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मुख्तार परिवार की ‘सल्तनत’ खतरे में! मऊ सीट पर अब्बास के बाद कौन…?

मऊ में मुख्तार अंसारी परिवार की 29 साल पुरानी पकड़ खतरे में है। हेट स्पीच मामले में सजा के बाद अब्बास अंसारी की विधायकी रद्द हो गई है। ऐसे में मऊ विधानसभा सीट पर उपचुनाव के आसार दिख रहे हैं।

मऊ

Aman Pandey

Jun 15, 2025

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हेट स्पीच मामले में सजा के बाद अब्बास अंसारी की विधायकी रद्द हो गई है। ऐसे में मऊ विधानसभा सीट पर उपचुनाव के आसार दिख रहे हैं। PC: Patrika

यूपी की राजनीति में "मऊ" महज एक सीट नहीं, बल्कि लंबे समय से चली आ रही वर्चस्व की कहानी है। प्रदेश में चाहें लोकसभा चुनाव हो या विधानसभा चुनाव, अगर मऊ की चर्चा न हो तो सब फीका नजर आता है। मऊ सदर सीट पर पिछले दो दशकों से अंसारी परिवार का दबदबा रहा है। अब हेट स्पीच मामले में अब्बास की विधायकी जाने के बाद ये सीट खाली हुई है, जिससे सियासी भूचाल की आहट सुनाई दे रही है। बाहुबली मुख्तार अंसारी और उनके बेटे अब्बास अंसारी के बाद अब यह सीट उपचुनाव के जरिए किसी नए चेहरे को तलाशने जा रही है।

अंसारी परिवार की सल्तनत पर विराम?

दरअसल, 1996 से 2017 तक मऊ सदर सीट पर मुख्तार अंसारी के परिवार का दबदबा रहा है। मुख्तार अंसारी मऊ सदर से पांच बार विधायक रहे। एक समय पर उन्होंने बसपा, कौमी एकता दल और निर्दलीय के तौर पर भी इस सीट पर जीत हासिल की। 2022 में जेल में बंद होने की वजह से उन्होंने अपने बेटे अब्बास अंसारी को मैदान में उतारा और SBSP (सुहेलदेव भारतीय समाज पार्टी) के टिकट से ऐतिहासिक जीत दिलाई।

अब्बास अंसारी ने भाजपा के अशोक सिंह को हराकर यह साबित कर दिया कि मऊ में अभी भी अंसारी परिवार की मजबूत पकड़ है। लेकिन 31 मई 2025 को अदालत ने अब्बास को एक भड़काऊ भाषण के मामले में दो साल की सजा सुनाई और जुर्माना लगाया। इसके बाद उनकी विधायकी स्वतः समाप्त हो गई। इसी के साथ मऊ सीट खाली हो गई।

अब उपचुनाव की तैयारी

अब्बास अंसारी की सदस्यता रद्द होते ही मऊ में उपचुनाव की चर्चा शुरू हो गई है। समाजवादी पार्टी और SBSP फिर से अंसारी परिवार को प्रत्याशी बनाकर उतारना चाहती हैं। वहीं, दूसरी तरफ भाजपा इसे बाहुबल की राजनीति को खत्म करने के मौके के तौर पर देख रही है।

मऊ विधानसभा से कब और कौन जीता

मऊ सदर विधानसभा का पहला चुनाव 1957 में हुआ था। इस सीट से पहली बार 1957 में कांग्रेस की बेनी बाई ने चुनाव जीता था, लेकिन वह ज्यादा दिन तक विधायक नहीं रह सकीं। 1957 में ही उपचुनाव हुआ और कांग्रेस के सुदामा प्रसाद गोस्वामी विधायक बने। उसके बाद 1962 में एक बार फिर बेनी बाई ने कांग्रेस के टिकट पर जीत हासिल की। 1967 में यह सीट जनसंघ के बृज मोहन दास अग्रवाल ने कांग्रेस से छीन ली। इसके बाद 1969 में भारतीय क्रांति दल के हबीबुर्रहमान विजयी हुए। 1974 में अब्दुल बाकी ने कम्युनिस्ट पार्टी ऑफ इंडिया (CPI) से जीत दर्ज की। 1977 में राम जी ने जनता पार्टी के टिकट पर यह सीट अपने नाम की। 1980 में खैरुल बशर ने निर्दलीय प्रत्याशी के रूप में चुनाव जीता।

इसके बाद से ही इस सीट पर मुस्लिम प्रत्याशियों का वर्चस्व कायम हो गया। 1985 में अकबाल अहमद ने CPI से जीतकर पार्टी की वापसी कराई। 1989 में मोबिन अहमद ने बहुजन समाज पार्टी (BSP) को इस सीट पर पहली बार जीत दिलाई। 1991 में इम्तियाज अहमद ने फिर से CPI के लिए यह सीट जीती, लेकिन 1993 में नसीम खान ने BSP को दोबारा विजय दिलाई।1996 में पहली बार बाहुबली मुख्तार अंसारी को मऊ विधानसभा से बसपा ने प्रत्याशी बनाया और अंसारी भारी मतों से चुनाव जीतकर विधायक बने। इसके बाद अंसारी ने पलटकर नहीं देखा और लगातार इस सीट पर अंसारी परिवार का दबदबा रहा।

अंसारी परिवार की 29 साल की साख दांव पर

सत्ताधारी गठबंधन में खींचतान के बीच उपचुनाव अंसारी परिवार के लिए बड़ा इम्तिहान होगा। अंसारी परिवार के लिए 29 साल की साख दांव पर होगी। अंसारी परिवार का कोई सदस्य या परिवार समर्थित उम्मीदवार अगर मऊ सीट के उपचुनाव में हारता है, तो इसे इस सीट पर अंसारी परिवार की पकड़ कमजोर होने के रूप में देखा जा सकता है।

अंसारी परिवार से अब्बास के बाद कौन?

मुख्तार अंसारी की पत्नी अफ्शां अंसारी भी कई मामलों में वांछित हैं। मुख्तार की बहु और अब्बास अंसारी की पत्नी निकहत के खिलाफ भी केस दर्ज है। ऐसे में मऊ सीट से अब्बास के बाद उनकी मां या पत्नी के चुनाव मैदान में उतरने के आसार न के बराबर हैं। चर्चा में अब्बास के छोटे भाई उमर अंसारी का नाम जरूर है। उमर अंसारी मऊ विधानसभा क्षेत्र में भी सक्रिय हैं। इनके अलावा एक और नाम की चर्चा है, जो है गाजीपुर के सांसद अफजाल अंसारी की बेटी नुसरत का नाम। नुसरत पिछले साल हुए लोकसभा चुनाव के दौरान अपने पिता के प्रचार में एक्टिव नजर आई थीं।

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कोर्ट में अगली सुनवाई 21 जून को

बता दें कि अब्बास अंसारी ने अदालत के फैसले को सत्र न्यायालय में चुनौती दी है। उनके वकील का तर्क है कि तीन साल से कम की सजा होने के कारण, अपील लंबित रहने तक सदस्यता रद्द नहीं की जा सकती। इस पर अगली सुनवाई 21 जून को होनी है।