छात्रा की याचिका में नियमों का हवाला
दरअसल, एमबीबीएस तृतीय वर्ष की मेडिकल छात्रा ने मद्रास हाईकोर्ट में याचिका दाखिल करके नेत्रविज्ञान के पेपर में ग्रेस मार्क्स देने की मांग की थी। इसके लिए उसने विश्वविद्यालय के नियमों का हवाला देते हुए पांच अंक कृपांक के रूप में दिए जा सकने की बात कही। याचिकाकर्ता दो बार नेत्रविज्ञान के पेपर में फेल हो गई थी। उसने गुहार लगाई थी कि पेपर में पास होने के लिए उसे तीन अंक बतौर ग्रेस मार्क्स देने के लिए पांडिचेरी विश्वविद्यालय को निर्देश दिया जाए। सैद्धांतिक परीक्षा में उसे 29 अंक मिले थे, जबकि पास होने के लिए 32 अंकों की जरूरत थी। ऐसे में ग्रेस से मिले तीन नंबर उसे पास करवा सकते थे।
दरअसल, एमबीबीएस तृतीय वर्ष की मेडिकल छात्रा ने मद्रास हाईकोर्ट में याचिका दाखिल करके नेत्रविज्ञान के पेपर में ग्रेस मार्क्स देने की मांग की थी। इसके लिए उसने विश्वविद्यालय के नियमों का हवाला देते हुए पांच अंक कृपांक के रूप में दिए जा सकने की बात कही। याचिकाकर्ता दो बार नेत्रविज्ञान के पेपर में फेल हो गई थी। उसने गुहार लगाई थी कि पेपर में पास होने के लिए उसे तीन अंक बतौर ग्रेस मार्क्स देने के लिए पांडिचेरी विश्वविद्यालय को निर्देश दिया जाए। सैद्धांतिक परीक्षा में उसे 29 अंक मिले थे, जबकि पास होने के लिए 32 अंकों की जरूरत थी। ऐसे में ग्रेस से मिले तीन नंबर उसे पास करवा सकते थे।
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मद्रास हाईकोर्ट ने छात्रा की याचिका खारिज कर दी। जस्टिस वैद्यनाथन ने कहा कि इस तरह की व्यवस्था के जरिए नागरिकों को हल्के में लिया जाता है। जज ने याचिकाकर्ता का जिक्र करते हुए कहा कि अगर किसी छात्र को नेत्रविज्ञान के पेपर में कृपांक देकर पास किया जाता है और वह डॉक्टर बन जाता है। ऐसे में डॉक्टर बन कर वह सर्जरी करता है तो आंखों की रोशनी वापस पाने के लिए भगवान भरोसे रहना पड़ेगा।
मद्रास हाईकोर्ट ने छात्रा की याचिका खारिज कर दी। जस्टिस वैद्यनाथन ने कहा कि इस तरह की व्यवस्था के जरिए नागरिकों को हल्के में लिया जाता है। जज ने याचिकाकर्ता का जिक्र करते हुए कहा कि अगर किसी छात्र को नेत्रविज्ञान के पेपर में कृपांक देकर पास किया जाता है और वह डॉक्टर बन जाता है। ऐसे में डॉक्टर बन कर वह सर्जरी करता है तो आंखों की रोशनी वापस पाने के लिए भगवान भरोसे रहना पड़ेगा।