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ऐतिहासिक फैसला: झूठे रेप केस के दोषी वकील को उम्रकैद, अदालत ने कहा-‘न्यायपालिका पर विश्वास बचाना जरूरी

Life Imprisonment for Lawyer Who Filed Fake Rape Case: लखनऊ की विशेष एससी/एसटी कोर्ट ने ऐतिहासिक फैसला सुनाते हुए अधिवक्ता परमानंद गुप्ता को उम्रकैद की सजा दी। उन्होंने विरोधियों को फंसाने के लिए झूठा रेप केस दर्ज कराया था। कोर्ट ने कहा, ऐसे अपराधियों को कठोर दंड देकर न्यायपालिका की पवित्रता और जनता के विश्वास को सुरक्षित रखना आवश्यक है।

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लखनऊ

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Ritesh Singh

Aug 19, 2025

झूठे रेप केस में वकील को उम्रकैद: अदालत बोली- न्यायपालिका पर भरोसा बचाना ज़रूरी (फोटो सोर्स : Social Media/ X )

झूठे रेप केस में वकील को उम्रकैद: अदालत बोली- न्यायपालिका पर भरोसा बचाना ज़रूरी (फोटो सोर्स : Social Media/ X )

Lucknow Court: भारतीय न्यायपालिका ने झूठे मुकदमों के दुरुपयोग पर ऐतिहासिक और कड़ा संदेश दिया है। लखनऊ की विशेष एससी/एसटी कोर्ट ने एक वकील को अपने विरोधियों को फंसाने के लिए झूठा गैंगरेप मुकदमा लिखाने के दोष में उम्रकैद की सजा सुनाई है। न्यायालय ने कहा कि यदि ऐसे लोगों को कठोर दंड नहीं दिया गया तो जनता का न्यायपालिका से विश्वास डगमगा जाएगा।

वकील परमानंद गुप्ता पर गंभीर आरोप

मामले के अनुसार अधिवक्ता परमानंद गुप्ता ने अपनी पत्नी के ब्यूटी पार्लर में काम करने वाली एक महिला के माध्यम से अपने विरोधियों के खिलाफ एससी/एसटी एक्ट के तहत झूठा रेप व गैंगरेप केस दर्ज कराया। उद्देश्य था - निजी दुश्मनी निकालना और विपक्षियों को कानूनी फंदे में फँसाना।

जांच के दौरान इस साजिश का खुलासा हुआ। विवेचनाधिकारी राधारमण सिंह (एसीपी, विभूतिखण्ड) ने मामले की गहन पड़ताल कर झूठ का पर्दाफाश किया और अदालत के सामने ठोस साक्ष्य प्रस्तुत किए।

न्यायालय का कठोर रुख

विशेष न्यायाधीश (एससी/एसटी एक्ट) विवेकानंद शरण त्रिपाठी ने अपने आदेश में कहा “यदि दूध से भरे महासागर में खट्टे पदार्थ की बूंदों को गिरने से नहीं रोका गया, तो पूरा महासागर खराब हो जाएगा। इसी तरह न्यायपालिका में झूठ के ज़हर को समय रहते रोका न गया, तो पूरा तंत्र अविश्वसनीय हो जाएगा।”

अदालत ने आगे कहा कि यदि परमानंद गुप्ता जैसे अधिवक्ताओं को बलात्कार और एससी/एसटी एक्ट जैसे गंभीर अपराधों के दुरुपयोग से नहीं रोका गया, तो जनता के मन में न्यायालयों के प्रति गहरा अविश्वास पैदा होगा।

उम्रकैद की सजा और सख्त टिप्पणी

अदालत ने परमानंद गुप्ता को उम्रकैद की सजा सुनाते हुए स्पष्ट किया कि यह केवल व्यक्तिगत सज़ा नहीं, बल्कि पूरे समाज के लिए एक संदेश है। आदेश में यह भी लिखा गया कि बार काउंसिल ऑफ इंडिया और बार काउंसिल ऑफ यूपी को ऐसे दोषी अधिवक्ताओं को न्यायालय में प्रवेश और प्रैक्टिस करने से रोकना चाहिए, ताकि न्यायपालिका की पवित्रता बनी रहे।

सह-अभियुक्ता को राहत, पर चेतावनी भी

अदालत ने इस मामले में सह-अभियुक्त महिला को दोषमुक्त कर तत्काल रिहाई का आदेश दिया। हालांकि अदालत ने उसे कड़ी चेतावनी दी कि यदि भविष्य में वह किसी झूठे मुकदमे में शामिल पाई गई, तो उसके खिलाफ कठोर कार्रवाई की जाएगी।

न्यायपालिका का सख्त संदेश

कोर्ट ने स्पष्ट कहा कि गंभीर अपराधों के झूठे मुकदमे न केवल निर्दोष व्यक्तियों का जीवन बर्बाद करते हैं, बल्कि असली पीड़ितों को न्याय से वंचित कर देते हैं। अदालत के शब्दों में “अभी भी समय है कि ऐसे अपराधियों को कठोर दंड देकर उदाहरण प्रस्तुत किया जाए, ताकि भविष्य में कोई भी व्यक्ति न्यायालय का दुरुपयोग करने का साहस न करे।”

क्यों ऐतिहासिक है यह फैसला

  • कानूनी विशेषज्ञों का मानना है कि यह फैसला कई मायनों में ऐतिहासिक है.
  • पहली बार एक अधिवक्ता को झूठे रेप केस दर्ज कराने की साजिश में उम्रकैद की सजा मिली।
  • अदालत ने बार काउंसिलों को सीधे निर्देश दिए कि ऐसे वकीलों को प्रैक्टिस से प्रतिबंधित करें।
  • फैसले में न्यायपालिका की विश्वसनीयता को सुरक्षित रखने का स्पष्ट संदेश दिया गया।

जांच अधिकारी की भूमिका की सराहना

न्यायालय ने विवेचनाधिकारी राधारमण सिंह की निष्पक्ष जांच की भी सराहना की। अदालत ने कहा कि उनके द्वारा प्रस्तुत साक्ष्य व गवाहियों के आधार पर सच्चाई सामने आ सकी। यदि विवेचना में ईमानदारी न होती, तो झूठे आरोपों में निर्दोष लोग जेल की सलाखों के पीछे होते।

सामाजिक प्रभाव

कानूनविदों और सामाजिक कार्यकर्ताओं का कहना है कि यह फैसला एससी/एसटी एक्ट और रेप कानून के दुरुपयोग पर लगाम लगाने में मील का पत्थर साबित होगा।
विशेषज्ञों का कहना है कि सख्त सजा का असर यह होगा कि भविष्य में कोई भी व्यक्ति या समूह निजी दुश्मनी के लिए कानून का दुरुपयोग करने से पहले कई बार सोचेगा।

आगे क्या

अब इस मामले में दोषी अधिवक्ता के खिलाफ बार काउंसिल ऑफ इंडिया और बार काउंसिल ऑफ यूपी को कार्रवाई करनी होगी। संभावना है कि उनका लाइसेंस रद्द हो और उन्हें न्यायालयों में प्रवेश पर प्रतिबंध लगाया जाए।