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एफे न्यूज की रिपोर्ट के अनुसार, वाशिंगटन के जॉर्जटाउन विश्वविद्यालय में अपने भाषण के दौरान जुकरबर्ग ने स्वीकारा कि वह समाज और ऑनलाइन क्षेत्र में हो रहे ‘सत्य के ह्रास’ को लेकर चिंतित हैं। लेकिन साथ ही उन्होंने इस विचार को भी नकार दिया कि उनकी फर्म और अन्य तकनीकी कंपनियों को सोशल नेटवर्क पर दिए गए विज्ञापनों की सच्चाई की प्रमाणिकता का पता लगाना चाहिए।
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फेसबुक संस्थापक ने कहा, “मुझे नहीं लगता कि ज्यादातर लोग एक ऐसी दुनिया में रहकर उन चीजों को पोस्ट करना चाहेंगे, जिसे तकनीकी कंपनियां 100 प्रतिशत सच मानती हैं।” उन्होंने आगे कहा, “मैं इस बात पर भरोसा नहीं करता कि लोकतंत्र में निजी कंपनियां नेताओं और समाचार का सेंसर करें।”
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जुकरबर्ग ने आगे कहा, “जनता को सच्चाई का निर्धारण करना चाहिए, न कि तकनीकि कंपनियों को।” उन्होंने कहा कि लोग चुनाव से संबंधित या अन्य चीजों को लेकर फेसबुक पर विज्ञापन देते हैं, अब ऐसे में कंपनियों के लिए यह काफी कठिन है कि वे इन विज्ञापनों की प्रमाणिकता का पैमाना कैसे तय करें।