निवेशकों को 9 लाख करोड़ रुपए से ज्यादा का नुकसान
शुक्रवार को सेंसेक्स और निफ्टी में काफी गिरावट देखने को मिली है। वहीं 50 दिनों का ट्रैक देखें तो सेंसेक्स में 29 मई से 19 जुलाई तक 1165 अंकों की गिरावट आ चुकी है। यही हाल कुछ निफ्टी का भी देखने को मिला है। निफ्टी 50 समान अवधि में 442 अंक नीचे आ चुके है। निवेशकों के नुकसान की बात करें तो बीएसई मार्केट कैप के लिहाज से बड़ा नुकसान है। 29 मई को बीएसई का मार्केट कैप 1,54,58,305.78 करोड़ रुपए था। जबकि 19 जुलाई को सेंसेक्स गिरा तो मार्केट कैप 1,45,38,709.12 पर था। यानि दोनों दिनों के अंतर को देखा जाए तो 9.19 लाख करोड़ रुपए का है। जो इंवेस्टर्स का नुकसान है। खास बात ये है 2 लाख करोड़ रुपए का नुकसान सिर्फ 19 जुलाई का ही है।
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50 दिनों में सेंसेक्स और निफ्टी की स्थिति
दिनांक | सेंसेक्स (अंकों में) | निफ्टी (अंकों में) | बीएसई मार्केट कैप (करोड़ रुपए में) |
29 मई | 39,502.05 | 11,861.10 | 1,54,58,305.78 |
19 जुलाई | 38,337.01 | 11,419.25 | 1,45,38,709.12 |
गिरावट | 1165 | 442 | 9.19 लाख |
बैंकिंग, ऑटो और कैपिटल गुड्स सब सेक्टर धड़ाम
अगर सेक्टोरल इंडेक्स की बात करें तो 50 दिनों के लिहाज से सभी सेक्टर धराशायी हैं। बैंक निफ्टी 29 मई से 19 जुलाई तक 1525 अंक नीचे जा चुका है। वहीं बैंक एक्सचेंज 1722.32 अंक लुढ़का है। सबसे ज्यादा नुकसान ऑटो सेक्टर को हुआ है। ऑटो सेक्टर को समान अवधि में 2428 अंकों की पटखनी खानी पड़ी है। कैपिटल गुड्स सेक्टर में 1881.65 अंकों की बिकवाली हुई और कंज्यूमर ड्यूरेबल्स 1685 अंकों की गिरावट पर रहा। इसके अलावा फार्मा और मेटल क्रमश: 540.16 और 675 अंकों की गिरावट पर आ चुके हैं। आईटी सेक्टर इन 50 दिनों में सपाट ही दिखाई दिया है।
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50 दिनों में सेक्टर्स में गिरावट
सेक्टर्स | 29 मई की क्लोजिंग (अकों में) | 19 जुलाई की क्लोजिंग (अकों में) | गिरावट (अकों में) |
बैंक निफ्टी | 31295 | 29,770.35 | 1525 |
बीएसई ऑटो | 18689.50 | 16261.50 | 2428 |
बैंक एक्स | 35186.36 | 33,464.04 | 1722.32 |
ऑयल एवं गैस | 15469.96 | 13,905.95 | 1564.01 |
फार्मा | 13312.60 | 12,772.44 | 540.16 |
मेटल | 10,914.50 | 10,239.65 | 675 |
कैपिटल गुड्स | 19,908.57 | 18026.92 | 1881.65 |
कंज्यूमर ड्यूरेबल्स | 24,612.90 | 22927.82 | 1685 |
एफएमसीजी | 11,629.24 | 11087.43 | 541.81 |
44 हजार रुपए का सपना धराशाई
मार्केट एक्सपर्ट और तमाम जानकारों ने प्रिडिक्ट किया था कि अगर देश में मोदी सरकार एक बार फिर से मैजोरिटी के साथ आती है तो जुलाई 2019 तक सेंसेक्स 44 हजार को पार कर सकता है। यहां तक निफ्टी 50 के 15 हजार के पार होने का अनुमान लगाया गया था। मौजूदा स्थिति किसी से छिपी नहीं है। शुक्रवार को सेंसेक्स और निफ्टी 60 दिनों के निचले स्तर पर पहुंच गए हैं। जानकारों की मानें तो सेंसेक्स और निफ्टी दोनों उबरने में थोड़ा वक्त लग सकता है। क्योंकि कई सेक्टर्स गिरावट पर हैं। मिडकैप और स्मॉलकैप कंपनियों में भी काफी निराशा छाई हुई है। ऐसे में सेंसेक्स और अपने पीक पर पहुंचने वक्त लग सकता है।
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बजट और ग्लोबल स्लो डाउन सबसे बड़ी वजह
केडिया कमोडिटी के डायरेक्टर अजय केडिया का कहना है कि यह बात पूरी तरह से सही है कि सेंसेक्स और निफ्टी को जिस उंचाई पर होना चाहिए था वो वहां नहीं है। सभी को उम्मीद थी कि मजबूत सरकार के आने के बाद बाजार उठेगा, लेकिन पिछले 50 दिनों में जिस तरह से मार्केट रहा उसके कई डॉमेस्टिक और ग्लोबल कारण हैं। बजट में जिस तरह से लोगों को घोषणाओं की उम्मीद थी वो नहीं हुई। जिससे निवेशक काफी निराश दिखाई दे रहे हैं। साथ एफपीआई पर टैक्स भी बड़ा कारण है। पिछले दिनों में एफपीआई में बड़ी बिकवाली देखने को मिली है। वहीं तमाम इंटरनेशनल इकोनॉमिक एजेंसीज ने ग्लोबल स्लोडाउन के संकेत दिए थे। जिसका असर देखने को मिल रहा है।
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यह भी बने कारण
वहीं एंजेल ब्रोकिंग रिसर्च एंड कमोडिटीज के डिप्टी वाइस प्रेसीडेंट अनुज गुप्ता ने कहा कि मौजूदा समय में करंट अकाउंट डेफिसिट और पेट्रोल डीजल की कीमतों में वृद्घि हुई है। जिसकी वजह से मार्केट में गिरावट देखने को मिल रही है। एफआईएस में जिस तरह की बिकवाली देखने को मिली है वो भी बड़ा रीजन माना जा रहा है। इसके अलावा यूएस ने फेवर्ड नेशन दर्जा खत्म करने का भी असर बाजार में देखने को मिल रहा है। अजुज ने आगे बताया कि इकोनॉमिक ग्रोथ के नंबर्स भी पिछले महीनों खास नहीं रहे हैं। ऐसे में बाजार का गिरना लगातार जारी है।
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5 ट्रिलियन डॉलर इकोनॉमी बनने पर भी संशय
देश की नरेंद्र मोदी सरकार ने बजट में दावा किया है कि अगले पांच सालों में भारत 5 ट्रिलियन डॉलर की इकोनॉमी बन जाएगा। अब इसमें भी सवालिया निशान खड़े हो गए हैं। जानकारों की मानें तो मौजूदा समय में देश की विकास दर चल रही है वो 5 ट्रिलियन डॉलर इकोनॉमी बनने की ओर इशारा नहीं कर रही है। वहीं दुनिया की इकोनॉमी में भी स्लोडाउन जारी है। इस माहौल में भारत की विकास दर बाकी देशों से बेहतर हो संभव है, लेकिन देश की इकोनॉमी को 5 ट्रिलियन तक लेकर जाए, इसमें थोड़े सवाल जरूर खड़े हो रहे हैं।
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