वस्त्र पहनने के साथ नई जिम्मेदारी भी संभालना है । माली समाज में भी हल्दी की रस्म के दौरान दूल्हे को हल्दी के पानी से पूरी तरह भिगोया जाता है।

जुआ जुई के साथ थाली चुगाने की परम्परा

वैवाहिक रीति-रिवाजों से उनके व्यवहार क्षमा शीलता बड़प्पन और क्रोधी स्वभाव की पहचान की जा सकती थी। पाणीग्रहण संस्कार के बाद दुल्हन जब ससुराल पहुंचती है तब जुआ-जुई के माध्यम से उसकी धैर्य की परीक्षा और थाली चुगाने की रस्म के माध्यम से उसकी कार्यक्षमता, धैर्य, चतुराई और निपुणता की परीक्षा की जाती है।