कोटा में विद्युत उत्पादन से जुड़े इंजीनियर आर.एन. गुप्ता ने बताया कि हाल ही वैज्ञानिकों ने रिसर्च में बताया कि थर्मल बिजलीघरों से निकलने वाली राख (फ्लाईएश) को स्थानीय निकायों द्वारा इन गड्ढों में भर दिया जाए तो समूचे क्षेत्र को मच्छरों से बचाया जा सकता है। उन्होंने बताया कि इंडियन काउंसलिंग ऑफ मेडिकल रिसर्च (आईसीएमआर) ( Indian Counseling of Medical Research Center ) के वेक्टर कंट्रोल रिसर्च सेंटर (वीसीआरसी) में कार्यरत वैज्ञानिकों ( scientists, Research ) ने फ्लाईएश पर नया रिसर्च किया है।
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उनका कहना है कि फ्लाईएश ( Kota thermal fly ash ) में सिलिका, एलुमिना व आयरन तत्व होने से यह पानी में क्षारियता बढ़ाती है, जिससे लार्वा पैदा होने की संभावना नगण्य हो जाती है। वर्षा जल में अशुद्धियां मिलने के बाद अम्लीयता बढऩे से भूजल दूषित हो जाता है। इसके कारण ठहरे हुए पानी में मच्छरों के लार्वा तेजी से पनपने लगते हैं। इन मच्छरों के काटने से मलेरिया, डेंगू, पीलिया जैसी बीमारियां तेजी से फैलती हैं। राख के उपयोग से इस स्थिति पर नियंत्रित किया जा सकता है।
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बायो-पेस्टीसाइड के रूप में फ्लाईएशगुप्ता के अनुसार शोधकर्ताओं ने बताया कि फ्लाईएश का उपयोग बीटीआई बायो पेस्टीसाइड के रूप में किया जा सकता है। इससे मच्छरों व कीटाणुओं के लार्वा को खत्म कर सकते हैं। इस समय देशभर में 63 प्रतिशत फ्लाईएश सीमेंट उद्योगों व कांक्रीट बनाने में नि:शुल्क काम में ली जा रही है, इसके अन्य क्षेत्रों में भी उपयोग होने लगे हैं।
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कोटा के जलमग्न क्षेत्रों में उपयोगीविशेषज्ञों का कहना है कि चंूकि कोटा थर्मल के नांता स्थित राख संग्रहण क्षेत्र में प्रचूर मात्रा में फ्लाईएश उपलब्ध है। जिला प्रशासन तथा नगर निगम द्वारा कार्ययोजना बनाकर कैथून, अनंतपुरा तालाब की बस्तियों व कोटा बैराज की निचली जलमग्न बस्तियों के गड्ढों तथा खाली भूखंडों में फ्लाईएश भर दी जाए तो आवासीय बस्तियों को मच्छरों के लार्वा से बचा सकते हैं। पानी के साथ मिलते ही फ्लाईएश गड्ढों में जमा हो जाती है, इससे लोगों को कीचड़ या दूषित पानी से निजात मिल सकेगी तथा महामारी फैलने जैसी स्थितियां भी पैदा नहीं होंगी।