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पुलिस अफसरों को अपने पास देखकर अनाथ और दिव्यांग लोगों के खिल जाते हैं चेहरे

Highlights पुलिस अफसर अनाथ आश्रम और दिव्यांग लोगों के बीच मनाते हैं संडे छुट्टी नहीं होने के बावजूद इन लोगों के लिए एक घंटे का समय निकालते हैं इन लोगों को खाना खिलाने के साथ-साथ इनकी जरूरतों को भी करते हैं पूरा  

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केपी त्रिपाठी, मेरठ। रविवार को पूरे दिन की छुट्टी और इसका अपना ही मजा। इस दिन न आफिस की टेंशन और न किसी की किचकिच। कुल मिलाकर कामकाजी और आफिस जाने वाले लोगों का संडे कुछ ऐसे ही मनता है। वहीं कुछ लोग इस दिन परिवार के साथ आउटिंग पर भी निकल जाते हैं, लेकिन इन सब के बीच लोगों को इस बात का कोतुहल रहता है कि 24 घंटे डयूटी पर मुस्तैद रहने वाले पुलिसकर्मी किस प्रकार से अपना संडे मनाते हैं। वैसे तो सभी पुलिसकर्मियों की ड्यूटी 24 घंटे की होती है। उनका कोई अवकाश नहीं होता। ड्यूटी की व्यस्तता के बीच ये लोग न तो परिवार के लिए समय निकाल पाते हैं और न रिश्तेदारों के लिए, लेकिन मेरठ में कुछ पुलिस अधिकारी ऐसे भी हैं जो ड्यूटी के बीच भी अपना संडे उन लोगों के बीच जाकर मनाते हैं जो समाज में अभिशप्त जीवन जीने को मजबूर हैं। ये लोग अनाथ आश्रम में रहते हैं।

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मेरठ में तैनात ये पुलिस अधिकारी हैं जिले के एसपी सिटी डा. एएन सिंह और सदर एसओ विजय गुप्ता। ये दोनों अधिकारी संडे को व्यस्तता के बाद भी अनाथ आश्रम जाना नहीं भूलते। अनाथ आश्रम में रह रहे अनाथ और दिव्यांग लोगों के बीच जाकर उनको अपनेपन का अहसास कराते हैं उनको अपने हाथ से खाना खिलाते हैं और उनको कपड़े इत्यादि वितरित करते हैं। ये दोनों अधिकारी सप्ताह में एक दिन यानी संडे को अपना कुछ पल अनाथ आश्रम में रहने वाले इन दिव्यांगों और अनाथ बच्चों के साथ मनाते हैं। ये पुलिस अधिकारी जब तक अनाथ आश्रम में रहते हैं तब तक वहां रहने वाले लोगों की सेवा करते रहते हैं।

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पूछने पर एसपी सिटी डा. एएन सिंह ने बताया कि ये लोग भी समाज का एक हिस्सा होते हैं। हम भी समाज में ही रहते हैं फिर इनको ऐसे कैसे छोड़ सकते हैं। उन्होंने बताया कि वे प्रति सप्ताह संडे को एक घंटा इन लोगों के बीच आते हैं और उनको खाना खिलाते हैं। जिनके पास कपड़े नहीं होते, उन्हें कपड़े आदि दिलवाए जाते हैं। वहीं, एसओ विजय गुप्ता ने बताया कि थाना सदर इन अनाथ आश्रम में रहने वाले लोगों का पूरा ध्यान रखता है। थाने से प्रत्येक सप्ताह अनाथ आश्रम में रहने वाले बच्चों को भोजन और कपड़े आदि लेकर वे स्वयं ही यहां पर आते हैं। यहां आकर उन्हें थोड़ी शांति जरूर मिलती है।

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