7 दिसंबर 2025,

रविवार

Patrika LogoSwitch to English
home_icon

मेरी खबर

icon

प्लस

video_icon

शॉर्ट्स

epaper_icon

ई-पेपर

राजस्थान के इस स्वतंत्रता सेनानी ने जापान में लड़ी थी द्वितीय विश्व युद्ध की लड़ाई, आजाद हिंद फौज के थे सिपाही

स्वतंत्रता सेनानी दौलतसिंह बचपन से ही देशभक्त थे। अंग्रेजों को देखते ही भारत माता की जय के नारे लगाने लगते थे। जब 24 वर्ष के थे तब भारतीय सैनिक के रूप में द्वितीय विश्व युद्ध के दौरान जापान पहुंचे। स्वतंत्रता संग्राम में योगदान के लिए प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी ने 1972 में ताम्रपत्र देकर सम्मानित किया।

less than 1 minute read
Google source verification

नागौर

image

Kamal Mishra

Aug 10, 2025

daulat singh

स्वतंत्रता सेनानी दौलतसिंह (फोटो-पत्रिका)

नागौर। देश को आजाद करवाने में योगदान देने वाले नागौर जिले के गुढ़ा भगवानदास निवासी स्वतंत्रता सेनानी दौलतसिंह आज भी क्षेत्रवासियों के गर्व का प्रतीक हैं। आजाद हिंद फौज के सिपाही रहे स्वतंत्रता सेनानी ने अंग्रेजों के खिलाफ युद्ध में भाग लेकर भारत को आजादी दिलाने में भूमिका निभाई। 1987 और 2000 में राजस्थान के मुख्यमंत्री ने वीरांगना प्रेम कंवर को सम्मान पत्र भेंट कर सम्मानित किया।

युद्ध में बाएं पैर में गोली लगने के बाद भी हौसला नहीं टूटा। वे सुभाषचंद्र बोस के नेतृत्व में आजाद हिंद फौज का हिस्सा बने और अंग्रेजी हुकूमत के खिलाफ लड़ाई जारी रखी। अंग्रेजों ने उन्हें बंदी बनाकर यातनाएं दीं, हफ्तों तक पानी तक नहीं दिया। साथियों की मदद से वह भाग निकले और आजाद हिंद फौज के साथ भारत लौटे। दौलतसिंह का जन्म साल 1916 में हुआ और उन्होंने साल 1993 में अंतिम सांस ली।

दौलतसिंह का सिर्फ एक बेटा जीवित

देश आजाद होने के बाद स्वतंत्रता सैनानी दिल्ली से पैदल चलकर जब गांव लौटे तो लोग उन्हें पहचान नहीं पाए। क्योंकि उन्होंने आठ साल तक बाल व दाढ़ी नहीं कटाई थी। वीरांगना प्रेम कंवर नेत्रहीन हैं। पति और पांच बेटों की मौत से टूट चुकी हैं। एक पुत्र खेती और पेंशन से परिवार का गुजारा कर रहा है। कई बार दौलत सिंह के नाम पर विद्यालय का नामकरण का प्रस्ताव आया, लेकिन आज तक स्वीकृति नहीं मिली।

परमाणु हमले का दंश झेल रहा परिवार

परिवार आज भी हिरोशिमा-नागासाकी परमाणु हमले का दंश झेल रहा है। हमले के समय दौलत सिंह जापान में लोहा ले रहे थे। जिससे उनकी आंखों की रोशनी प्रभावित हो गई और पेट में गंभीर इंफेक्शन हुआ। उनकी संतानों पर भी इसका असर पड़ा। पांच बेटे दिव्यांग होकर असमय चल बसे और तीन बेटियों में से एक बेटी भी नि:शक्त है।