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…तो खुलने लगे महाभारत के रहस्‍य, योद्धाओं के शवों के साथ किया जाता था ऐसा काम

बागपत के बरनावा के आसपास के इलाकों में खुदाई से खुलनी शुरू हुईं इतिहास की परतें

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मेरठ

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sharad asthana

Jun 19, 2018

Baghpat Sinauli

...तो खुलने लगे महाभारत के रहस्‍य, योद्धाओं के शवों के साथ किया जाता था ऐसा काम

बागपत। महाभारत में पांडवों को जान से मारने के लिए कौरवों ने लाक्षागृह बनवाया था। उसकी तलाश क्या शुरू हुई, बागपत के बरनावा के आसपास के इलाकों ने इतिहास की परतें खोलनी शुरू कर दीं। आसपास के इलाकों में जब खुदाई की गई तो चंदायन से लेकर सिनौली तक इसके सबूत मिले। जब इनको गंभीरता से लिया गया तो इतिहास के पन्ने में दफन महायोद्धाओं की वीरगाथा के प्रमाण भी सामने आने लगे। हाल ही में सिनौली से निकले 100 से ज्यादा प्रमाण इस पर अपनी मोहर लगा रहे हैं। इसके अनुसार, यह पांच हजार साल पुरानी उस महाभारत के अंश हैं, जिन्‍हें हम केवल इतिहास के पन्नों में पढ़ते आए हैं।

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पांडवों ने संधि के दौरान मांगे थे ये गांव

सिनौली से प्राप्त जानकारी के आधार पर शहजाद राय संस्‍थान के अमित राय जैन बताते हैं कि महाभारत में पांडवों ने संधि के दौरान श्रीकृष्‍ण भगवान के माध्‍यम से कौरवों से पांच गांव मांगे थे। इनमें से जनपद बागपत के बरनावा, बागपत नगर और यमुना नदी के दूसरी ओर हरियाणा के सोनीपत व पानीपत नगर के चार गांव तो उन्‍होंने खुद और पांचवां कौरवों की इच्‍छा पर देने को कहा था। भौगोलिक रूप से भी यह सिद्ध होता है कि यह इलाका कुरू जनपद का प्राचीन काल से एक केंद्र रहा है, जिसकी प्राचीन राजधानी हस्तिनापुर व इंद्रप्रस्थ (दिल्ली) रही है।

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ताम्र धातु के मिल चुके हैं कुछ टुकड़े

15 फरवरी 2018 को सिनौली उत्खनन स्थल पर स्थानीय इतिहासकारों ने एक ट्रायल ट्रेंच की मांग की थी। इस पर एएसआई की महानिदेशक डॉ. ऊषा शर्मा ने निर्देश दिए, जिसके बाद पुराविद डॉ. संजय मंजुल और डॉ. अरविन मंजुल के निर्देशन में खुदाई शुरू की गई। वर्ष 2005 के उत्खनन के बाद वर्ष 2007 में सिनौली से ताम्र धातु के कुछ टुकड़े तीर की आकृति के प्राप्त हुए थे। जिस स्थान पर ग्रामीणों द्वारा मिट्टी हटाई गई थी, उसी जगह पर सिनौली का यह ऐतिहासिक ट्रेंच लगाया गया।

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योद्धाओं का एक रथ भी मिला

सिनौली में खुदाई से मिली पौराणिक वस्‍तुओं के विषय में एएसआई पुरातत्व संस्थान लाल किला के निदेशक डॉ. संजय मंजुल ने बताया कि यहां से आठ मानव कंकाल व उनके साथ तीन एंटीना सॉर्ड (तलवारें), काफी संख्या में मिट्टी के बर्तन और विभिन्न दुर्लभ पत्थरों के मनकें मिल हैं। यहां से सबसे महत्‍वपूर्ण 5000 वर्ष प्राचीन मानव योद्धाओं के तीन ताबूत मिल हैं, जो तांबे से सुसज्जित किए गए थे। पहली बार सिनौली से भारतीय योद्धाओं के एक रथ भी प्राप्त हुआ है, जो एक दुर्लभतम घटना है।

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दोबारा लिखा जाएगा इतिहास

अभी तक विश्व के इतिहासकार भारतीय मानव सभ्यता के प्राचीन निवासियों को बाहर से आया हुआ बताकर इसे अन्य सभ्यताओं से कम आंकते रहे हैं, लेकिन सिनौली में मिले सबूतों के बाद यह बदल जाएगा। शहजाद राय शोध संस्थान के निदेशक अमित राय जैन ने दावा किया कि सिनौली सभ्यता भारतीय संस्कृति एवं इतिहास को विश्व के पुरातत्वविदों को दोबारा लिखने को मजबूर करेगा। यहां योद्धाओं के शवों के साथ उनके युद्ध रथ भी दफन किए गए। खुदाई में मिली योद्धाओं की तलवारें, हेलमेट, कवच व ढाल का प्राप्त होना 5000 वर्ष प्राचीन युद्धकला का स्पष्ट उदाहरण है।

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कार्बन डेटिंग से मिले प्रमाण

अमित राय जैन के अनुसार, रासायनिक विधियों से प्राप्त कार्बनडेटिंग भी यहां की सभ्यता को 4000 से 5000 वर्ष पुराना होने का प्रमाण देती है। सिनौली से 2005 में प्राप्त सैकड़ों मानव शव महाभारत सभ्यता के निवासियों के होने की ओर इशारा करते हैं। हाल ही में खुदाई में प्राचीन ताबूत मिले हैं। इससे पता चलता है कि भारत के प्राचीनतम शवाधान केंद्रों की एक दुर्लभतम प्रक्रिया ताबूत में मानव शव को दफनाया जाना भी थी। ताबूत को भी अत्यधिक दुर्लभ मानी जाने वाली ताम्र धातु से सजाया गया था। माना जा रहा है कि प्राप्त पुरावशेष व कंकाल 4500 वर्ष से अधिक पुराने हैं। यह समय महाभारत काल का समय कहा जाता है। सिनौली में प्राप्‍त कंकालों के पास से युद्ध में प्रयोग किए जाने वाले हथियार भी मिले हैं। इनसे यह सिद्ध होता है कि ये योद्धा थे। इतिहासकारों के अनुसार, इस बात से भी पूरी तरह इंकार नहीं किया जा सकता है कि महाभारत के युद्ध में मरने वाले योद्धाओं के शव यहां पर दफनाए गए थे क्योंकि यह पूरा क्षेत्र महाभारत काल से जुड़ा हुआ है।

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2014 में मिला था तांबे का मुकुट

आपको बता दें कि इतिहास के मामले में सिनौली सबसे अधिक महत्वपूर्ण और दुर्लभ साइट के रूप में सन् 2005 की खुदाई में सामने आई थी। महाभारत के रहस्‍यों की खोज कर रहे इतिहासकारों के लिए बागपत का बरनावा लाक्षागृह, सिनौली और चंदायन आकृषण का केंद्र बन गए हैं। वर्ष 2014 में चंदायन गांव के करीब तांबे का एक मुकुट मिला था। फिलहाल अभी सिनौली से पुरातत्वविदों ने काम समेट लिया है। यहां से प्राप्त दुर्लभ पुरावशेषों को दिल्ली लालकिला में पहुंचा दिया गया है। वहां पर इनकी साफ-सफाई कर दुनिया के सामने प्रस्तुत किए जाने लायक बनाया जाएगा, जिसके बाद इन तथ्यों को और मजूबती मिलेगी।