यह ऐलान ऐसे वक्त में आया है, जब चीन ने कुछ समय पहले ही हांगकांग में सख्त सुरक्षा कानून लागू किए हैं। वहीं, आलोचकों का कहना है कि चीन विरोध की आवाज को दबाने की कोशिश कर रहा है। साथ ही, ब्रिटेन के साथ 1997 में किए गए एक देश-दो व्यवस्था के करार को खत्म भी कर रहा है। इस एग्रीमेंट के तहत हांगकांग के पास अपनी कानूनी व्यवस्था को जारी रखने और अभिव्यक्ति की आजादी और प्रेस की आजादी के अधिकार को बनाए रखने की अनुमति दी गई थी।
वहीं, अपने अधिकारों के खत्म होने का खतरा देखते हुए वर्ष 2019 में हांगकांग में लोकतंत्र समर्थकों ने विरोध-प्रदर्शन शुरू किया और यह लगातार जारी है। हालांकि, इनमें से कुछ विरोध-प्रदर्शनों में हिंसा भी हुई। इसके बाद चीन ने हांगकांग में नेशनल सिक्युरिटी लॉ यानी सख्त राष्ट्रीय सुरक्षा कानून लागू कर दिया। वहीं, असेंबली के वाइस प्रेसिडेंट वैंग चेन ने कहा कि यह बदलाव जरूरी है। हांगकांग में हुई उथल-पुथल से स्पष्ट है कि मौजूदा चुनावी तंत्र में कई खामियां मौजूद हैं। चेन यह भी कहा कि सिस्टम में मौजूद जाखिमों को खत्म करना बेहद जरूरी है। इससे यह सुनिश्चित किया जा सकेगा कि केवल देशभक्तों के ही हाथ में सत्ता रहेगी। वहीं, प्रधानमंत्री ली कचियांग ने चेतावनी दी है कि हांगकांग के मामलों में दखल देने वाली बाहरी ताकतों से चीन पूरी दृढ़ता से निपटेगा।
बहरहाल, पूरे एक हफ्ते तक चलने वाली बैठक का कोई दस्तावेज या जानकारी सार्वजनिक नहीं की गई है, मगर वैंग चेन और स्थानीय मीडिया दोनों ने यह स्पष्ट कर दिया है कि किन मुद्दों पर इस बैठक में बात होगी। दरअसल, हांगकांग की चुनावी समिति जबरदस्त तरीके से चीन के अनुकूल है। इस कमेटी को संसद या लेजिस्लेटिव काउंसिल में और अधिक ताकतें मिलना तय हैं। कमेटी काउंसिल के लिए सभी उम्मीदवारों का परीक्षण भी कर सकती है। यही नहीं अपने सदस्यों में से ही कई चुना भी सकती है। इस तरह जनता की ओर से चुने गए लोगों की संख्या कम हो सकती है। आलोचकों का कहना है कि अगर नई नीतियां लागू कर दी गईं, तो विपक्ष की आवाज को प्रभावी तौर पर हमेशा के लिए दबा दिया जाएगा।