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क्रांतिकारी ही नहीं पहले खोजी पत्रकार भी थे राष्ट्रपिता बापू, तस्वीरों में देखिए उनका पत्रकारीय जीवन

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6 years ago
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महात्मा गांधी का नाम आते ही हमारे दिल में अहिंसा के एक पथ-प्रदर्शक, समाज सुधारक, महात्मा और राष्ट्रपिता की छवि उभरती है। लेकिन ऐसा बहुत कम ही होता है जब हम उन्हें एक पत्रकार के रूप में याद करते हैं। बता दें कि गांधी जी की नजर में पत्रकारिता का मुख्य उद्देश्य राष्ट्रीयता और जनजागरण था। इस लेख में आज हम गांधी जी के पत्रकारिता वाले किरदार को आपके सामने पेश कर रहे हैं। अगली स्लाइड्स में जानिए गांधी जी ने अपने जीवन में कब और कैसे पेश की थी पत्रकारिता की मिसाल...

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कहा जाता है कि गांधी जी ने 19 साल की उम्र तक अखबार को हाथ भी नहीं लगाया था। उन्होंने अपना पहला लेख 21 साल की उम्र में एक अंग्रेजी साप्ताहिक द वेजीटेरियन के लिए लिखा था। उनका ये लेख शाकाहार पर आधारित था।

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दक्षिण अफ्रीका में उन्होंने 'इंडियन ओपिनियन' की कमान संभाली। इसके साथ ही उसका गुजराती संस्करण भी प्रकाशित हुआ करता था। इसके अलावा उन्होंने सत्याग्रह उपयोगिता लोगों तक पहुंचाने के लिए लिखना शुरू किया था।

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धीरे-धीरे गांधी जी को एहसास हो गया कि उनकी विचारधारा को फैलाने के लिए अखबार सबसे ताकतवर माध्यम है। इसके बाद उन्होंने भारत आकर यंग इंडिया में संपादकीय लिखा। तभी हिंदी और गुजराती में नवजीवन नाम के अखबार की भी शुरुआत की, जिसने अंग्रेजों के अखबारों को कड़ी टक्कर दी। जेल में रहते हुए उन्होंने एक और साप्ताहिक मैगजीन हरिजन का प्रकाशन शुरू कर दिया, जो अछूत वर्ग को समर्पित था।

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कहा जाता है कि उनके अखबारों में कभी कोई सनसनीखेज समाचार नहीं होता था। इसके साथ ही उनका मानना था कि पत्रकारिता कभी खुद के फायदे के लिए या पैसे कमाने के लिए नहीं करना चाहिए। यही वजह थी कि नुकसान होने के बाद भी उन्होंने अपने अखबारों में विज्ञापन का सहारा नहीं लिया। यही नहीं, उन्होंने अपनी पत्रिका के विस्तार के लिए कभी किसी गलत तरीके का इस्तेमाल नहीं किया, ना ही कभी दूसरे अखबारों से कोई प्रतियोगिता की।

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वे खासकर सत्याग्रह, अहिंसा, खानपान, प्राकृतिक चिकित्सा, हिंदू-मुस्लिम एकता, छुआछूत, सूत काटने, खादी, स्वदेशी, ग्रामीण अर्थव्यवस्था और निषेध पर लिखते थे। उनका जोर शिक्षा व्यवस्था के बदलाव, और खानपान की आदतों पर था।

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बीसवीं सदी के आरम्भ से लेकर स्वराज पूर्व के गांधी युग को पत्रकारिता का स्वर्णिम काल माना जाता है। उस काल में गांधी जी के अखबारों की विशेष छाप थी।

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उनके प्रतिष्ठित पाठकों में भारत में गोपाल कृष्ण गोखले, इंग्लैंड में दादाभाई नौरोजी और रूस में टॉलस्टाय शामिल थे।

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भारतीय इतिहास में गांधी जी को सबसे पहले खोजी पत्रकार के रूप में याद किया जाता है। चंपारण के नील की खेती करने वाले किसानों पर हुए अत्याचार की जांच कर उन्होंने एक बेहतरीन रिपोर्ट पेश की थी।

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'खींचो न कमान, न तलवार निकालो जब तोप मुकाबिल हो अखबार निकालो' अकबर इलाहाबादी की ये शायरी उनके जीवनकाल को बखूबी वर्णित करते हैं।

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