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UP में स्कूल विलय को हाईकोर्ट की मंजूरी, एक किलोमीटर में स्कूल की बाध्यता नहीं

UP School Court News: उत्तर प्रदेश सरकार को स्कूलों के विलय मामले में हाईकोर्ट से बड़ी राहत मिली है। लखनऊ खंडपीठ ने स्कूल एकीकरण को चुनौती देने वाली याचिकाएं खारिज करते हुए कहा कि शिक्षा का अधिकार तो है, लेकिन यह जरूरी नहीं कि स्कूल एक किलोमीटर के भीतर ही स्थापित किया जाए।

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लखनऊ

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Ritesh Singh

Jul 08, 2025

शिक्षा का अधिकार बाध्यकारी, पर दूरी की सीमा तय नहीं; याचिकाएं खारिज फोटो सोर्स : Social Media

शिक्षा का अधिकार बाध्यकारी, पर दूरी की सीमा तय नहीं; याचिकाएं खारिज फोटो सोर्स : Social Media

UP Government School Merger: उत्तर प्रदेश सरकार को स्कूली शिक्षा के क्षेत्र में एक महत्वपूर्ण कानूनी राहत मिली है। इलाहाबाद हाईकोर्ट की लखनऊ पीठ ने स्कूलों के विलय के खिलाफ दाखिल की गई याचिकाओं को खारिज कर दिया है। कोर्ट ने अपने स्पष्ट निर्णय में कहा है कि संविधान के अनुच्छेद 21 ए के तहत बच्चों को निःशुल्क और अनिवार्य शिक्षा का अधिकार है, परंतु यह अनिवार्य नहीं है कि यह सुविधा एक किलोमीटर के दायरे में ही दी जाए।

यह फैसला न्यायमूर्ति पंकज भाटिया की एकल पीठ ने सीतापुर की कृष्णा कुमारी समेत 51 छात्रों और अन्य याचिकाओं की एक साथ सुनवाई करते हुए पारित किया। कोर्ट का यह निर्णय शुक्रवार को सुनवाई पूरी होने के बाद सोमवार को सुनाया गया, जिसमें राज्य सरकार की स्कूल विलय नीति को वैध ठहराते हुए याचिकाएं खारिज कर दी गईं।

क्या थी याचिकाओं की आपत्ति

याचिकाकर्ताओं ने सरकार के 16 जून 2025 के उस आदेश को चुनौती दी थी, जिसमें राज्य के विभिन्न प्राथमिक विद्यालयों का एकीकरण करने का निर्णय लिया गया था। याचिकाओं में यह तर्क दिया गया कि यह निर्णय अनुच्छेद 21ए और शिक्षा का अधिकार अधिनियम, 2009 के नियमों का उल्लंघन करता है। उनका कहना था कि छह से 14 वर्ष के बच्चों के लिए एक किलोमीटर के दायरे में स्कूल की उपलब्धता सुनिश्चित करना राज्य सरकार की जिम्मेदारी है, और स्कूलों का विलय इस दायित्व से भागने जैसा है।

कोर्ट की टिप्पणी: अधिकार है, लेकिन सीमा तय नहीं

कोर्ट ने कहा कि संविधान का अनुच्छेद 21 ए अनिवार्य और निःशुल्क शिक्षा का अधिकार तो देता है, लेकिन उसमें यह निर्दिष्ट नहीं किया गया है कि शिक्षा एक विशेष दूरी, जैसे कि एक किलोमीटर, के भीतर ही दी जाए। कोर्ट ने कहा कि इस अधिकार की व्याख्या करते समय व्यवहारिकता और संसाधनों की उपलब्धता का ध्यान रखना जरूरी है।

कोर्ट ने तर्क दिया कि अगर याचिकाकर्ताओं की दलीलों को पूरी तरह स्वीकार कर लिया जाए तो राज्य सरकार को प्रदेश की वर्तमान जनसंख्या के अनुसार आठ लाख स्कूल खोलने होंगे, जो कि न तो व्यावहारिक है और न ही वर्तमान आर्थिक, सामाजिक और भौगोलिक परिस्थितियों में संभव।

"मृतप्राय व्याख्या नहीं होनी चाहिए"

