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4 साल सूरत-ए-हालः अयोग्य कुलपतियों और आधे शिक्षकों के भरोसे उच्च शिक्षा

राजस्थान में पिछले 4 सालों में सबसे ज्यादा दुर्गति उच्च शिक्षा की हुई है। इस महकमे का मंत्री बनना अब पनिशमेंट पोस्ट माना जाने लगा है।

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Evaluation of Higher education in Rajasthan BJP Government

नए विश्वविद्यालय और कॉलेज खोलने के साथ ही शिक्षकों के खाली पदों को भरने के लिए साल भर पहले ही भर्तियां निकालने का दावा करने के साथ भारतीय जनता पार्टी सत्ता में आई थी, लेकिन 4 साल बाद जब इस महकमें का मूल्यांकन किया जाता है तो हालात बेहद दयनीय नजर आते हैं।

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बच्चे तब पढ़ें जब पढ़ाने वाला हो

राजस्थान के 207 राजकीय महाविद्यालयों में कुल 10725 पद हैं। जिनमें से 4591 खाली पड़े हैं। छात्रों को पढ़ाने के लिए कॉलेजों में शिक्षक ही नहीं है। व्याख्याताओं के कुल 6086 पदों में से 2336 खाली हैं। इतना ही नहीं कॉलेज चलाने के लिए सरकार के पास प्राचार्य तक नहीं है। 207 कॉलेजों में से 98 कॉलेजों में प्राचार्य ही नहीं है। वहां वरिष्ठ शिक्षक या उपाचार्यों को ही प्रचार्य की जिम्मेदारी सौंप दी गई है। हाड़ौती के सबसे बड़े कॉलेजों में शुमार राजकीय महाविद्यालय तक में प्रचार्य की कुर्सी खाली पड़ी है। प्रदेश के राजकीय महाविद्यालयों में सिर्फ 183 लाइब्रेरियन की ही पोस्ट हैं। जिसमें से 129 तो खाली ही पड़ी हैं।

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कैसे निकलेंगे 100 उसैन बोल्ट

भारत में 100 उसैन बोल्ट पैदा करने की ताकत होने का दावा करने वाले केंद्रीय खेल मंत्री राज्यवर्धन सिंह राठौर को जमीनी हकीकत पता चल जाए तो यकीनन वो अपना बयान वापस ले लेंगे। हकीकत यह है कि राजस्थान के 207 राजकीय महाविद्यालयों में सिर्फ 188 शारीरिक शिक्षकों के पद हैं। इसमें से भी 152 खाली पड़े हैं। ऊपर से न तो ग्राउंड हैं और ना ही खेल सुविधाएं।

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सिर्फ 25 फीसदी को दे पाते हैं दाखिला

नए कॉलेज खोलने के दावा करने वाली भाजपा ने राजस्थान में सरकार बनने के बाद 13 कॉलेजों के संकायों को तोड़कर नए कॉलेज बनाने की घोषणा कर दी, लेकिन इस घोषणा का इस कदर विरोध हुआ कि आधे कॉलेज मर्ज करने पड़ गए। इसके बाद पिछले 4 साल में सरकार एक भी नया कॉलेज नहीं खोल सकी है। फिलहाल राजस्थान के 207 राजकीय महाविद्यालयों में स्नातक प्रथम वर्ष में सिर्फ 1,45,705 सीटें ही उपलब्ध हैं। जिन पर दाखिला लेने के लिए इस बार 4,02,121 विद्यार्थियों ने आवेदन किया। वहीं स्नातकोत्तर शिक्षा का तो और भी बुरा हाल है। राजकीय महाविद्यालयों में स्नातकोत्तर प्रथम वर्ष में कुल 17,851 सीटें ही उपलब्ध हैं। जिन पर दाखिले के लिए इस बार 65,012 छात्रों ने आवेदन किया था।

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कॉलेज आयुक्तालय तक खाली

प्रदेश की उच्च शिक्षा का हाल जानने के लिए आयुक्तालय की बदहाली ही काफी है। कॉलेज आयुक्तालय में कुल 198 स्वीकृत पद हैं। जिनमें से 64 तो खाली ही पड़े हैं। आलम यह है कि आयुक्तायलय के पास निदेशक अकादमिक और संयुक्त निदेशक जैसे पदों का काम देखने वाला कोई आदमी मौजूद नहीं है।

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मनमानी फीस की छूट

राजस्थान में भाजपा की सरकार बनने के बाद निजी ही नहीं सरकारी संस्थानों ने भी मनमाने तरीके से फीस बढ़ाई गई। प्रदेश के सभी विश्वविद्याल हर साल 35 से 50 फीसदी तक फीस वृद्धि कर रहे हैं। वहीं कॉलेजों में भी फीस 4 साल में दुगनी हो गई है। वहीं एमफिल और पीएचडी की फीस तो दो से तीन गुनी तक हो गई है।

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शिक्षक प्रशिक्षण में खुली लूट

बीएड इंटीग्रेटेड कोर्स के नाम पर राज्य सरकार स्टूडेंट्स को लूट रही है। क्योंकि कोर्स के लिए सरकार ने 26 हजार 880 रुपए सालाना फीस तय की है। यानी चार साल में बीए या बीएससी के साथ बीएड करने के लिए स्टूडेंट्स को एक लाख 7 हजार 520 रुपए अदा करने पड़ रहे हैं। जबकि यही कोर्स अलग-अलग करे तो पांच साल की बीए-बीएड 75 व बीएससी-बीएड करीब 85 हजार तक में पूरी हो रही है।

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कैसे धुलेंगे ये दाग

भाजपा ने चहेतों को कुलपति बनाने के लिए उनकी निर्धारित योग्यता को भी नजरंदाज कर दिया। बिना पीएचडी किए ही राजस्थान विश्वविद्यालय में कुलपति के पद पर जेपी सिंघल की तैनाती कर दी गई। कोर्ट ने नियुक्ति पर जवाब मांगा तो उन्होंने इस्तीफा दे दिया। इसके बाद बिना अनुभव के प्रो. पीके दशोरा को कोटा विश्वविद्यालय का कुलपति और उमा शंकर शर्मा को महाराणा प्रताप कृषि विवि के कुलपति का कुलपति बनाए जाने का मामला कोर्ट पहुंच गया है। वहीं नियुक्तियों में धांधले बाजी के खुलासे हो रहे हैं सो अलग।