
देश में जारी कोरोना के प्रकोप के बीच तबलीगी जमात ने निजामुद्दीन मरकज में बड़ा कार्यक्रम आयोजित करके इसे और रफ्तार दे दी। इसके बाद से तबलीगी जमात विवादों में आ गई। तबलीगी जमात कुछ साल पहले पनपे आंतरिक विवादों के कारण दो धड़ों में विभाजित हो गई थी, जो इस संकट की घड़ी में दोबारा एक हो सकती है। सूत्रों की मानें, तो दोनों गुटों के साथ आने की प्रबल संभावना है, क्योंकि समर्थक भी ऐसा ही चाहते हैं।
तबलीगी ने विदेश तक फैलाई जड़ें
लंबे समय से तब्लीगी जमात से जुड़े जफर सरेशवाला ने मरकज प्रमुख या अमीर मौलाना मोहम्मद साद कांधलवी का बचाव किया है। उन्होंने साद का बचाव करते हुए कहा कि- कार्यक्रम का आयोजन निर्णय की त्रुटि है और इसमें कोई दुर्भावनापूर्ण इरादा नहीं है। जमात की तमाम गतिविधियों में गुजरात गुट का काफी योगदान रहा है और इससे जुड़ी महत्वपूर्ण हस्तियां सूरत के मौलाना अहमद लाड और भरूच के इब्राहिम देवला रहे हैं। वहीं गुजरात और मुंबई में जमात के काम में चेलिया समुदाय सबसे आगे रहा है। मौलाना यूसुफ की ओर से राज्य में 50 के दशक की शुरुआत में शुरू किए गए काम के कारण तबलीगी ने अफ्रीका, ऑस्ट्रेलिया, यूरोप और अमरीका में बसे प्रमुख गुजरातियों के नेतृत्व में विदेशों तक अपनी जड़ें जमा लीं।
दोनों गुटों के बीच वैचारिक अंतर नहीं
मौलाना लाड और यूसुफ देवला दोनों ही निजामुद्दीन मरकज में रहते थे, लेकिन मौलाना साद के साथ मतभेद के कारण बाद में जमात का विभाजन हो गया। जमात की उपस्थिति 150 से अधिक देशों में है। बंटवारे के बाद बनाए गए शूरा गुट की तबलीगी जमात में करीब 60 फीसदी हिस्सेदारी मानी जाती है, जिसमें पाकिस्तान के मौलाना तारिक जमील भी शामिल हैं। जफर सरेशवाला ने कहा, दोनों गुटों के बीच कोई वैचारिक अंतर नहीं है और व्यक्तिगत समस्याएं भी गहराई से नहीं हैं। उन्होंने कहा कि उन्हें उम्मीद है कि संकट के समय में दोनों धड़े एक साथ आ सकते हैं, लेकिन यह उनकी निजी राय है। हालांकि लाड (90) और देवला (82) से संपर्क नहीं हो सका।
तेलंगाना और यूपी पर मौलाना साद गुट की पकड
उत्तर प्रदेश, तेलंगाना और अन्य हिस्सों में साद गुट की पकड़ है, वहीं मुंबई और अन्य जगहों पर गुजरातियों की पकड़ है। जबकि ऑफ शोर लंदन सेंटर पाकिस्तान के शूरा के साथ है, ड्यूसबरी केंद्र को मौलाना साद की ओर से नियंत्रित किया जाता है। इसी तरह शिकागो साद के नियंत्रण में है और अफ्रीकी देश शूरा गुट के साथ हैं। दिल्ली के दरियागंज में तुर्कमान गेट स्थित फैज-ए-इलाही मस्जिद शूरा का केंद्र है, जो लॉकडाउन की घोषणा के बाद से ही बंद है।
मौलाना साद को सामने आना चाहिए: जफर
जमात का उदय मुख्य रूप से गुजरात से आए योगदान के कारण हुआ, जहां संगठन की गहरी जड़ें हैं। बता दें कि मुंबई में 17 से 20 मार्च तक शूरा की एक सभा निर्धारित थी, मगर इसने प्रतिभागियों और समर्थकों की सलाह के बाद स्थिति को भांपते हुए समय रहते कार्यक्रम को रद्द कर दिया। मौलाना साद को भी यही सलाह दी गई थी, लेकिन उन्होंने इस आयोजन को आगे बढ़ाया, जिसके परिणाम देश को अब भुगतने पड़ रहे हैं। जफर सरेशवाला ने कहा कि- अभी भी देर नहीं हुई है। मौलाना साद को बाहर आकर लोगों से बात करनी चाहिए, ताकि जमात के बारे में जो कुछ भी कहा गया है, उसका खंडन किया जा सके।
Updated on:
09 Apr 2020 10:27 pm
Published on:
09 Apr 2020 08:30 pm
बड़ी खबरें
View Allविविध भारत
ट्रेंडिंग
