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रामपुर के मुस्लिम नवाब ने लिखे थे ऐसे होली गीत, जो अब भी हैं एक मिसाल

रामपुर नवाब रजा अली खान भले ही अब इस दुनिया में जिंदा नहीं हैं। लेकिन उनके लिखे गीत आज लोगों को याद दिलाते हैं।

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Nawab Raza Ali Khan

रामपुर। गंगा जमुनी तहजीब के लिए अभी तक मशहूर रहा रामपुर आज भी देश में ही नहीं बल्कि दुनियां में हिन्दू-मुस्लिम, सिख ईसाई के भाईचारे का सबूत देता रहा।

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होली के इस पावन पर्व पर पत्रिका उत्तर प्रदेश ने एशिया की सुप्रसिद्ध रजा लाइब्रेरी में एक ऐसी किताब पढ़ी जिसमें रामपुर के 11वें नवाब रजा अली खान ने खुद होली गीत लिखे हैं, जिनका वर्णन रामपुर दरबार की संगीत पुस्तक में है। कहा यह जाता है कि जब गूगल नहीं था तब देश के ही नहीं बल्कि दुनिया भर के लोग यहां रखी पुस्तकें पढ़ने आते थे। लेकिन अब कुछ ही लोग हैं जो यहां आकर किताबें पढ़ते हैं।

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रामपुर नबाब रज़ा अली खान ने जिस होली गीत को लिखा है, उस गीत के लिखने में हिंदी, ब्रज, उर्दू, फ़ारसी, अरबियन शब्दों से सजाकर कई गीत लिखे हैं, जिन्हें पढ़कर आप समझ सकते हैं कि रामपुर नवाब होली से विशेष लगाव रखते थे। उन्हें होली की जानकारी थी इसलिए उसी पर उन्होंने खुद एक नहीं बल्कि कई गीत लिख डाले, जो देश में ही नहीं बल्कि दुनिया भर की पुस्तकों में शामिल किए गए हैं। आप भी अगर उस गीत को पढ़कर गुनगुनाना चाहते हैं तो पढ़िए और गुनगुनाइये।

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रज़ा अली खान कांग्रेस की पूर्व सांसद रही बेगम नूरबानो के ससुर थे। जिनका जन्म 17 नवंबर 1906 को नूर महल में हुआ था। ये 30 जून 1946 को रामपुर नवाब की कुर्सी पर काबिज हुए। 19 साल तक लगातार वह रामपुर नवाब की कुर्सी पर रहे। बाद में 6 मार्च 1966 में उनकी मौत हो गई। रज़ा अली खान 59 साल 3 महीने बीस दिन तक जीवित रहे। इनके इंतकाल के बाद इनका शव इराक में दफन किया गया।

रामपुर नवाब रजा अली खान भले ही अब इस दुनिया में जिंदा नहीं हैं। लेकिन उनके लिखे गीत आज लोगों को याद दिलाते हैं। नवाब होली पर्व से लगाव ही नहीं रखते बल्कि उन्होंने होली को समझकर गाने यानी गीत लिखने शुरू कर दिए जिनका वर्णन पुस्तकों में किया गया है।

दुर्भाग्य यह है कि आज की पीढ़ी इन गीतों को पसंद नहीं करती क्योंकि उन्हें इन भाषाओं का ज्ञान नही हैं। लेकिन जिन बुजुर्गों को इन भाषाओं का ज्ञान है, वह आज भी नबाब रज़ा अली खान के लिखे गीतों का लुफ्त उठा रहे हैं।