
Global Study finds why men are at 60 percent higher risk of early death than women
नई दिल्ली। यों तो मौत का कोई भरोसा नहीं है कि कब आ जाए और कोई भी यह नहीं जानता कि उसका अंतिम वक्त कब और कैसे आएगा, लेकिन दुनिया में बड़े स्तर पर किए गए एक शोध में बड़ी चौंकाने वाली बात सामने आई है। शोध के मुताबिक 50 वर्ष या इससे ज्यादा आयुवर्ग की औरतों की तुलना में इसी उम्र के मर्दों में मौत का जोखिम काफी ज्यादा होता है। 28 देशों के लोगों के ऊपर किए गए इस बड़े शोध में पता चला कि इसकी एक वजह मर्दों में अत्यधिक धूम्रपान और दिल के रोगों का होना होता है।
हालांकि, कैनेडियन मेडिकल एसोसिएशन जर्नल में प्रकाशित इस शोध में यह भी बताया गया है कि इस आयुवर्ग के मर्दों में मृत्युदर के जोखिम का अंतर अलग-अलग देशों में अलग-अलग होता है। किंग्स कॉलेज लंदन और ब्रिटेन की न्यूकैसल यूनिवर्सिटी के यू-जू वू कहते हैं कि कई अध्ययनों ने मृत्यु दर में लैंगिक (सेक्स) अंतर के सामाजिक, व्यवहारिक और जैविक कारकों के संभावित प्रभाव की जांच की है, लेकिन कुछ ही शोध देशों के बीच संभावित अंतर की जांच करने में सक्षम हैं।"
वू ने आगे कहा कि अलग-अलग सांस्कृतिक परंपराएं, ऐतिहासिक संदर्भ, आर्थिक और सामाजिक विकास तमाम देशों में औरतों या मर्दों के अनुभवों को प्रभावित कर सकते हैं, और इस प्रकार पुरुषों और महिलाओं के स्वास्थ्य को प्रभावित करते हैं।
इस शोध में विभिन्न सामाजिक-आर्थिक, जीवन शैली, स्वास्थ्य और सामाजिक कारकों की जांच की गई जो 50 वर्ष या उससे अधिक उम्र के पुरुषों और महिलाओं के बीच मृत्यु दर में अंतर आने में योगदान कर सकते हैं। इस शोध में 28 देशों में 1 लाख 79 हजार से ज्यादा लोगों को शामिल किया गया। इसके अलावा शोध में शामिल प्रतिभागियों में आधी से अधिक यानी 55 प्रतिशत महिलाएं थीं।
शोध में पाया गया कि 50 वर्ष से अधिक आयु के पुरुषों में इसी आयुवर्ग की महिलाओं की तुलना में मौत का 60 प्रतिशत अधिक जोखिम था, जिसे आंशिक रूप से पुरुषों में धूम्रपान और हृदय रोग की भारी दर के रूप में समझाया गया है।
वू के मुताबिक मृत्यु दर पर लैंगिक प्रभावों में न केवल पुरुषों और महिलाओं के बीच शारीरिक भिन्नता बल्कि व्यक्ति के सामाजिक रूप भी शामिल होने चाहिए, जो अलग-अलग समाजों में भिन्न होता है। विशेष रूप से देशों में बड़े बदलाव से लैंगिक पहचान (सेक्स) की तुलना में सामाजिक पहचान (जेंडर) पर अधिक प्रभाव पड़ सकता है।
वू ने कहा कि हालांकि लिंगों (सेक्स) का जीवविज्ञान आबादी के अनुरूप है यानी सभी स्थानों पर मर्द और औरत दोनों जैव रूप से एक जैसेे ही होते हैं, लेकिन सांस्कृतिक, सामाजिक और ऐतिहासिक संदर्भों में भिन्नता पुरुषों और महिलाओं के जीवन के विभिन्न अनुभवों और मृत्यु दर में भिन्नता पैदा कर सकती है। सीधे शब्दों में कहें तो कहीं पर पुरुषों की भूमिका ज्यादा सक्रिय होती है तो कहीं पर महिलाओं की और विभिन्न प्रकार की भूमिकाएं ही उनके जीवन और मृत्यु दर में अंतर पैदा करती हैं।
शोधकर्ताओं ने इस बात को देखा कि इसे मिले निष्कर्ष जीवन प्रत्याशा और मृत्यु दर पर उपलब्ध मौजूदा जानकारियों के अनुरूप ही हैं। अध्ययन के लेखकों ने कहा कि देशों में मृत्यु दर में लैंगिक भिन्नता जैविक स्वरूप (सेक्स) के अलावा स्वस्थ उम्र बढ़ने पर जेंडर के पर्याप्त प्रभाव का संकेत दे सकती है और धूम्रपान का महत्वपूर्ण योगदान विभिन्न आबादी में भी भिन्न हो सकता है।
शोधकर्ताओं के दल का सुझाव है कि सार्वजनिक स्वास्थ्य नीतियों में लैंगिक पहचान (सेक्स) और सामाजिक पहचान (जेंडर) आधारित अंतर और स्वास्थ्य पर सामाजिक और सांस्कृतिक कारकों का प्रभाव होना चाहिए।
Updated on:
16 Mar 2021 02:17 am
Published on:
16 Mar 2021 02:10 am
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