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आखिर क्यों मोदी सरकार के निजी ट्रेन चलाने के सपने पर लगा ब्रेक? तेजस एक्सप्रेस के लिए कई चुनौतियां

locationनई दिल्लीPublished: Nov 25, 2020 09:42:21 am

Submitted by:

Mohit Saxena

Highlights

दिल्ली-लखनऊ रूट पर औसतन 25 फीसद यात्री भी नहीं मिल रहे थे।
17 अक्तूबर 2020 को दोबारा से शुरू किया गया था, अब ट्रेन को अगली सूचना तक रद्द कर दिया गया है।

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‘तेजस’ ट्रेन।

नई दिल्ली। भारत में कॉरपोरेट सेक्टर की ट्रेन के लोकप्रिय होने से पहले ब्रेक लग गया है। कोरोना वायरस का बहाना बनाकर भले ही ‘तेजस’ ट्रेन पर कुछ समय के लिए रोक लगाई है। मगर असल बात ये है कि इस ट्रेन को यात्री नहीं मिल रहे हैं।
देश की पहली प्राइवेट ट्रेन तेजस एक्सप्रेस पर लगा ग्रहण

आईआरसीटीसी ने दिल्ली-लखनऊ और मुंबई-अहमदाबाद के बीच चलने वाली तेजस ट्रेन को अगली सूचना तक रद्द करने का फैसला लिया है। आईआरसीटीसी के प्रवक्ता सिद्धार्थ सिंह के अनुसार महामारी के दौरान लॉकडाउन में ट्रेन चलाने के लिए यात्री नहीं मिल रहे थे। उनका कहना है कि दिल्ली-लखनऊ रूट पर औसतन 25 फीसद यात्री भी नहीं थे, वहीं मुंबई-अहमदाबाद रूट पर ट्रेन औसतन 35 फीसद ही भर पा रही थी।
तेजस ट्रेन लॉकडाउन के पहले ही 19 मार्च 2020 को बंद कर दी गई थी। इसके बाद त्योहारों के सीजन को देखते हुए इसे 17 अक्तूबर 2020 को इसे दोबारा से शुरू किया गया था।
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तेजस ट्रेन-नया प्रयोग

तेजस एक्सप्रेस भारतीय रेल और आईआरसीटीसी का एक बड़ा प्रयोग माना गया है। इसके सफल होने पर ही इसे अन्य रूट पर भी दोहराया जाना था। इस रेल सेवा को भारत की पहली निजी या कॉरपोरेट सेवा कहा जाता है। आईआरसीटीसी ने तेजस को रेलवे से लीज पर लिया हुआ है। इसे प्राइवेट के बजाए कॉरपोरेट ट्रेन कहा जाता है।
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आईआरसीटीसी का कहना है कि इन ट्रेनों की सीटें कम भरने के कारण ट्रेन का जरूरी खर्च निकालना मुश्किल हो जाता है। आईआरसीटीसी को उम्मीद है कि कोविड-19 महामारी का कहर खत्म होने के बाद ये ट्रेन पटरी पर लौट सकती है। हालांकि ये भी सच्चाई है कि औसतन ये ट्रेन कभी भी सौ फीसद सीटें भरकर नहीं चली है।
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कितना नुकसान, कितनी बचत

तेजस को चलाने का मॉडल बिल्कुल अलग है। आईआरसीटीसी ने इसे तीन साल की लीज पर लिया हुआ है। इसमें केटरिंग का जिम्मा थर्ड पार्टी को दिया गया है। बाकी के ऑपरेशन जैसे बुकिंग, ट्रेन लाना ले जाने का काम खुद आईआरसीटीसी देखरेख में हो रहा था। ट्रेन को चलाने के लिए उसका ‘ऑपरेटिंग कॉस्ट’ रेलवे को देना होता था। इसके बाद एक बड़ा हिस्सा होता है ‘हॉलेज चार्ज’का। यह चार्ज किलोमीटर के हिसाब से रेलवे को देना होता है।
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आईआरसीटीसी को हॉलेज चार्ज में करीब 950 रुपये प्रति किलोमीटर प्रति दिन के हिसाब से रेलवे को देना होता था। दिल्ली से लखनऊ की दूरी 511 किलोमीटर है। दोनों तरफ की दूरी को मिलाकर 1022 किलोमीटर होते हैं। ऐसे में करीब दस से 15 लाख रुपये के बीच एक ट्रेन के लिए आईआरसीटीसी को हॉलेज चार्ज के रूप में रेलवे को देने पड़ रहे थे। इसके अलावा ड्राइवर, गार्ड और दूसरे स्टॉफ की सैलरी अगल से। ट्रेन बंद होने की सूरत में आईआरसीटीसी को अब रेलवे को हॉलेज चार्ज नहीं देना होगा।
बाकी कर्मचारियों का क्या?

तेजस पहली ऐसी ट्रेन थी, जिसमें विमान की एयर होस्टेस की तर्ज पर ट्रेन होस्टेस को रखा गया था। उन्हें थर्ड पार्टी कॉन्ट्रेक्ट के जरिए रख रहीं थीं। इस सेवा के कारण भी ट्रेन का किराया दूसरी ट्रेनों के मुकाबले अधिक रखा गया था। इस ट्रेन का किराया इस रूट पर चलने वाली शताब्दी ट्रेन से तकरीबन 400-500 रुपये अधिक था।
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राजधानी की तर्ज पर इसमें भी ‘डायनमिक प्राइसिंग’ लगता था। ‘डायनमिक प्राइसिंग’ का मतलब है कि पचास फीसद सीटें भर जाने के बाद डिमांड के हिसाब से इसका किराया बढ़ जाना। लेकिन कोरोना काल में पचास फीसद सीटें भरना में मुश्किल हो रहा था।
तेजस एक्सप्रेस के दस डिब्बों में 20 कोच क्रू तैनात होते थे। ये सभी आईआरसीटीसी की कर्मचारी नहीं हैं, बल्कि एक अन्य प्राइवेट कंपनी के जरिए इनकी सेवाएं ली जा रही थीं। ऐसे में अब उनकी सैलरी पर संकट मंडरा रहा है।
प्राइवेट ट्रेन चलाने के मॉडल पर सवाल

तेजस ट्रेन को रद्द करने की खबर को अब रेलवे के कर्मी रेलवे के निजीकरण की आगे की परियोजनाओं को जोड़कर देख रहे हैं। उनका कहना है कि इस तरह योजनाओं का सफल होना मुश्किल है। तेजस का हाल देखकर दूसरी प्राइवेट कंपनियां क्या आगे आएंगीं। विशेषज्ञों का कहना है कि प्राइवेट ट्रेन को चलाने का खर्च ज्यादा है, जिसके कारण यात्री किराया काफी अधिक होता है। ऐसे में आम जन के लिए इस ट्रेन में सफर करना मुश्किल होता है।
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