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हरित प्रदेश और जाट आरक्षण के लिए अजित सिंह ने राजनीतिक करियर भी लगा दिया था दांव पर

locationमेरठPublished: May 06, 2021 09:25:26 pm

Submitted by:

shivmani tyagi

कांग्रेस ने अजित सिंह को वर्ष 2011 में जाट आरक्षण का भरोसा देते हुए हरित प्रदेश पर विचार करने का दावा किया थाइसी दौरान वह कांग्रेस में शामिल हुए थे

अजित सिंह

अजित सिंह

पत्रिका न्यूज नेटवर्क

मेरठ ( meerut news) साल 2011 में रालोद सुप्रीमो अजित सिंह ( Ajit Singh )
को मनमोहन सरकार Congress के केंद्रीय कैबिनेट में नागरिक उड्डयन मंत्री बनाया गया था। यह अलग बात है कि इस दौरान उनके राजनैतिक सलाहकारों में एक रहे केपी मलिक ने कैबिनेट मंत्री का विरोध किया था जिस पर अजित सिंह की और उनकी बहस भी हुई थी। सलाहकारों का मानना था कि दो साल बाद यानी 2013 में चुनाव होने हैं और जिस प्रकार से कांग्रेस सरकार के भ्रष्टाचार और एंटीकम्बेंसी की लहर चल रही है ऐसे सय में कांग्रेस सरकार में शामिल होना पार्टी लिए नुकसानदायक साबित हो सकता है।
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उस दौरान अजित सिंह ने कहा था कि कांग्रेस उन्हें जाट आरक्षण दे रही है और हरित प्रदेश पर विचार करने का वादा भी कर रही है। अब बताओ इसमें क्या ग़लत है ? यह फैसला वे अपने मंत्री बनने के लिए नहीं बल्कि अपने लोगों के हितों के लिए कर रहे हैं। अजित सिंह ने अपने सलाहकारों से कहा था कि मंत्री तो वे कई बार रह चुके हैं और अब मंत्री बनने की उनकी कोई इच्छा भी नहीं है। तब सलाहकारों को ना चाहते हुए भी चुप रहना पड़ा था। अब उनके जाने पर लाेग समर्थक उन्हे याद करते हुए यही कह रहे है कि, ऐसे ही थे जाट समाज के लिए अपने राजनीतिक करियर को दांव पर लगाने वाले छोटे चौधरी। पश्चिमी उत्तर प्रदेश की राजनीतिक के जानकार केपी मलिक के अनुसार अजित सिंह ने लगभग 17 वर्षों तक अमेरिकी कम्प्यूटर इंडस्ट्री में कार्य किया और 1980 में चौधरी चरण सिंह के प्रशसकों और उनके अनुयायियों के आग्रह पर उनकी राजनीतिक विरासत को संभालने के लिए राजनीति में आ गये।
पहली बार 1989 में वीपी सिंह की सरकार में बने थे कैबिनेट मंत्री
बड़े चौधरी के अनुयायियों के अनुरोध पर उन्होंने राष्ट्रीय लोकदल नाम से एक पार्टी बनाई और उसके अध्यक्ष बने। इसी पार्टी के बैनर तले उन्होंने अपनी राजनीतिक पारी खेलनी शुरू की। उन्हें पहली बार साल 1989 में वीपी सिंह की सरकार की कैबिनेट में उद्योग मंत्री के रूप में शामिल किया गया था। साल 2001 में अटल बिहारी वाजपेयी की सरकार में उन्हें केंद्रीय कृषि मंत्री बनाया गया। साल 2004 में वे बागपत से पांचवें कार्यकाल के लिए 14वीं लोकसभा के लिए फिर से चुने गए। इस साल उन्होंने भाजपा के उम्मीदवार को दो लाख बीस हज़ार से अधिक मतों के भारी अंतर से हराया था। साल 2009 में उन्हें लोकसभा में संसदीय दल का नेता चुना गया। साल 2009 बागपत से छठा कार्यकाल पूरा करने के लिए उन्हें 15वीं लोकसभा के लिए फिर से चुना गया लेकिन उसके बाद 2014 में वे लोकसभा चुनाव हार गए थे लेकिन बागतप से उन्होंने कभी अपना नाता नहीं तोड़ा।
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