कोर्ट ने स्पष्ट किया कि किसी भी नियम की व्याख्या इस प्रकार होनी चाहिए कि वह नीतिगत दृष्टिकोण से प्रभावी और व्यवहार में लाने योग्य हो। ऐसी व्याख्या, जिससे कोई नियम केवल कागजों में रह जाए और व्यावहारिक रूप से लागू करना असंभव हो, वह स्वीकार्य नहीं है।

न्यायालय ने कहा कि शिक्षा का अधिकार कानून का उद्देश्य यह है कि हर बच्चे को शिक्षा मिले, न कि प्रत्येक किलोमीटर पर एक स्कूल अनिवार्य रूप से हो। इसके स्थान पर सरकार संसाधनों के युक्तिसंगत उपयोग और शैक्षणिक गुणवत्ता को बेहतर करने की दिशा में कार्य कर सकती है।

स्कूलों का विलय क्यों जरूरी

राज्य सरकार ने यह कदम शिक्षा व्यवस्था को मजबूत करने और संसाधनों के बेहतर उपयोग की दृष्टि से उठाया है। एक ही ग्राम पंचायत या मोहल्ले में पास-पास कई छोटे स्कूल चल रहे थे, जिनमें छात्रों की संख्या अत्यंत कम थी। ऐसे में न केवल संसाधनों का दुरुपयोग हो रहा था, बल्कि गुणवत्तापूर्ण शिक्षा की राह में भी बाधाएं आ रही थीं। स्कूलों के विलय से एकीकृत स्कूलों में छात्र संख्या बढ़ेगी, शिक्षक पर्याप्त मात्रा में तैनात रहेंगे और शिक्षण-अधिगम की प्रक्रिया को और सुदृढ़ किया जा सकेगा। इससे भवनों, शिक्षकों और सुविधाओं का एकीकृत प्रबंधन भी संभव हो सकेगा।

शिक्षाविदों का मानना है कि यह फैसला न केवल राज्य सरकार की शिक्षा नीति को मजबूती प्रदान करता है, बल्कि राष्ट्रीय शिक्षा नीति 2020 के उद्देश्यों के भी अनुरूप है। राष्ट्रीय शिक्षा नीति में भी विद्यालयों को 'स्कूल कॉम्प्लेक्स' या 'क्लस्टर' के रूप में विकसित करने की बात कही गई है, जिससे संसाधनों का इष्टतम उपयोग और विद्यार्थियों को बेहतर शैक्षणिक वातावरण मिल सके। वरिष्ठ अधिवक्ता अशोक त्रिपाठी ने कहा, "यह निर्णय दूरदर्शिता से लिया गया है। संविधानिक दायित्वों की व्याख्या करते हुए कोर्ट ने व्यावहारिकता को प्राथमिकता दी है, जो न्यायिक दृष्टिकोण से सराहनीय है।"

सरकार की ओर से क्या कहा गया

राज्य सरकार के अधिवक्ताओं ने कोर्ट में तर्क दिया कि स्कूलों का विलय किसी भी बच्चे को शिक्षा से वंचित नहीं करता, बल्कि इस कदम का उद्देश्य है कि उपलब्ध संसाधनों से अधिकतम बच्चों को बेहतर शिक्षा उपलब्ध कराई जा सके। उन्होंने यह भी बताया कि जहां आवश्यक होगा, वहां परिवहन की सुविधाएं भी मुहैया कराई जाएंगी, ताकि बच्चों को स्कूल तक पहुंचने में कठिनाई न हो।

भविष्य में असर क्या होगा

इस निर्णय के बाद राज्य सरकार अब स्कूलों के एकीकरण की प्रक्रिया को और तेजी से आगे बढ़ा सकती है। जिन स्थानों पर बच्चों की संख्या अत्यंत कम है, वहां के विद्यालयों को पास के विद्यालयों में मिलाकर एकीकृत किया जाएगा। इससे न केवल शिक्षकों की कमी दूर होगी, बल्कि विद्यालयों में लाइब्रेरी, कंप्यूटर लैब और खेलकूद जैसी सुविधाओं का भी एक केंद्रीकृत विकास हो सकेगा।