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MP Election 2023: आदिवासी बाहुल्य क्षेत्र जो हार-जीत में निभाते हैं निर्णायक भूमिका

Interesting Facts About आमला-सारणी विधानसभा सीट...

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आदिवासी बाहुल्य क्षेत्र आमला में वैसे तो अन्य पिछड़ा वर्ग और सामान्य वर्ग के लोग भी निवास करते हैं, लेकिन यहां आदिवासी वर्ग की संख्या अधिक है। इसलिए ऐसा माना जाता है कि इस विधानसभा क्षेत्र में आदिवासी वर्ग निर्णायक भूमिका निभाते हैं। वैसे आमला विधानसभा का क्षेत्र काफी विस्तृत है। सारणी क्षेत्र भी इसी विधानसभा में आता है, लेकिन सिर्फ आमला ब्लॉक की बात करते तो नगरपालिका क्षेत्र के अलावा जनपद की 68 पंचायतों के 210 गांव शामिल हैं। जिसमें सबसे ज्यादा संख्या आदिवासी वर्ग की है।

यही वजह रही है कि चुनावी मैदान में मौजूद उम्मीदवार इस वर्ग के वोटरों को अपनी तरफ मिलाने भरसक कोशिशों में लगे रहते हंै। इसके अलावा आमला जंक्शन हुआ करता था। यहां एयरफोर्स स्टेशन भी है। इस कारण आमला इस क्षेत्र में सरकारी कर्मचारियों की संख्या भी है। बाहर से आने वाले कई कर्मचारी रिटायर्डमेंट के बाद यहीं बस गए। वर्ष 2008 में आमला विधानसभा क्षेत्र में कुल 171759 मतदाता था। 2013 में कुल 197020 और 2018 में मतदाताओं की संख्या बढकऱ 207038 हो गई थी। अब मतदाताओं की संख्या 216592 हो चुकी है।

भाजपा-कांग्रेस में कांटे की टक्कर
आमला विधानसभा सीट से चुनाव लडऩे के लिए कई उम्मीदवारों ने नामांकन पत्र दाखिल किया है, लेकिन कांटे की टक्कर भाजपा-कांग्रेस के बीच ही मानी जा रही है। आमला सीट पर भाजपा से डॉ. योगेश पंडाग्रे और कांग्रेस से मनोज मालवे चुनाव लड़ रहे हैं। इसके अलावा अन्य पार्टियों और निर्दलीय प्रत्याशी भी चुनाव मैदान में हैं, लेकिन भाजपा के लिए जीत बरकरार रखना चुनौती है। यह सीट 15 साल से भाजपा के कब्जे में है।

रोजगार के व्यापक साधन नहीं
आमला क्षेत्र का विस्तार तो हुआ है, लेकिन यहां रोजगार की कमी और गांवों का विकास तेजी से नहीं हो सका है। इसी वजह से कई गांवों में आज तक पक्की सडक़ें नहीं बन सकीं। पेयजल की समस्या अब भी बरकरार है। आमला में स्थानीय स्तर पर रोजगार के व्यापक साधन मौजूद नहीं है। युवा वर्ग को पढ़ाई पूरी करने के बाद रोजगार की तलाश में आमला छोडकऱ जाना पड़ता है। कई ग्रामीण क्षेत्र मूलभूत सुविधाओं से दूर है। किसानों के लिए बनाई गई मिट्टी परीक्षण शाला का भी संचालन शुरू नहीं हो पाया।

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