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CG News: लापता बच्चों के मामले में कोडिंग लागू- नाम नहीं, V-1/V-2 से होगी पंजीकरण…

CG News: पुलिस विभाग में एफआईआर दर्ज करने की प्रक्रिया में बदलाव किया गया है। लापता बालक बालिकाओं को व्ही-2, व्ही-3 जैसे नामों से एफआईआर में कोडिंग की जा रही है।

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CG News: लापता बच्चों के मामले में कोडिंग लागू- नाम नहीं, V-1/V-2 से होगी पंजीकरण...(photo-patrika)

CG News: लापता बच्चों के मामले में कोडिंग लागू- नाम नहीं, V-1/V-2 से होगी पंजीकरण...(photo-patrika)

CG News: छत्तीसगढ़ के कोरबा जिले में छेड़छाड़ और दुष्कर्म जैसी घटनाओं में पीड़िता की गोपनीयता को बरकरार रखने के बाद अब घर द्वार छोड़कर भागने वाले नाबालिग बालक- बालिकाओं के नाम व पते को भी सार्वजनिक नहीं किया जा सकेगा। इसे लेकर पुलिस विभाग में एफआईआर दर्ज करने की प्रक्रिया में बदलाव किया गया है। लापता बालक बालिकाओं को व्ही-2, व्ही-3 जैसे नामों से एफआईआर में कोडिंग की जा रही है।

CG News: अब पहचान नहीं हो सकेगी उजागर

यह बदलाव इसी माह से शुरू हुआ है। इसका मकसद बालक-बालिकाओं की पहचान को सार्वजनिक होने से रोकना है। ताकि उन्हें किसी अपने कृत्य पर अपमानित महसूस न होना पड़े। अभी तक कोरबा पुलिस नाबालिग बच्चे के घर से लापता होने या घर छोड़कर भागने के मामले में जो एफआईआर दर्ज कर रही थी, उसमें बच्चे का नाम, पिता का नाम, पता और उम्र का स्पष्ट उल्लेख किया जाता था। लेकिन इस माह से इस प्रक्रिया में बदलाव किया गया है।

अब लापता या अपहरण से जुड़े नाबालिगों के मामले में एफआईआर की भाषा बदल गई है। केस दर्ज कराने वाले को व्ही-1 नाम से संबोधित किया जा रहा है। पता को व्ही-2 कोड किया जा रहा है। जबकि बच्चे के नाम को व्ही-3, व्ही-4 जैसे शब्दे से कोडिंग किया जा रहा है। ताकि बच्चा कौन है, कहां का रहने वाला है? इसके माता पिता को क्या नाम है? इसकी जानकारी सार्वनिक नहीं हो सके। किसी को पता न चल सके।

किशोर न्याय अधिनियम 2015 की धारा 74 के अनुसार किसी भी मीडिया या संचार माध्यम में किसी बालक (बच्चे) की पहचान उजागर करने, जैसे कि उसका नाम, पता, स्कूल, या कोई भी अन्य जानकारी जिससे उसकी पहचान की जा सके, पर प्रतिबंध लगाया गया है। इसका उल्लंघन कानून अपराध है।

बाल सरंक्षण आयोग के कड़े निर्देश के बाद लिया गया निर्णय, अब होने लगा अमल

अभी कोरबा सहित प्रदेश के सभी जिले में नाबालिग बालक बालिकाओं के लापता होने पर जो पुलिस की ओर से जो एफआईआर दर्ज कराया गया जाता था, उसके बच्चे का नाम, पता उसके पिता का नाम आदि का विवरण स्पष्ट दिखाई देता था। ऑनलाइन इसे देखा जा सकता था। लेकिन बाल संरक्षण आयोग के कड़े निदेश के बाद पुलिस ने इसमें बदलाव किया। गोपनीयता सार्वजनिक न हो हो इसके लिए एफआईआर को कोडिंग कर दिया है।

बच्चों को मिलेगी राहत

एफआईआर की प्रक्रिया में नाम-पता को कोडिंग दिए जाने से बच्चों को काफी राहत मिलेगी। माता-पिता न बताए तो किसी को बच्चे के बारे में जानकारी नहीं मिल सकेगी। पहले कोरबा में कार्यरत पुलिस के एक वरिष्ठ अधिकारी ने इस मसले पर चर्चा करते हुए कहा कि पॉक्सो एक्ट की धारा 23 निजता के उल्लंघन को रोकती है। धारा 23 किसी भी तरह से बच्चे की पहचान का खुलासा करने पर रोक लगाती है। इस मामले में विधायिका ने भी निर्देश जारी किया है।

विधायिका का इरादा है कि किसी बच्चे की पहचान प्रत्यक्ष या अप्रत्यक्ष रूप से प्रकट नहीं की जानी चाहिए। बच्चे की निजता और प्रतिष्ठा को नुकसान नहीं पहुंचना चाहिए। कोई भी विवरण, जिससे किसी बच्चे की पहचान हो सकती है, मीडिया में प्रसारित नहीं किया जा सकता। कानून की उक्त आवश्यकता का उल्लंघन करने वाले किसी भी व्यक्ति पर उक्त एक्ट की धारा 23(4) के अनुसार मुकदमा चलाया जाएगा।

खोजबीन में मदद के लिए माता पिता से सहमति लेना जरुरी

पुलिस के अधिकारी ने बताया कि इस प्रवधान से पुलिस को भी कार्य रहने में कई बार दिक्कत होती है। खासकर माता-पिता का सहयोग नहीं मिलने पर। यदी पुलिस बालक बालिका की खोजबीन से संबंधित इश्तहार या सूचना प्रकाशित कराती है, तो माता पिता से लिखित तौर पर सहमति लेनी होती है। माता-पिता के सहमत नहीं होने पर नाबालिग की पहचान जुड़े किसी तथ्य को सार्वजनिक नहीं किया जा सकता है। किशोर न्याय बोर्ड और बाल कल्याण समिति से भी अनुमति ली जा सकती है।

नाबालिग बच्चों की पहचान नहीं हो सके, इसके लिए इसी माह से एफआईआर में पीड़ित के नाम-पते के साथ केस दर्ज कराने वाले की भी नाम को कोडिंग किया जा रहा है, ताकि उनकी पहचान सार्वजनिक नहीं हो सके व गोपनीयता बरकरार रहे।

नाबालिग बच्चों की पहचान को उजागर नहीं किया जा सकता। इसे लेकर सरकार की ओर से समय-समय पर निर्देश जारी किए गए हैं। बाल कल्याण समिति और किशोर न्याय बोर्ड भी बच्चों की गोपनीयता बनी रहे, इसके लिए सतर्क है।