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अष्टमी के दिन मां सतबहिनियां ने खुद की थी गहनों की खरीदारी, फिर दुकान से अदृश्य हुई कन्या, जानें CG के इस मंदिर की अनसुनी कहानी

Navratri 2025: मंदिर की विभिन्न किवदंतियां भी प्रचलित हैं। कहते हैं कि वर्षों पहले अष्टमी के दिन माता ने खुद अपने लिए गहने की खरीदारी की थी। वह आभूषण आज भी माता के शृंगार के काम आती है।

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मां सतबहिनियां (फोटो सोर्स- पत्रिका)

मां सतबहिनियां (फोटो सोर्स- पत्रिका)

Navratri 2025: देवियों की नगरी कवर्धा की धार्मिक पृष्ठभूमि बहुत ही स्वर्णिम है। हमेशा से ही इस नगरी पर देवियों की कृपा बनी रही है। इसीलिए ही इसे धर्मनगरी भी कहते हैं। कवर्धा की प्रमुख देवी मंदिरों में से एक प्रमुख मंदिर मां सतबहिनिया का भी है। इस मंदिर का इतिहास लगभग दो दशक से भी ज्यादा पुराना है।

मां सतबहिनियां में सात शक्तियां स्थापित हैं। इन्हीं सात शक्तियों को पराशक्तियों की संज्ञा भी दी गई है। इन शक्तियों में ब्रह्माणी, महेश्वरी, कौमारी, वैष्णवी, वाराही, नारसिंही व इन्द्राणी शामिल हैं। इन्हीं सात महाशक्तियों की पूजा इस मंदिर में होती है।

माता ने खुद अपने लिए गहने की खरीदारी की थी

मंदिर की विभिन्न किवदंतियां भी प्रचलित हैं। कहते हैं कि वर्षों पहले अष्टमी के दिन माता ने खुद अपने लिए गहने की खरीदारी की थी। वह आभूषण आज भी माता के शृंगार के काम आती है। नगर के ही एक आभूषण व्यापारी के दुकान से माता ने अपने लिए बिछिया खरीदी थी। पुजारी ने बताया कि उस समय उस व्यापारी के अनुसार पीला वस्त्र पहने एक कन्या दुकान पहुंची व उसने अपने लिए एक बिछिया खरीदी। उस बिछिया की कीमत उस समय 28 रुपए थी। दुकान से निकलते ही वह अदृश्य हो गई। बाद में उसी दिन उस दुकान से ली हुई बिछिया सतबहिनिया माता के चरणों में श्रीफल के साथ रखी मिली।

देवियों कब से विराजमान प्रमाण नहीं

राजमहल चौक स्थित सिद्धपीठ मां सतबहिनिया की स्थापना के बारे यूं तो पुता प्रमाण मौजूद नहीं है और न ही कोई बुजुर्ग ही हैं जो यह बता पाएं कि मातारानी यहां कब से विराजित हैं। लेकिन आसपास के लोगों बताते हैं कि उनके बुजुर्गों ने उन्हें बताया कि मां यहां लगभग दो दशक से भी पहले से विराजित हैं।

वहीं मंदिर के पुजारी ने बताया कि यह मंदिर कवर्धा राजपरिवार न्यास द्वारा संचालित है। मां की मूर्ति की स्थापना कब से की गई है, इस संबंध में कोई पुता प्रमाण तो नहीं हैं। लेकिन बताया जाता है कि राजा यदुनाथ सिंह के समय से मंदिर में पूजा-अर्चना हो रही है। राजा यदुनाथ सिंह के बाद राजा धर्मराज सिंह व राजा विश्वराज सिंह के बाद अब योगेश्वर राज सिंह माता की सेवा कर रहे हैं।

राजा आते पूजा करने

बुजुर्गों व मंदिर पुजारी द्वारा बताया जाता है कि कवर्धा रियासत के राजा यदुनाथ सिंह माता की पूजा करने आते थे। उनके बाद राजा धर्मराज सिंह ने इसे आगे बढ़ाया। उनके समय से ही मंदिर में जंवारा व दीप प्रज्ज्वलन की बात सामने आती है। बताया जाता है कि पहले मंदिर में सिर्फ क्वांर नवरात्रि में ही ज्योति कलश प्रज्जवलित की जाती थी। बाद में लगभग ३७-३८ वर्ष पहले मां महामाया मंदिर समिति के निर्माण के बाद व स्व. दानाबाबू पटेल के प्रयत्न से चैत्र व क्वांर दोनों नवरात्रों में मां के दरबार में ज्योति कलश की स्थापना होने लगी। मंदिर राजपरिवार न्यास से संचालित है।