नदियों को पेयजल की गुणवत्ता के आधार पर केंद्रीय प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड ने 4 समूहों में बांटा है। प्रदूषण के चलते चम्बल का शुमार तीसरी श्रेणी की नदियों में किया गया है जिसका पानी फिल्टर किए बिना नहीं पिया जा सकता। कोटा के बाद केशवरायपाटन तक चम्बल नदी की बजाय नाले में तब्दील हो जाती है।
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जान के दुश्मन बने चौबीस नाले
9 महीने तक डाउन स्ट्रीम चम्बल के पानी के लिए तरसती रहती है। कोटा बैराज के बाद से लेकर केशवराय पाटन पहुंचने तक 8 किमी तक के सफर में सिर्फ नालों का पानी गिरता है। नाले भी एक या दो नहीं, बल्कि पूरे 24 हैं। इन नालों का करीब 180 एमएलडी सीवरेज सीधे केशवराय पाटन तक पहुंचता है। पानी हाथ धोने लायक नहीं बचता।
बेहद गंभीर हैं हालात
प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड 40 पेरामीटर्स पर पानी की जांच करता है। इनके आधार पर चंबल की हालत नाजुक है। नदी में आक्सीजन लगभग खत्म हो चुकी, 49 प्रदूषणकारी तत्व मानकों से कई गुना ज्यादा पाए गए। नदी को साफ रखने के लिए कई बार कोटा बैराज के नियमित गेट खोलने का भी फैसला हो चुका है, लेकिन सिंचाई विभाग इसके लिए तैयार नहीं होता।