UP Education Free Books Crisis: उत्तर प्रदेश में शैक्षणिक सत्र के शुरू होने के ढाई महीने बाद भी प्राथमिक स्तर (कक्षा 1–3) के लगे लाखों बच्चों को पाठ्य पुस्तकें और कार्यपुस्तिका नहीं मिल पाई हैं। 22 जिलों में तो एक भी पाठ्यपुस्तक नहीं पहुंच पाई, जबकि 47 जिलों में कार्यपुस्तिकाओं की डिलीवरी शून्य रही। यह स्थिति तब सामने आई है जब सरकार ने कक्षा शुरू होने के पहले सप्ताह में इन्हें वितरित करने का स्पष्ट निर्देश जारी किया था।
शासन द्वारा जारी निर्देशों के तहत, फरीदाबाद की मेसर्स नोवा पब्लिकेशन एंड प्रिंटर्स को 50% कार्य का आवंटन किया गया था। 75 जिलों में निर्देश थे, 45 दिनों में पाठ्य पुस्तकें, 60 दिनों में कार्यपुस्तिकाएं उपलब्ध करानी हैं। पर 10 जून तक स्थिति यह है कि 52 लाख से अधिक बच्चों की पढ़ाई प्रभावित हो रही है। बरेली, लखीमपुर, सहारनपुर, बांदा, उन्नाव जैसे जिलों में वितरण बेहद धीमा और निर्धारित मानकों से पीछे है।
1 . बरेली
बरेली में अभी तक लगभग 5 लाख किताबें विद्यालयों तक पहुंच चुकी हैं, पर अपेक्षित से डेढ़ लाख की कमी बनी हुई है।
२. लखीमपुर खीरी
यहाँ कुल 5,67,784 किताबों का ऑर्डर था, लेकिन अब तक एक भी पुस्तक या कार्यपुस्तिका नहीं मिली है।
३. सहारनपुर
पुस्तकों का 70% और कार्यपुस्तिकाओं का केवल 38% ही वितरित हो सका है।
4. बांदा
यहाँ 46% किताबें ही विद्यालयों तक पहुंची हैं।
5 . उन्नाव
ज़िला संयोजक बताते हैं कि एक भी किताब उपलब्ध नहीं हुई, साथ ही 1.5 लाख कार्यपुस्तिकाओं का वितरण तमाम है।
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47 जिलों में कार्यपुस्तिकाएं शून्य हैं, जिसमें प्रमुख हैं: आगरा, अमेठी, अयोध्या, बागपत, बांदा, बस्ती, बिजनौर, चंदौली, गाजियाबाद, गाजीपुर, गोरखपुर, गोंडा, झांसी, कन्नौज, कौशाम्बी, लखीमपुर, मथुरा, मुजफ्फरनगर, प्रयागराज, रायबरेली, सहारनपुर, सुलतानपुर, वाराणसी, उन्नाव आदि। इसमें कई पिछड़े और ग्रामीण जिलों की स्थिति बेहद गंभीर है।
यह देरी कोई नई समस्या नहीं है। समाचारों के अनुसार दिल्ली के सरकारी स्कूलों में भी महीनों तक किताबें नहीं पहुंची। यूपी में पिछले वर्षों में ठेके प्रक्रिया व विधानसभा चुनाव की मॉडल कोड की वजह से अगस्त या सितंबर तक डिलीवरी स्थगित हो चुकी है । इस बार भी बेसिक शिक्षा विभाग की रफ्तार अपेक्षाकृत धीमी रही है।
फरीदाबाद की फर्म से मिली शिकायतों में यह साफ़ हुआ कि जो किताबें व कार्यपुस्तिकाएं वितरित की गई हैं, उनमें पुस्तक का कागज मानक के अनुरूप नहीं है। यह शिकायत कई जिलों, जैसे बरेली-अगरा आदि से मिल रही है।
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वितरण की मॉनीटरिंग के लिए जो गूगल सीट पोर्टल बनाया गया था, उस पर अभी तक नियमित अपडेट नहीं कराए गए हैं। यही कारण है कि कई जिलों में डेटा उपलब्ध नहीं और वितरण कार्य अधर में पड़ा है।
राज्य पाठ्यपुस्तक अधिकारी माधव तिवारी ने कहा कि “गूगल सीट पर अपडेट का कार्य जल्द पूरा किया जाएगा। प्रतिदिन डेटा अपडेट के निर्देश डीबीएमइएस के माध्यम से जिलाधिकारियों को भेजे जा रहे हैं।”
कक्षा एक से तीन के बच्चे स्कूल तो जा रहे हैं पर उन्हें पुस्तकें ना मिलने से भारी शैक्षणिक रुकावट झेलनी पड़ रही है। शिक्षक मजबूरन वर्कशीट-आधारित शिक्षा दे रहे हैं, जबकि सूत्रों की मानें, ऐसी स्थिति का लगातार दो माह तक रहना बच्चों की सीख को प्रभावित करता है। बच्चों का कहना है कि“नया सत्र शुरू हुआ पर हमें किताब दें ही नहीं, पापा को नोट बनवाने पड़ रहे हैं।”
राज्य सरकार और बेसिक शिक्षा विभाग ने जल्द सुधार के निर्देश जारी किए हैं:
शिक्षा विशेषज्ञ डॉ. रचना शर्मा कहती हैं कि “पाठ्य पुस्तकों का देर से मिलने से प्राथमिक शिक्षा की नींव कमजोर होती है। कक्षा 1–3 में बच्चों पर प्रभाव पड़ता है क्योंकि वे बेसिक्स पर ही आगे बढ़ते हैं।”
भूषण सिंह, रियल टाइम शिक्षा एनालिस्ट, कहते हैं कि “टेक्नोलॉजी का उपयोग केवल पोर्टल बनाने तक सीमित नहीं रहना चाहिए, बल्कि ट्रैकिंग व सत्यापन के साथ शिक्षा विभाग को डेटा-ड्रिवन निर्णय लेने चाहिए।”
Published on:
23 Jun 2025 08:59 pm