
नई दिल्ली। केंद्रीय औषधि अनुसंधान संस्थान ( CDRI ) के वैज्ञानिकों ने बड़ा खुलासा किया है। शोध में शामिल वैज्ञानिकों का दावा है कि कुष्ठ रोग के इलाज में लाभकारी 2 रुपए की दवा से ब्लड कैंसर का इलाज संभव है। अगर ऐसा हुआ तो कुष्ठ रोग के इलाज में काम आने वाला मेडिसिन ब्लड कैंसर का उपचार करने में वरदान साबित हो सकता है।
इतना ही नहीं रजोनिवृत्ति के बाद महिलाओं में ऑस्टियोपोरोसिस के इलाज के लिए प्रयोग में आने वाले महंगे इंजेक्शनों को एक ऐसे टैबलेट से ठीक किया जा सकता है जिसके महीने भर के खुराक की कीमत 100 रुपए से कम हो।
सीडीआरआई के वैज्ञानिकों के दावे के बाद चिकित्सा विज्ञान के क्षेत्र में कार्यरत भारतीय वैज्ञानिक इन प्रश्नों का जवाब ढूंढने में लगे हैं। दरअसल, एक शोध में पाया गया है कि कुष्ठ रोग की दवा क्लोफेजिमाइन क्रॉनिक माइलोइड ल्यूकीमिया (ब्लड कैंसर) के इलाज में कारगर साबित हो सकता है।
ब्लड कैंसर माइलोमा का सस्ता इलाज संभव
केंद्रीय औषधि अनुसंधान संस्थान ( CDRI ) की ओर से कराए गए शोध में यह साबित हुआ है कि कुछ कुष्ठ रोग दवाओं से ब्लड कैंसर माइलोमा का इलाज संभव है। क्लोफेजिमाइन ब्लड कैंसर के रोगियों के लिए भी वरदान साबित हो सकता है । इतना ही नहीं कॉम्बीनेशन थेरेपी में इसका इस्तेमाल करने से कैंसर की प्रचलित दवा का असर 10 हजार गुना तक बढ़ जाएगा और डोज भी आधी हो जाएगी।
किंग जॉर्ज मेडिकल यूनिवर्सिटी लखनऊ के क्लिनिकल हेमेटोलॉजी विभाग के सहयोग से सीडीआरआई के एक शोधकर्ता सब्यसाची सान्याल ने एक शोध में पाया है कि एफडीए से मान्य दवा क्लोफाजिमाइन क्रोनिक माइलॉइड ल्यूकेमिया (सीएमएल) ब्लड कैंसर की कोशिकाओं का इलाज करने में सक्षम है। आपको यह जनकार ताज्जुब होगा कि क्लोफाजिमाइन की कीमत 2 रुपए है।
1000 से अधिक दवाओं पर शोध का परिणाम चौंकाने वाला
इसी तरह सान्याल के सहयोगी और सीडीआरआई के चीफ साइंटिसट डॉ. नैबेद्या चट्टोपाध्याय ने रजोनिवृत्ति के बाद के ऑस्टियोपोरोसिस से पीड़ित महिलाओं को दी जाने वाली इंजेक्शन टेरीपैराटाइड को एक विकल्प के रूप में देने के लिए 1,000 से अधिक दवाओं की जांच की। उन्होंने कहा कि जब पेंटोक्सिफायलाइन दवा एक फीमेल चूहे को दिया गया तो उसका परिणाम सकारात्मक आया।
चट्टोपाध्याय ने कहा कि इस आधार पर एक नई दवा को लॉन्च करने की लागत लगभग 85% कम हो जाएगा है। इस लिहाज से पुरानी दवाओं का नई बीमारियों के लिए रणनीतिक पुनरुत्पादन समय की बचत के साथ सस्ता भी साबित होगा।
एम्स ने की थी टास्क फोर्स गठित करने की मांग
बता दें कि एम्स न्यूोलॉजी विभाग नई दिल्ली के प्रोफेसर डॉक्टर कामेश्वर प्रसाद ने हाल ही में इंडियन काउंसिल ऑफ मेडिकल रिसर्च (ICMR) को महंगी दवाओं के कम लागत वाले विकल्पों की पहचान करने और उन्हें मान्य करने के लिए एक टास्क फोर्स गठित करने के लिए लिखा था।
उन्होंने कहा कि डॉक्टर कुछ डॉक्टर पहले से ही सस्ती दवा लिख रहे थे। उदाहरण के लिए,गुइलेन-बर्रे-सिंड्रोम (जीबीएस) के उपचार के लिए वर्तमान में खर्च 3 लाख रुपए से 8 लाख रुपए के बीच है। यह मेडिसिन लोगों की खर्च करने की क्षमता से बाहर है। इसलिए कुछ चिकित्सक इसके बदले स्टेरॉयड की सिफारिश कर रहे हैं जिनकी लागत 5,000 रुपए से कम है और समान रूप से प्रभावी है।
सस्ती दवा की सिफारिश कर रहे हैं डॉक्टर
रेजिडेंट डॉक्टर डॉ. भावना कौल ने जीबीएस के लिए सस्ते विकल्पों के उपयोग का आकलन करने के लिए भारत में चिकित्सकों का एक सर्वेक्षण किया। कौल के सर्वेक्षण में अधिकांश चिकित्सक और न्यूरोलॉजिस्ट मानक उपचार के बाद से स्टेरॉयड की सिफारिश कर रहे थे। ऐसा इसलिए कर रहे थे कि इम्युनोग्लोबुलिन दवा सस्ती नहीं है।
इस दिशा में बेंगलुरु की एक दवा कंपनी हृदय रोगों पर टाइप 2 मधुमेह की दवा के प्रभाव का अध्ययन कर रही है।
रियूज का महत्व बढ़ा
2020 में दवाओं पर वैश्विक खर्च $ 1.4 ट्रिलियन तक पहुंचने की भविष्यवाणी के मद्देनजर दवाओं का रियूज का महत्व काफी बढ़ गया है। इससे खर्च में कमी आएगी। गुणवत्तापूर्ण और सुरक्षित स्वास्थ्य सेवाओं को बढ़ावा मिलेगा।
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निवेश और पेटेंट बड़ी बाधा
इन दवाओं को सैद्धांतिक आधार पर उत्पादन करने के लिए निवेश सबसे बड़ बाधा बनी हुई है। इतना ही नहीं ऑस्ट्रेलिया, कनाडा औ यूरोप की तरह नई दवा को भारत पेंटेंट सुरक्षा मुहैया नहीं कराता। डॉक्टरों का कहना है कि अगर निजी क्षेत्र की कंपनियां इस क्षेत्र में आगे नहीं आती है तो सरकार इसमें निवेश कर सकती है।
Updated on:
16 Mar 2020 06:01 pm
Published on:
01 Sept 2019 10:49 am
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