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अस्पताल का साइलेंस जोन भी नहीं शांत, आवासीय इलाकों में बढ़ता शोरगुल

नागौर के जिला अस्पताल के आसपास शोर (ध्वनि) का स्तर लगातार बढ़ रहा है। यह अस्पताल के साइलेंस जोन के लिए बड़ी चुनौती है। अस्पताल में शांति जरूरी होती है, ताकि मरीजों को ठीक से आराम मिल सके और इलाज सही ढंग से हो सके। शोर के कारण मरीजों की मानसिक स्थिति प्रभावित होती है जो उपचार में लगने वाले वक्त को बढ़ा देती है

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नागौर शहरी इलाकों में बढ़ता शोरगुल गंभीर समस्या बनता जा रहा है। इससे नागरिकों की सेहत प्रभावित हो रही है, वहीं ंविभिन्न इलाकों में रहने वाले लोगों के लिए असुविधा का कारण बन रहा है। खासतौर पर अस्पताल के साइलेंस जोन, आवासीय इलाकों और व्यावसायिक क्षेत्रों में शोर की समस्या चिंता का विषय है। बढ़ते शोर से मानसिक तनाव, नींद की समस्या और हृदय संबंधी बीमारियां बढऩे की आशंका रहती है।

गंभीर मरीजों के लिए और भी खतरनाक

नागौर के जिला अस्पताल के आसपास शोर (ध्वनि) का स्तर लगातार बढ़ रहा है। यह अस्पताल के साइलेंस जोन के लिए बड़ी चुनौती है। अस्पताल में शांति जरूरी होती है, ताकि मरीजों को ठीक से आराम मिल सके और इलाज सही ढंग से हो सके। शोर के कारण मरीजों की मानसिक स्थिति प्रभावित होती है जो उपचार में लगने वाले वक्त को बढ़ा देती है। वहीं मानसिक तनाव, चिड़चिड़ापन और नींद की समस्या भी बढ़ रही हैं। यह स्थिति गंभीर मरीजों के लिए और भी खतरनाक है।

आवासीय क्षेत्र में ध्वनि प्रदूषण गम्भीर

आवासीय क्षेत्रों में भी ध्वनि प्रदूषण की स्थिति गंभीर है। हाउसिंग बोर्ड कॉलोनी और राठौड़ी कुआं स्कूल जैसे इलाकों में शोर का स्तर लगातार बढ़ रहा है, जो लोगों के लिए परेशानी का कारण बन रहा है। खासकर रात के समय शोर के स्तर में वृद्धि होने से लोगों की नींद में खलल पड़ रहा है। यह बढ़ता शोर व्यक्ति मानसिक और शारीरिक सेहत पर प्रतिकूल असर डाल सकता है। विशेषज्ञों का मानना है कि लगातार शोर के संपर्क में रहने से मानसिक तनाव, दिल की बीमारियां और सुनने की क्षमता में कमी हो सकती है।

कामकाजी लोगों की सेहत पर असर

व्यावसायिक इलाके गांधी चौक में भी शोरगुल की समस्या गहरी होती जा रही है। यहां व्यापारिक गतिविधियां और सडक़ों पर वाहनों की आवाज के कारण ध्वनि प्रदूषण का स्तर काफी बढ़ गया है। यह व्यावसाय से जुड़़े कामकाजी लोगों के लिए स्वास्थ्य के खतरे का बड़ा अलर्ट है। लंबे समय तक शोरगुल के बीच काम करने से मानसिक थकावट, उच्च रक्तचाप और अन्य स्वास्थ्य संबंधी समस्याएं उत्पन्न हो सकती हैं।

24 घंटे होती है मॉनिटरिंग

प्रदूषण नियंत्रण मंडल की ओर से नागौर शहर में पांच स्थानों पर शोर की मॉनिटरिंग की जाती है। सुबह 6 से रात 10 बजे तक और रात्रि 10 से सुबह 6 बजे तक निगरानी रखी जा रही है। इस दौरान आंकड़े एकत्रित करने के लिए आधा घंटे का ब्रेक होता है। संकलित आंकड़ों को लेकर मंडल की ओर से हर महीने बुलेटिन जारी किया जाता है। पूरे प्रदेश के जिलों में कुल 178 स्थानों पर मॉनिटरिंग हो रही है।

ध्वनि प्रदूषण पर नियंत्रण के उपाय

साइलेंस जोन का कड़ाई से पालन : अस्पतालों और स्कूलों में साइलेंस जोन की सीमा का सख्ती से पालन किया जाना चाहिए।

उल्लंघन पर सख्त कार्रवाई : व्यावसायिक और आवासीय क्षेत्रों में शोर की सीमा से अधिक शोर होने पर संबंधित के खिलाफ कार्रवाई हो।

शहरी योजनाओं में सुधार : शहरी विकास के समय ध्वनि प्रदूषण को नियंत्रित करने के उपायों को प्राथमिकता दी जानी चाहिए।

जन जागरूकता अभियान : आमजन को शोर (ध्वनि) प्रदूषण के प्रभावों के बारे में जागरूक करने की आवश्यकता हे।

नागौर : यहां पर मॉनिटरिंग... जोन... दिन...-रात

-हाउसिंग बोर्ड कॉलोनी... आवासीय... 62.6... 58.2

-गांधी चौक....व्यावसायिक.... 77.5.... 63.0

-रीको औद्योगिक क्षेत्.... इंडस्ट्रियल .....66.7..... 62.8

-जिला अस्पताल.... साइलेंस.... 55.1..... 46.9

-राठौड़ी कुआं स्कूल.... आवासीय.... 61.9 .....56.8

(फरवरी 2025 के आंकड़े डेसिबल में…स्रोत : आरएसपीसीबी)

डेसिबल का मानक स्तर

श्रेणी दिन रात
आवासीय 55 45
व्यावसायिक 65 55
इंडस्ट्रियल 75 70
साइलेंस 50 40