
World Book Day 2022 Theme, Massage and Special Books
कहते हैं किताबों से सच्चा कोई मित्र नहीं हो सकता। क्योंकि किताबें न केवल ज्ञान देती हैं बल्कि जीवन की सच्चाइयों से रूबरू करता है। संयुक्त राष्ट्र शैक्षिक, वैज्ञानिक तथा सांस्कृतिक संगठन द्वारा 23 अप्रैल 1995 में विश्व पुस्तक और कॉपीराइट दिवस की शुरुआत की गई थी। इंसानों से ज्यादा किताबों की भाषा समझना आसान है। लेकिन इंटरनेट और फोन की दुनिया में किताबें हाथों से छूट गई हैं। ऐसा हम नहीं बल्कि पुस्तक विक्रेताओं और आंकड़ों का कहना है। आंकड़ों के अनुसार ऑनलाइन किताबों की खरीदारी में 40 फीसदी गिरानट आई। जबकि स्टॉल्स से खरीदने वाले मात्र 20-25 फीसदी लोग हैं।
किताबों का ज्ञान जीवन जीने का तरीका सिखाता है और इन्हीं के माध्यम से आप अपनी बात भी लोगों के सामने बेहद आसान तरीके से रख सकते हैं। हालांकि आज के समय में ज्यादातर लोग स्मार्टफोंस और डिजिटल गैजेट्स की तरफ अपना रुझान दिख रहा है। ऐसे में हर साल 23 अप्रैल को मनाए जाने वाला विश्व पुस्तक दिवस लोगों को न केवल किताबों के महत्व के बारे में बताना है बल्कि कुछ ऐसी किताबें के बारे में बताना है जो जीवन से और ब्रह्मांड से जुड़ी हैं। कई ऐसी किताबें है, जिन्होंने लोगों के जीवन में बदल दिया।
विश्व पुस्तक दिवस 2022 थीम
गाम्बिया और वैश्विक समुदाय ने इस वर्ष के विश्व कॉपीराइट और पुस्तक दिवस की थीम 'आर यू ए रीडर' रखी है। प्रत्येक वर्ष, यूनेस्को और अंतर्राष्ट्रीय संगठन पुस्तक उद्योग के तीन प्रमुख क्षेत्रों का प्रतिनिधित्व करते हैं, जिसमें प्रकाशक, बुकसेलर, और पुस्तकालय को शामिल किया जाता है। अपनी स्वयं की पहल के माध्यम से एक साल की अवधि के लिए विश्व पुस्तक राजधानी का चयन करते हैं। इसी थीम पर जगह जगह संस्थानों में कार्यक्रमों का आयोजन किया गया।
लोगों को आकर्षित करती हैं किताबें
इस दिन यूनेस्को और इसके अन्य सहयोगी संगठन आगामी वर्ष के लिए 'वर्ल्ड बुक कैपिटल' का चयन करते हैं। इसका उद्देश्य है कि अगले एक वर्ष के लिए किताबों से संबंधित होने वाले कार्यक्रम आयोजित हों। आने वाली नई किताबों को लेकर पाठकों को जागरूक किया जा सके। उनका रुझान अधिक से अधिक किताबों की तरफ करने की कोशिश रहती है। ऐसी किताबों को प्रस्तुत किया जाता है, जो लोगों को खुद आकर्षित करती हैं।
क्या है स्थिति
किताबों के कारोबारी अनिल खेतान बताते हैं कि अब से दो साल पहले बच्चों से लेकर बुजुर्गों तक में ज्ञानदायक उपन्यासों की मांग रहती थी। लेकिन अब मात्र 20-25 फीसदी ही ऐसे लोग बचे जो किताबें लेते हैं। बच्चों की संख्या बहुत कम हो गई है। ऑनलाइन दुनिया लोग अधिक रुचि रखने लगे हैं।
जर्जर हो गए पुस्तकालय
एक समय था जब पुस्तकालयों में बैठ कर पढ़ने के लाइन लगती थी। अब पुस्तकालयों के भवन जर्जर हो गए हैं। कानपुर और इटावा में हुई एक पड़ताल में पता चला कि पुस्ताकालयों में किताबें और शांति का मौहाल तो हैं लेकिन लोगों के न आने से अब जीव जंतुओं अपना आशियाना बना लिया है।
Published on:
23 Apr 2022 10:57 am
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