इसके बाद भी अस्पताल प्रशासन ने अनदेखी कर 19 फरवरी को सप्लायर्स फर्म को ऑर्डर जारी कर दिए। आर्डर के मुताबिक, सप्लायर फर्म ने 1 मार्च को 400 एरिथ्रोपीटिन इंजेक्शन सप्लाई कर दिए। इस इंजेक्शन की दर आरएमसीएल में 119 रुपए है, जबकि अस्पताल प्रशासन ने एरिथ्रोपीटिन इंजेक्शन बाजार से 172 रुपए में खरीदा है। इस रेट में भी जीएसटी अलग है। जांच दल ने माना कि नए अस्पताल में सरकारी सप्लाई पहुंचने के बावजूद इंजेक्शन खरीद निजी फर्म को फायदा पहुंचाने की कोशिश है।
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जांच में डायलिसिस रोगियों के काम आने वाले एरिथ्रोपीटिन इंजेक्शन खरीद में घोटाला सामने आया है। सरकारी सप्लाई होने के बावजूद बाजार से इंजेक्शन खरीदे है। वह भी अधिक दर पर खरीदे गए।
देवेन्द्र गर्ग, सहायक औषधि नियंत्रक अधिकारी, कोटा
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जीवन रक्षक दवा होने के कारण ड्रग वेयर हाउस से एरिथ्रोपीटिन इंजेक्शन की एनओसी जारी हुई। उसी आधार पर लेखाशाखा ने इसकी खरीद की अनुमति दी, लेकिन जब खरीद हुई तो पहले ही आरएमसीएल में इंजेक्शन पहुंच गए थे। स्टोर इंचार्ज को लेखाशाखा को इसकी जानकारी देनी थी, लेकिन नहीं दी गई। यदि वह देते तो हम ऑर्डर को रोक देते।
डॉ. देवेन्द्र विजयवर्गीय, अस्पताल अधीक्षक