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राजस्थान के ये शख्स 86 साल की उम्र में कर रहे MA, नौकरी करते हिंदी-अंग्रेजी और संस्कृत भाषा में ली स्नातकोत्तर उपाधि

86 साल के सेवानिवृत्त व्याख्याता छगनलाल गुप्ता ने चौथे परास्नातक के रूप में उर्दू से एमए की परीक्षा दी। वहीं, डॉ. पप्पूराम कोली ने मजदूरी करते हुए शिक्षा का सफर तय कर आज राजकीय स्नातकोत्तर महाविद्यालय के प्राचार्य पद तक पहुंचने की मिसाल पेश की।

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करौली

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Arvind Rao

Nov 11, 2025

Karauli News

छगनलाल गुप्ता और पप्पूराम कोली (फोटो- पत्रिका)

हिंडौनसिटी (करौली): शिक्षा लेने और सीखने की कोई उम्र नहीं होती। शहर के मोहननगर निवासी वयोवृद्ध छगनलाल गुप्ता इसे साकार करने में जुटे हुए हैं। 86 वर्ष की उम्र में भी वे पूरी लगन और उत्साह के साथ उर्दू भाषा से एमए की पढ़ाई कर रहे हैं और हाल ही में उन्होंने चौथे सेमेस्टर की परीक्षा भी दी है। छगनलाल गुप्ता हिंदी के व्याख्याता पद से सेवानिवृत्त हैं और शिक्षा के क्षेत्र में उनका लंबा अनुभव रहा है।

उन्होंने बताया कि उर्दू भाषा से उनका पहले कोई सीधा संबंध नहीं था, लेकिन ज्ञान की ललक ने उन्हें इस दिशा में प्रेरित किया। उन्होंने मात्र 6 महीने में स्वयं के स्तर पर उर्दू का प्रारंभिक अध्ययन किया और फिर कोटा विश्वविद्यालय से एमए उर्दू में प्रवेश लिया।

अब तक वे तीन सेमेस्टर की परीक्षाएं सफलतापूर्वक उत्तीर्ण कर चुके हैं। इससे पहले वे अंग्रेजी और संस्कृत में भी एमए कर चुके हैं। यह उनका चौथा परास्नातक है, जिसे वे आत्मविश्वास के साथ पूरा कर रहे हैं।

मूल रूप से मंडरायल के निवासी छगनलाल गुप्ता ने साल 1957 में सरकारी शिक्षक के रूप में अपने करियर की शुरुआत की थी। साल 1997 में सेवानिृवत होने के बाद वे भरतपुर संभाग और मध्यप्रदेश के मुरैना क्षेत्र के कॉलेजों में शिक्षा को लेकर मोटिवेशन सेमिनारे करते हैं।

शिक्षा की सीढ़ी पर सोपान चढ़ते हुए सफलता की मंजिल तक पहुंचने की प्रेरणादायक कहानी लिखी है नादौती तहसील के महस्वा गांव निवासी डॉ. पप्पूराम कोली ने। विषम पारिवारिक परिस्थितियों में भी उन्होंने शिक्षा का दामन नहीं छोड़ा और आज वे राजकीय स्नातकोत्तर महाविद्यालय के प्राचार्य पद पर आसीन हैं।

मजदूरी करते हुए चढ़े शिक्षा के सोपान

डॉ. पप्पूराम कोली ने बताया कि बचपन से ही आर्थिक तंगी ने उन्हें कई बार तोड़ा, लेकिन उन्होंने हार नहीं मानी। करौली कॉलेज से एमए और अजमेर से एमफिल की पढ़ाई के दौरान वे गांव लौटकर रंगाई-पुताई का काम करते थे। साथ ही शादी-विवाहों में बैण्ड मास्टरी कर परिवार की मदद करते रहे।

शिक्षा से उनका जुड़ाव इतना गहरा था कि हर कठिनाई उनके हौसले के आगे छोटी पड़ गई। लगातार संघर्ष और समर्पण के चलते वर्ष 1996 में वे कॉलेज शिक्षा में सहायक आचार्य बने। वर्तमान में वे अखिलभारतीय कोली समाज व राजस्थान कोली हितकारी महासभा के प्रदेशाध्यक्ष भी हैं।