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Voter Transfer: शहर में रहकर भी गांव में वोट: बड़ी संख्या में मतदाता अपने पैतृक गांव में कर रहे नाम ट्रांसफर

Voter Registration: लोकतंत्र को मजबूत बनाने के लिए जारी SIR अभियान के दौरान बेहद रोचक रुझान सामने आया है। शहरों में रहने वाले बड़ी संख्या में लोग अब अपना नाम मतदाता सूची से हटवाकर अपने पैतृक गांव में दर्ज करा रहे हैं। मतदाता गाँव से अपने भावनात्मक और सामाजिक जुड़ाव को मतदान के माध्यम से फिर मजबूत करना चाहते हैं।

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लखनऊ

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Ritesh Singh

Nov 28, 2025

मतदाता सूचियों में बड़े पैमाने पर ट्रांसफर- ग्रामीण जुड़ाव की बढ़ती भावना का नया संकेत      (फोटो सोर्स : Whatsapp News Group)

मतदाता सूचियों में बड़े पैमाने पर ट्रांसफर- ग्रामीण जुड़ाव की बढ़ती भावना का नया संकेत      (फोटो सोर्स : Whatsapp News Group)

Mass Shift in Voter Registration: लोकतंत्र को सुदृढ़ बनाने के उद्देश्य से चुनाव आयोग द्वारा चलाए जा रहे विशेष संक्षिप्त पुनरीक्षण (SIR) अभियान के दौरान एक दिलचस्प रुझान सामने आया है। राजधानी लखनऊ के विभिन्न क्षेत्रों में घर-घर जाकर मतदाता सूची का सत्यापन कर रहे बीएलओ (बूथ लेवल अधिकारी) यह देख रहे हैं कि बड़ी संख्या में लोग अपने नाम शहर की मतदाता सूची से कटवाकर वापस अपने पैतृक गांव में दर्ज करवाने की पहल कर रहे हैं। यह रुझान केवल इक्का-दुक्का लोगों तक सीमित नहीं है, बल्कि एक व्यापक प्रवृत्ति के रूप में उभर रहा है। ऐसा पहली बार देखने को मिल रहा है कि नौकरी, व्यवसाय या बच्चों की शिक्षा के कारण लंबे समय से शहर में रह रहे परिवार अब शहरी क्षेत्र से नाम हटवा कर ग्रामीण क्षेत्रों में ट्रांसफर कराने को प्राथमिकता दे रहे हैं।

गांव से भावनात्मक जुड़ाव बढ़ा

बीएलओ द्वारा किए जा रहे सत्यापन के दौरान मतदाताओं ने स्पष्ट किया कि गांव की समस्याओं, वहां के विकास और स्थानीय मुद्दों से उनका सीधा संबंध रहता है। ऐसे में उन्हें लगता है कि मतदान भी वहीं किया जाए, जहाँ उनका सामाजिक जुड़ाव अधिक है। लखनऊ के सीतापुर रोड क्षेत्र में रहने वाले अरविंद कुमार सिंह भदौरिया ने बताया कि वे बच्चों की पढ़ाई के लिए राजधानी में रह रहे हैं, लेकिन उनका मूल निवास हरदोई में है। उन्होंने बताया कि यहाँ रहेंगे, काम भी यहीं करेंगे, लेकिन मतदान हम गांव में ही करेंगे। गांव के विकास में योगदान देने की जिम्मेदारी हमें वहीं महसूस होती है। इसी प्रकार आजमगढ़ मूल निवासी रामसूरत ने भी अपने पूरे परिवार का नाम लखनऊ से हटवा कर पैतृक गांव की सूची में दर्ज करवाया है। उनका कहना है कि “गांव में परिवार है, समाज है, और समस्याओं से जुड़ाव भी सीधा है। इसलिए मतदान गांव में करना अधिक उचित लगता है।

इसी श्रेणी में रमेश सिंह भदौरिया, रश्मि सिंह, सरनाम सिंह, अभिलाषा सिंह, शैलेंद्र सिंह और उनकी पत्नी निशा सिंह ने भी अपने नाम शहर से हटवा कर गांव में ट्रांसफर करवा दिए हैं। उनका कहना है कि इस बार उन्होंने तय कर लिया है कि वोट वहीं देंगे, जहां उनकी पहचान और जड़ें दोनों मजबूर हैं।

