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Transfer Policy: पटरी से उतरी तबादला एक्सप्रेस: 1000 से ज्यादा तबादले रद्द, कर्मचारियों में नाराजगी

Transfer Turmoil in UP: उत्तर प्रदेश सरकार की स्थानांतरण नीति की पारदर्शिता पर सवाल खड़े हो गए हैं। दर्जनों विभागों में 1000 से अधिक तबादले निरस्त कर दिए गए हैं। कर्मचारी संगठनों ने नीति की धज्जियां उड़ने और लेनदेन के आरोप लगाते हुए मुख्यमंत्री को पत्र लिखकर जांच की मांग की है।

लखनऊ

Ritesh Singh

Jun 21, 2025

राज्य कर्मचारी परिषद ने मुख्यमंत्री को लिखा पत्र फोटो सोर्स : Social Media
राज्य कर्मचारी परिषद ने मुख्यमंत्री को लिखा पत्र फोटो सोर्स : Social Media

Transfer Policy Upset: उत्तर प्रदेश सरकार की बहुप्रचारित पारदर्शी स्थानांतरण नीति अब सवालों के घेरे में है। राज्य कर्मचारी संयुक्त परिषद ने मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ को एक विस्तृत पत्र भेजकर प्रदेश में विभिन्न विभागों में हो रहे स्थानांतरणों की भारी गड़बड़ियों पर चिंता जताई है। परिषद का कहना है कि "तबादला एक्सप्रेस" पूरी तरह से पटरी से उतर चुकी है।

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स्थानांतरण नीति की धज्जियां उड़ाई गईं

राज्य कर्मचारी संयुक्त परिषद के अध्यक्ष जेएन तिवारी ने आरोप लगाया है कि मुख्य सचिव द्वारा 6 मई 2025 को जारी की गई स्थानांतरण नीति के बावजूद विभिन्न विभागों में भारी अनियमितताएं हुई हैं। इस नीति में पारदर्शिता, ऑनलाइन आवेदन, मेरिट आधारित निर्णय और निष्पक्षता को प्राथमिकता दी गई थी। इसे 15 जून तक पूरा करने के स्पष्ट निर्देश दिए गए थे।

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1000 से अधिक तबादले रद्द, स्थानांतरण सत्र शून्य घोषित

तिवारी के अनुसार अब तक निबंधन, होम्योपैथी, बेसिक शिक्षा, स्वास्थ्य, वन, पशुधन, स्टांप रजिस्ट्रेशन, कृषि जैसे दर्जनों विभागों में 1000 से अधिक स्थानांतरण निरस्त किए जा चुके हैं। स्थानांतरण सत्र को शून्य घोषित कर दिया गया है, जो कि एक असाधारण कदम है। इससे स्पष्ट होता है कि स्थानांतरणों में पारदर्शिता और निष्पक्षता नहीं बरती गई।

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निबंधन विभाग में सबसे ज्यादा गड़बड़ी

सबसे चौंकाने वाली बात यह है कि निबंधन विभाग, जो सीधे प्रमुख सचिव कार्मिक के अधीन है, वहीं सबसे अधिक गड़बड़ी देखने को मिली है। मुख्यमंत्री को हस्तक्षेप करना पड़ा और निबंधन विभाग के सभी तबादले निरस्त करने पड़े। यह दर्शाता है कि नीति के संरक्षक ही इसकी अनुपालना नहीं कर पा रहे।

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खाद्य एवं रसद विभाग में मनमानी

खाद्य एवं रसद विभाग में संगठनों के पदाधिकारियों के स्थानांतरण मनमाने ढंग से किए गए हैं। संगठनों द्वारा दी गई स्थानांतरण संबंधी सूचियों की अनदेखी की गई है। न ही व्यक्तिगत अनुरोधों को गंभीरता से लिया गया और न ही सेवा अवधि या स्थायित्व जैसे मानकों का पालन किया गया।

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स्वास्थ्य विभाग ने रद्द किए तबादले

स्वास्थ्य मंत्री ने भी स्थिति की गंभीरता को देखते हुए विभागीय स्तर पर सभी स्थानांतरण रद्द कर दिए हैं। इसी प्रकार आयुष, होम्योपैथी, पशुधन, वन विभाग, कृषि विभाग जैसे अन्य संवेदनशील विभागों में भी स्थानांतरण सत्र को रद्द कर दिया गया है।

12-15 वर्षों से जमे कर्मियों को नहीं हटाया गया

परिषद का आरोप है कि जिन कर्मचारियों को 12-15 वर्षों से एक ही स्थान पर कार्यरत होने के बावजूद नहीं हटाया गया, वहीं दूसरी ओर अपेक्षाकृत नए और कम वर्षों से कार्यरत कर्मचारियों को जबरन स्थानांतरित कर दिया गया। इससे विभागीय मनोबल पर प्रतिकूल असर पड़ा है।

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स्थानांतरण बना उद्योग

परिषद ने अपने पत्र में स्पष्ट किया है कि स्थानांतरण एक बार फिर से उद्योग का रूप ले चुका है। इसमें मोटे पैमाने पर लेनदेन और सिफारिश की भूमिका सामने आ रही है। विगत वर्षों में मुख्यमंत्री द्वारा की गई पारदर्शिता की कोशिशों पर इस बार विभागों ने पानी फेर दिया है।

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मुख्यमंत्री से की कार्रवाई की मांग

जेएन तिवारी ने अपने पत्र में मुख्यमंत्री से मांग की है कि सभी विभागों में की गई स्थानांतरण प्रक्रियाओं की उच्च स्तरीय जांच कराई जाए और दोषी अधिकारियों पर कड़ी कार्रवाई की जाए। उन्होंने चेतावनी दी है कि यदि इस पर शीघ्र कार्रवाई नहीं हुई तो राज्य कर्मचारी आंदोलन का रास्ता अख्तियार कर सकते हैं।

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नीति पर गंभीर प्रश्न

पूरे घटनाक्रम ने 6 मई को जारी स्थानांतरण नीति की गंभीरता और उपयोगिता पर सवाल खड़े कर दिए हैं। जब स्वयं प्रमुख सचिव के अधीन विभाग ही पारदर्शिता की राह से भटक जाए तो बाकी विभागों से उम्मीद करना बेमानी होगा। यह न सिर्फ कर्मचारियों के मनोबल को तोड़ता है, बल्कि शासन की विश्वसनीयता को भी प्रभावित करता है।