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वामो के गढ़ में ही हुई उनकी जमानत जब्त

Published: May 24, 2019 08:55:36 pm

Submitted by:

Renu Singh

– पिछले 60 सालों में सबसे बड़ी हार- केवल एक उम्मीदवार को छोडक़र सबका हाल एक सा
– सोशल साईट पर शून्य से की जा रही है तुलना

kolkata west bengal

वामो के गढ़ में ही हुई उनकी जमानत जब्त

कोलकाता
कभी वाममोर्चा का गढ़ कहलाने वाले में पश्चिम बंगाल में ही आज वामो के अधिकांश प्रत्याशियों की जमानत जब्त हो गई है। इस बार राज्य में लोकसभा चुनाव के नतीजों में वाममोर्चा का खाता ही नहीं खुला। वाममोर्चा के एकमात्र उम्मीदवार व पूर्व मेयर विकास रंजन भट्टाचार्य को छोडक़र उसके बाकी सभी उम्मीदवारों की जमानत जब्त हो गई है। जादवपुर संसदीय क्षेत्र से चुनाव लडऩे वाले विकासरंजन भट्टाचार्य को कुल २१.४ फीसदी वोट मिले हैं। लोकसभा चुनाव के नियमों के अनुसार चुनाव लडऩे के लिए एक सामान्य उम्मीदवार को 25000 रुपए जमानत राशि जमा करने पड़ती है। इसके अलावा अगर कोई अनुसूचित जाति का उम्मीदवार हो तो उसे 12500 रुपए व अनुसूचित जनजाति के उम्मीदवार को 5000 रुपए जमा कराने पड़ते हैं। उसके बाद अगर किसी भी उम्मीदवार को कुल मतदान के 16.6 फीसदी से कम वोट मिलते हैं तो उसकी जमा की गई जमानत राशि जब्त हो जाती है। लोकसभा चुनाव -2019 में वाममोर्चा के उम्मीदवारों में कुछ उम्मीदवार ऐसे थे जो जमानत राशि बचाने के करीब तक तो पहुंचे पर बचा नहीं पाए। जमानत जब्त होने वाले दिग्गजों में रायगंज से चुनाव लडऩे वाले माकपा नेता मो. सलीम 14.25 प्रतिशत वोट हासिल कर पाए। वहीं दमदम संसदीय क्षेत्र से 13.91 प्रतिशत वोटों के साथ नेपालदेव भट्टाचार्य, मुर्शिदाबाद क्षेत्र से 11.63 प्रतिशत वोटों के साथ बादरुदोजा खान व दक्षिण कोलकाता में 11.63 फीसदी वोटों के नंदिनी मुखर्जी की जमानत जब्त हुई। इसके साथ ही अन्य सीटों पर भी कोई भी उम्मीदवार १६.६ फीसदी वोट तक नहीं पहुंच पाया।
6 दशकों की सबसे बड़ी हार

पश्चिम बंगाल में 34 साल तक सत्ता में काबिज रही वाममोर्चा की वर्तमान स्थिति पिछले 6 दशकों में सबसे बड़ी हार है। वैसे वामो की हार क ी शुरूआत तो वर्ष राज्य में 2014 में ही हो चुकी थी। सन 1952 के बाद यह पहली बार है कि लोकसभा चुनाव में वाममोर्चा देश भर में दहाई की संख्या तक नहीं पहुंच पाया है। वाममोर्चा ने 2014 में अपना सबसे निराशाजनक प्रदर्शन किया था जिसमें उसने राज्य की केवल 2 सीटें जीती थीं। वहीं वर्ष 2009 में उसने राज्य की 12 सीटें जीती थी।
सोशल साईट पर शून्य से की जा रही है तुलना
पश्चिम बंगाल में वाममोर्चा का खाता नहीं खुलने को लेकर फेसबुक, व्हाट्सएप, इंस्टाग्राम सहित कई सोशल साईटों पर लोग वामो के परिणाम की शून्य से तुलना कर रहे हैं। कुछ मेमे में यह कहा जा रहा है कि आर्यभट्ट ने शून्य का नहीं वामो की हार का अविष्कार किया था। कई जगह शून्य के बराबर में वाममोर्चा की पताका दिखाई जा रही है। इसके साथ ही कई मेमे में कहा जा रहा कि मुख्यमंत्री ममता बनर्जी का सारा श्राप वामो को लग गया और वे चुनाव में खाता ही नहीं खोल पाए शून्य में ही अटक गए।
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