कोटा की पहचान (Kota’s Pride Kota Doria) कोटा डोरिया की 99 प्रतिशत खपत भारत के दक्षिण राज्यों में हो रही है। कोटा डोरिया ब्रांड की साड़ी की टक्कर अब सीधे रूप से तमिलनाडु राज्य की हैण्डलूम निर्मित कांजीवरम (Kanjivaram Saree) से हो रही है। कोटा डोरिया के परिधान कांजीवरम की तुलना में कम वजनी व कम दर के होते हैं। लो-वेट के साथ ही कम दर व आकर्षक चांदी-स्वर्ण रंग की जरी वर्क के कारण कोटा डोरिया दक्षिण राज्यों में दबदबा बना रहा है।
दो दशक पहले तक कैथून कस्बे में काम करने वाले बुनकर कच्चे मकानों में हैण्डलूम चला रहे थे। कोटा डोरिया को जीआई मिलने के बाद हैण्डलूम निर्मित साड़ी की पहचान देशभर तक होने लगी। पीढिय़ों से चल रहे हथकरघे अब पक्के मकानों में चलाए जा रहे हैं। वर्तमान में 4000 हैण्डलूम पर करीब 10 हजार बुनकर काम कर रहे हैं। हर घर में आत्मनिर्भरता दिखाई दे रही है। समय के साथ हथकरघे थोड़े आधुनिक जरूर हुए, लेकिन बुनाई का पूरा काम हाथों से ही हो रहा है।
राज्य के बुनकरों के अनुसार उत्तरप्रदेश, बिहार, गुजरात के सूरत व पश्चिम बंगाल में पावरलूम पर कोटा डोरिया ब्रांड की नकली साड़ी तैयार की जाती है। वहां मशीन से तैयार साड़ी को कम दामों में बेचा जा रहा है। कई बार असली व नकली की पहचान नहीं हो पाने के कारण लोग सस्ते दाम में नकली कोटा डोरिया खरीद लेते हैं। मोटे अनुमान से कोटा में कोटा डोरिया के नाम से 10 हजार साड़ी नकली बिक जाती है।
राजस्थान में बुनकर रत्न से पुरस्कृत कैथून के बुनकर नसीरुद्दीन अंसारी के अनुसार हैण्डलूम से निर्मित कोटा डोरिया ब्रांड के असली परिधान (साड़ी, दुप्पटे आदि) के कोने पर जीआई का लोगो उकरा होता है। इसके पीछे धागे भी कटे दिखाई देते हैं। मशीन निर्मित डोरिया में यह उकरा हुआ जीआई लोगो नहीं होता। हैण्डलूम से तैयार साड़ी में बाना के धागे से डिजाइन होती है और धागे सिक्वेंस में होते हैं। पतले व मोटे धागे इस तरह लगाए जाते हैं कि कपड़े पर समान रूप से स्क्वायर (वर्ग) दिखाई देते हंै। ऐसे में कोटा डोरिया के असली-नकली परिधान की पहचान आसानी से हो जाती है।
इतिहास के अनुसार 17वीं शताब्दी में मैसूर के 3 बुनकरों को कोटा के कैथून लाकर यहां हथकरघे शुरू किए गए थे। शुरुआत में कपड़े का नाम कोटा मसूरिया रहा। बाद में कोटा डोरिया के नाम से पहचान मिली। हाड़ौती अंचल के कोटा समेत 11 जगहों को 5 जुलाई 2005 को कोटा डोरिया का जीआई मिला। कोटा डोरिया डवलपमेंट हाड़ौती फाउंडेशन (केडीएचएफ) कैथून को मिला यह जीआई राजस्थान का पहला और देश का आठवां जीआई था। कोटा डोरिया को 10 दिसम्बर 2009 को जीआई का लोगो मिल गया।
हैण्डलूम से कोटा डोरिया ब्रांड के परिधान बनाने का जीआई हाड़ौती अंचल के कोटा, कैथून, कोटसुआं, सुल्तानपुर, अंता, सीसवाली, मांगरोल, बूंदी, केशवरायपाटन, कापरेन, रोटेदा गांव को मिला हुआ है। इसके अलावा अन्य किसी भी जगह पर जीआई के साथ कोटा डोरिया का निर्माण नहीं किया जा सकता।
– 4000 हैण्डलूम कोटा के कैथून कस्बे में, घर-घर में चल रही है लूम
– 800 साड़ी लगभग प्रतिदिन तैयार होती है कैथून में
– 70 प्रतिशत काम महिला बुनकर करती हैं
– 30 दुकाने हैं कोटा शहर में, जहां बेचा जा रहा कोटा डोरिया
– 10 दिन औसत समय में एक साड़ी तैयार होती है हैण्डलूम से
हैण्डलूम निर्मित कोटा डोरिया साड़ी- 5000 रुपए से 80000 रुपए तक
पावरलूम से निर्मित नकली कोटा डोरिया- 300 से 700 रुपए तक
हैण्डलूम निर्मित कांजीवरम साड़ी- 5000 से 1.50 लाख रुपए तक
सरकार ने कोटा डोरिया को जीआई दिलाकर कोटा डोरिया की साख बचा ली। डोरिया की वजह से कोटा की पहचान देश-विदेश तक हो रही है। कैथून कस्बे में दस हजार से ज्यादा बुनकर स्वरोजगार से जुड़कर आत्मनिर्भर भारत की ओर बढ़ रहे हैं। सरकार से आग्रह है कि कोटा डोरिया के नाम से नकली कारोबार पर अंकुश लगाएं, ताकि पुरखों की यह हस्तनिर्मित कला व परम्परागत रोजगार जीवंत रह सके।
– नसीरुद्दीन अंसारी, राष्ट्रीय व राज्य स्तरीय पुरस्कृत बुनकर, कैथून, कोटा
कई दिनों की मेहनत के बाद भी ज्यादा आमदनी नहीं मिल पाती हैं। आजकल अन्य काम में ज्यादा मजदूरी है। लेकिन परिवार चलता रहे। इसलिए पुश्तैनी काम कर रहे हैं।
-ताज मोहम्मद, बुनकर कैथून के बुनकर हैण्डलूम की इस कला को जीवंत रखते हुए कोटा का नाम देशभर में पहुंचा रहे हैं। सरकार की ओर से हम बुनकरों को राहत देने के लिए विशेष प्रयास किए जाने चाहिए।
-मोहम्मद सिद्दीक, बुनकर
-इक्तेशाम जीया, बुनकर