
पत्रिका न्यूज नेटवर्क
मेरठ.'इंकलाब जिंदाबाद' एक ऐसा नारा है, जो आजादी के मतवालों की जुबां पर चढ़ा हुआ था। इसी नारे ने गुलामी के दौर में अंग्रेजों के खिलाफ नौजवानों में जोश पैदा किया था। अंग्रेजी हुक़ूमत से जंग-ए-आज़ादी के मतवालों के 'इंकलाब जिंदाबाद' नारे को गढ़ने वाले कोई और नहीं बल्कि खुद मौलाना हसरत मोहानी थे। मोलाना हसरत मोहानी सही मायने में हिंदुस्तान की गंगा-जमुनी तहज़ीब के आलंबरदार थे। उनका गिनती उस ज़माने के कद्दावर सियासतदानों में किया जाता है। यह बातें गुरुवार को मौलाना हसरत मोहानी के यौमे वफात (पुण्यतिथि) पर मेरठ में आयोजित ऑनलाइन कार्यक्रम में वक्ताओं ने कही।
उत्तर प्रदेश उर्दू मजलिश बोर्ड के महामंत्री और मोहर्रम कमेटी के मीडिया प्रभारी अली हैदर रिजवी ने कहा कि मौलाना हसरत मोहानी ने अपनी ज़िन्दगी मुल्को-मिल्लत की हिफाज़त करने में लगा दी। हिंदुस्तान की रूह तब तक अधूरी है, जब तक इसकी अपनी ज़ुबान उर्दू की गुफ़्तगू ना हो और उर्दू की दास्तां तब तक अधूरी रहेगी, जब तक इसमें हसरत मोहानी साहब का ज़िक्र ना हो। उन्होंने कहा कि हसरत मोहानी की आमद के बाद हिंदुस्तान की जंग-ए-आज़ादी उरूज पर पहुंची।
शायर मोहानी साहब अंग्रेज़ हुक़ूमत के इतने सख़्त मुख़ालिफ़ थे कि उन्होंने दूसरे सियासतदानों से इतर मुक़म्मल आज़ादी की मांग कर डाली थी, जिससे अंग्रेज़ी हुक़ूमत हिल गई थी। मौलाना साहब ने हिंदुस्तान से मोहब्बत के जज़्बे में पाकिस्तान जाना नामंज़ूर कर दिया था और हिंदुस्तानी मुसलमानों को यकीनी तौर पर हिंदुस्तान के साथ बने रहने के लिए रज़ामंद किया। मौलाना को मक्का में विश्वास था तो वे मथुरा से मोहब्बत करते थे। वे जहां हर साल हज पर जाते थे तो वहीं मथुरा में बांके बिहारी के मंदिर में श्रद्धा से सिर नवाते थे।
Published on:
13 May 2021 01:39 pm
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