
नई दिल्ली। तीन तलाक के अध्यादेश के खिलाफ मद्रास हाईकोर्ट में जनहित याचिका दायर की गई है। दायर याचिका में कहा गया कि तीन तलाक से जुड़ा अध्यादेश संविधान का उल्लंघन करता है। साथ ही भेदभावपूर्ण है। बता दें कि जिस अध्यादेश के खिलाफ याचिका डाली गई है, उसमें तीन तलाक की कुप्रथा को दंडनीय अपराध बताया गया है।
याचिका हाईकोर्ट के वकील हुसैन अफरोज की ओर से दायर की गई है। इस पर सुनवाई करते हुए जस्टिस एस मणिकुकार और जस्टिस पीटी आशा की खंडपीठ ने केंद्र सरकार की तरफ से पेश वकील को ट्रिपल तलाक पर जारी अध्यादेश में दर्ज दिशा—निर्देशों को कोर्ट में पेश करने को कहा है। वहीं, पीठ ने इस मामले की अगली सुनवाई 22 अक्टूबर को निर्धारित की है।
याचिकाकर्ता वकीन ने मुस्लिम महिला (विवाह के संबंध में अधिकारों के संरक्षण) के अध्यादेश के उपबंध 4-7 को चुनौती दी है। इस उपबंध को 19 सितंबर से लागू किया गया है। हुुसैन अफरोज ने अध्यादेश को कानूनी क्षेत्र से बाहर का बताया है। उन्होंने इस अध्यादेश पर अंतरिम निषेधाज्ञा लाने की मांग की है। बता दें कि इस अध्यादेश के खिलाफ पहले भी कई बार आवाज उठी है। इससे पहले केरल के मुस्लिम संगठन समस्त केरल जमीयतुल उलेमा ने भी अध्यादेश को कोर्ट में चुनौती दी थी।
कोर्ट ने क्या सुनाया था फैसला
गौरतलब है कि पिछले साल अगस्त में तीन तलाक पर सुप्रीम कोर्ट ने अपना फैसला सुनाया था। फैसले में कोर्ट ने इसे असंवैधानिक करार दिया था। सुनवाई के दौरान पांच में से तीन जजों ने तीन तलाक को संविधान के अनुच्छेद 14 का उल्लंघन करार दिया था। तीनों जजों का कहना था कि संविधान का 'अनुच्छेद 14' देश को सभी नागरिकों को समानता का अधिकार देता है। ऐसे में तीन तलाक से मुस्लिम महिलाओं के मूलभूत अधिकारों में हनन की इजाजत नहीं दी ज सकती। कोर्ट के इस फैसले के बाद मोदी सरकार तीन तलाक पर अध्यादेश लेकर आई थी। अब इस अध्यादेश को राष्ट्रपति से मंजूरी मिल गई है। अब सरकार को छह माह के अंदर या तो इसे संसद से मंजूरी दिलवानी पड़ेगी या दोबारा अध्यादेश लाना होगा।
Updated on:
06 Oct 2018 09:34 am
Published on:
06 Oct 2018 09:17 am
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