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ICMR ने दिया सबसे बड़े सवाल का जवाब, एक व्यक्ति दोबारा हो सकता है COVID-19 संक्रमित

कोरोना वायरस से ठीक होने के बाद व्यक्ति के दोबारा संक्रमित ( Covid-19 Reinfection ) होने का मिला जवाब। इंडियन काउंसिल ऑफ मेडिकल रिसर्च के चीफ डॉ. बलराम भार्गव ने दिया उत्तर। कोरोना से ठीक होने पर शरीर में एंटीबॉडी होती है डेवलप, लेकिन 5 महीने महत्वपूर्ण।

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ICMR Chief reveals that Covid-19 Reinfection possible if antibodies reduced

ICMR Chief reveals that Covid-19 Reinfection possible if antibodies reduced

नई दिल्ली। क्या किसी व्यक्ति को कोरोना वायरस का दोबारा संक्रमण ( Covid-19 Reinfection ) हो सकता है, इस बड़े सवाल का अक्सर लोग जवाब ढूंढते दिख जाते हैं। हालांकि अब कंफ्यूजन की कोई बात नहीं है क्योंकि मंगलवार को इंडियन काउंसिल ऑफ मेडिकल रिसर्च के महानिदेशक (ICMR) डॉ. बलराम भार्गव ने इस बड़े प्रश्न का उत्तर दे दिया है।

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केंद्रीय स्वास्थ्य एवं परिवार कल्याण मंत्रालय की कोरोना वायरस के हालात को लेकर जारी नियमित प्रेस कॉन्फ्रेंस के दौरान भारतीय चिकित्सा अनुसंधान परिषद के महानिदेशक डॉ. बलराम भार्गव ने कहा कि अगर कोविड-19 से ठीक हो चुके व्यक्ति के शरीर में पांच महीने में एंटीबॉडी कम हो जाती हैं, तो उस व्यक्ति के फिर से संक्रमित होने की संभावना है।

इस दौरान डॉ. भार्गव ने लोगों से मास्क पहनना जारी रखने और देश में कोविड-19 के प्रसार को रोकने के लिए उचित व्यवहार का पालन करने की अपील की। ICMR के चीफ ने बताया कि कोरोनोवायरस संक्रमण के मुख्य लक्षण में बुखार, खांसी और सांस फूलना शामिल है।

उन्होंने कहा, "किसी भी संक्रमण के बाद शरीर में एंटीबॉडी विकसित होती हैं। कोरोना वायरस के मामले में भी यह देखा गया है कि एंटीबॉडी कम से कम पांच महीने तक रहती हैं। कोविड-19 वायरस अभी भी विकसित हो रहा है और हम इसके बारे में ज्यादा सीख रहे हैं। अगर पांच महीने के भीतर एक व्यक्ति के शरीर में एंटीबॉडी घट जाती हैं, तो फिर से संक्रमण की संभावना है और वह व्यक्ति COVID-19 से दोबारा संक्रमित हो सकता है। इसलिए किसी को एक बार बीमारी होने के बाद भी मास्क पहनने जैसी सावधानी बरतनी जरूरी है।"

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विश्व स्वास्थ्य संगठन (WHO) के पारस्परिक परीक्षण पर टिप्पणी करते हुए आईसीएमआर प्रमुख ने कहा, "WHO का पारस्परिक परीक्षण (Solidarity Trial) 30 देशों का परीक्षण है, जिसमें भारत भागीदार रहा है और इसके अंतरिम परिणाम वेबसाइट पर डाले गए हैं, जिसकी अभी तक समीक्षा नहीं की गई है। हालांकि हमें पता चला है कि ये दवाएं (रेमेडेसिविर और एचसीक्यू) उतना अच्छा प्रदर्शन नहीं कर रही हैं, जितनी कि उम्मीद की जा रही थी।"

उन्होंने कहा, "संयुक्त निगरानी समूह और कोविड-19 के नेशनल टास्क फोर्स पर चर्चा की जा रही है। हम परीक्षण के परिणामों पर संज्ञान लेंगे और तदनुसार सलाह जारी करेंगे।" यह परीक्षण 22 मार्च से 4 अक्टूबर तक आयोजित किया गया था और इसका उद्देश्य अस्पताल में भर्ती रोगियों में समग्र मृत्यु दर, वेंटिलेशन की शुरुआत और अस्पताल में रहने के दौरान इन उपचारों के प्रभावों का अध्ययन करना था।

इससे पहले हाइड्रोक्सीक्लोरोक्वीन और लोपिनवीर के ट्रायल को बंद कर दिया गया था क्योंकि प्राथमिक तौर पर नतीजों में कोई फायदा नहीं हुआ था। कोरोना वायरस महामारी के हालात में सॉलिडैरिटी ट्रायल दुनिया का सबसे बड़ा ग्लोबल रैंडमाइज्ड कंट्रोल्ड ट्रायल है जो 30 देशों में फैला है। ICMR ने बताया कि परीक्षण में भारत की हिस्सेदारी इसका दसवां हिस्सा रही है।

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वहीं, इस दौरान केंद्रीय स्वास्थ्य सचिव राजेश भूषण ने कोविड-19 के इलाज की कीमत तय करने से संबंधित सवाल का जवाब देते हुए कहा, "कोरोना ट्रीटमेंट की कीमत को कम करने के लिए सुप्रीम कोर्ट में कई याचिकाएं दी गई हैं। सुप्रीम कोर्ट ने राज्य और केंद्र सरकार को निर्देश दिए हैं।"


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