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Gandhi Jayanti : गांधी जी ने यहां गुजारी थी रात, अंग्रेजों से लोहा लेने की बनायी रणनीति

महात्मा गाँधी जी ने एक रात मथुरा में गुजारी थी और यहीं से आंदोलन की रणनीति तैयार की थी।

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मथुरा

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Amit Sharma

Oct 01, 2019

Gandhi Jayanti : गांधी जी ने यहां गुजारी थी रात, अंग्रेजों से लोहा लेने की बनायी रणनीति

Gandhi Jayanti : गांधी जी ने यहां गुजारी थी रात, अंग्रेजों से लोहा लेने की बनायी रणनीति

मथुरा। देश को आजाद कराने के लिए राष्ट्रपिता महात्मा गांधी जी ने अपना सर्वस्व न्यौछावर कर दिया। उन्होंने देश की आजादी की खातिर अपना पूरा जीवन लगा दिया। देश भर में घूम-घूम कर आजादी की अलख जगाई। इसी दौरान गाँधी जी ने एक रात मथुरा में गुजारी थी और यही से आंदोलन की रणनीति तैयार की थी। आज भी वो स्थान मथुरा में मौजूद है और गाँधी जी के यहाँ आकर रुकने की दस्ता बयां करता है।

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यहां आकर रुके थे गांधी जी

देश को आजाद कराने में कई महान पुरुषों ने अपने प्राणों की आहुति दे दी और आज भी उन महापुरुषों के निशान कहीं न कहीं आपको देखने को जरूर मिलेंगे। ऐसी एक याद जुड़ी है धर्म नगरी और महात्मा गांधी जी की। राष्ट्रपिता आजादी के समय मथुरा आए थे और एक रात राष्ट्रपिता महात्मा गांधी ने मथुरा में गुजारी थी। कहा यह भी जाता है कि यहीं एक रात गुजारने के बाद राष्ट्रपिता महात्मा गांधी ने अंग्रेजों से लोहा लेने की रणनीति बनाई थी। मथुरा के हृदय स्थल से करीब 500 मीटर की दूरी पर स्थित रंगेश्वर मंदिर के सामने बना है पुराना पोस्ट ऑफिस, यह पोस्ट ऑफिस महात्मा गांधी के यहां एक रात रुकने की दास्तां बयां करता है। पहले यहां पोस्ट ऑफिस हुआ करता था और आज यहां पोस्ट ऑफिस एक फर्नीचर के शोरूम में तब्दील हो गया है।

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पुराना पोस्ट ऑफिस के नाम से जानी जाती है बिल्डिंग

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फर्नीचर शोरूम के मालिक संजय अग्रवाल से हमने जब इस बिल्डिंग के बारे में जानकारी की तो संजय अग्रवाल ने बताया 1928 के आसपास यह पुराना पोस्ट ऑफिस हुआ करता था। उन्होंने कहा कि हमारे बुजुर्ग बताया करते थे एक रात यहां गांधीजी आकर रुके थे तब यहां कुछ नहीं था केवल यही एक बिल्डिंग ऐसी थी जो पूरे इलाके में थी।

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गांधी जी ने बनाई थी आजादी की रणनीति

ऐसा कहा जाता है कि जब गांधी जी यहां मथुरा आए थे वह अंग्रेजों से चोरी छिपे मथुरा पहुंचे और उन्होंने इस बिल्डिंग में रुक कर अपने सहयोगियों के साथ देश को आजादी दिलाने की रणनीति तैयार की थी।

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सैकड़ों साल पहले रही थी कंस की कचहरी

वर्तमान शोरूम मालिक संजय अग्रवाल ने यह भी बताया कि यहां कंस की कचहरी लगा करती थी। बिल्डिंग के ठीक सामने कंस टीला है और यहीं से कंस मेले की शुरुआत की जाती है।

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1947 में ख़रीदी बिल्डिंग

संजय का कहना है कि हमारे पर बाबा विट्ठल दास और बाबा गिर्राज मल ने इस बिल्डिंग को 1947 के आसपास खरीदा था और पिता लक्ष्मण प्रसाद इस बिल्डिंग के बारे में बहुत कुछ बताया करते थे। पिताजी ने गांधीजी को रोकने की बात भी बताई थी और देश विदेश से इसे देखने के लिए लोग यहां आते हैं और इसकी फोटो भी खींच कर ले जाते हैं।