लखनऊ में रहकर भी गांव की राजनीति में रुचि

रुचि खंड निवासी आकाश तिवारी बताते हैं कि उन्होंने अपने परिवार का नाम इलाहाबाद (प्रयागराज) ट्रांसफर कराया है। उनका कहना है कि  शहर में रहकर काम तो होता ही है, पर गांव की परेशानियाँ और असली ज़रूरतें हम बेहतर समझते हैं। उस विकास को कौन दिशा देगा, यह तय करना भी हमारी जिम्मेदारी है। इसलिए बीएलओ को गांव का पता दे दिया है। आकाश तिवारी जैसे कई युवा मतदाता भी ग्रामीण राजनीति में सक्रिय भागीदारी की इच्छा जता रहे हैं। उनके लिए गांव केवल वोट डालने की जगह नहीं, बल्कि अपनी जड़ों और सामाजिक पहचान का केंद्र है।

बीएलओ की रिपोर्ट- मतदाता सूची में बड़ा बदलाव

विभिन्न वार्डों में काम कर रहे बीएलओ बताते हैं कि यह बदलाव काफी स्पष्ट रूप से दिखाई दे रहा है। जिन इलाकों में बिहार, पूर्वांचल, बुंदेलखंड, हरियाणा और राजस्थान जैसे क्षेत्रों से आकर लोग बसे हुए हैं, वहाँ अब मतदाताओं की संख्या में कमी दर्ज की जा रही है। बीएलओ बताते हैं,पहले लोग नौकरी, पढ़ाई या व्यवसाय की वजह से शहर में नाम जुड़वाना प्राथमिकता मानते थे। लेकिन अब बड़ी संख्या में लोग नाम ट्रांसफर करवा रहे हैं। कई परिवार कहते हैं कि शहर में रहकर भी गांव के मुद्दों से उनका लगाव अधिक है। बीएलओ के अनुसार ग्रामीण क्षेत्रों में मतदान प्रतिशत हमेशा से शहरी क्षेत्रों की अपेक्षा अधिक रहा है। ऐसे में यदि अधिक लोग गांव में जाकर मतदान करेंगे, तो यह लोकतांत्रिक भागीदारी को और मजबूत करेगा।

SIR अभियान के सकारात्मक परिणाम

अधिकारियों का कहना है कि SIR अभियान का मुख्य उद्देश्य मतदाता सूची को सही और शुद्ध बनाना है।

  • इस अभियान के माध्यम से
  • मृत मतदाताओं के नाम हट रहे हैं
  • दुहराव खत्म हो रहा है
  • स्थानांतरण मामलों में सुधार हो रहा है
  • वास्तविक निवासियों को सूची में जोड़ा जा रहा है

अब जब लोग स्वयं शहर से गांव में ट्रांसफर करा रहे हैं, तो यह अभियान मतदाता सूचियों को और भी वास्तविक स्वरूप देने में सफल होगा।

गांव के विकास में बढ़ती भूमिका

राजनीतिक जानकारों का मानना है कि ग्रामीण क्षेत्रों में सक्रियता बढ़ने से स्थानीय स्तर पर प्रतिनिधियों की जवाबदेही भी बढ़ेगी।

  • गांव के मतदाता अक्सर
  • विकास कार्यों पर करीबी नजर रखते हैं
  • अपने सांसद/विधायक से सीधे संवाद में रहते हैं
  • अपनी समस्याए खुलकर बताते हैं

ऐसे में जब गांव में मतदाताओं की संख्या बढ़ेगी, तो स्थानीय नेताओं की गतिविधियों में भी पारदर्शिता और तीव्रता आने की उम्मीद है।

शहरी क्षेत्रों पर संभावित असर

यह भी संभव है कि आने वाले चुनावों में कई शहरी सीटों पर मतदाता संख्या थोड़ी कम दिखाई दे। खासकर ऐसे इलाकों में जहां अधिकांश लोग बाहर से आकर रहते हैं। हालांकि अधिकारियों का कहना है कि इससे किसी भी निर्वाचन क्षेत्र की प्रभावशीलता पर नकारात्मक असर नहीं पड़ेगा, क्योंकि जो लोग वास्तव में यहाँ रहते हैं, उनके नाम सूची में बने रहेंगे।

लोकतंत्र के लिए सकारात्मक संकेत

जानकारों का यह भी मानना है कि यह बदलाव लोकतंत्र के लिए शुभ संकेत है। इससे साफ होता है कि लोग अपने वोट को लेकर पहले से अधिक जागरूक हो रहे हैं। वे समझ रहे हैं कि उनका वोट कहाँ ज्यादा असरदार है, जहाँ वे सिर्फ रहते हैं, या जहाँ उनकी जड़ें, पहचान और जिम्मेदारी गहराई से जुड़ी है।