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नदी में विसर्जित नहीं की गईं शरद यादव की अस्थियां, दो कलशों में भरकर यहां रखा, जाते हुए दे गए बड़ा संदेश

JDU के पूर्व राष्ट्रीय अध्यक्ष स्वर्गीय शरद यादव जीवन के अंत के बाद कई परंपराओं को तोड़ते हुए एक बड़ी मिसाल कायम कर गए।

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नदी में विसर्जित नहीं की गईं शरद यादव की अस्थियां, दो कलशों में भरकर यहां रखा, जाते हुए दे गए बड़ा संदेश

जनता दल यूनाइटेड के पूर्व राष्ट्रीय अध्यक्ष स्वर्गीय शरद यादव जीवन के अंत के बाद कई परंपराओं को तोड़ते हुए एक मिसाल कायम कर गए। दरअसल, इस मिसाल कायम करने के पीछे उनकी आखिरी इच्छा शामिल थी। शरद यादव की बेटी के अनुसार, उनकी आखिरी इच्छा ये थी कि, अंतिम संसकार के बाद उनकी अस्थियां नदी में न बहाई जाएं, बल्कि उन अस्थिों को दो अलग - अलग कलशों में संग्रहित कर एक कलश को उनके पेतृक गांव की जमीन में दबाया जाए तो दूसरे कलश को उनकी कर्मभूमि पटना में दबाया जाए। बेटी के अनुसार, पिता की आखिरी इच्छा के पीछे तर्क ये था कि, इस तरह अस्थियों के जरिए ही नदियों को दूषित होने से बचाया जा सकता है।


इस बात की जानकारी शरद यादव की बेटी सुभाषिनी ने सोशल मीडिया पर उनकी अस्थियों के साथ तस्वीरें शेयर करते हुए इस बात की जानकारी दी। फोटो पोस्ट करने के साथ ही सुभाषिनी ने सोशल मीडिया पर लिखा कि, 'स्वर्गीय शरद यादव जी ताउम्र प्रकृति के करीब रहे और उन्हें नदियों, पेड़-पौधों और पशुओं के साथ-साथ अपने जन्म भूमि और कर्म भूमि से बेहद लगाव था। उनकी हमेशा इच्छा रही कि, जब भी उनका देहावसान हो तो उनकी अस्थियां नदी में बहाने के बजाय जन्मभूमि बाबई के आखमऊ और कर्म भूमि मधेपुरा में जमीन में दबाई जाएं। उनकी इच्छा अनुसार हमने अस्थियों को दो कलशों में संग्रह कर एक कलश पैतृक गांव में जहां उनका दाह संस्कार हुआ है वहां स्थापित किया है और दूसरे कलश को उनकी कर्मभूमि मधेपुरा पटना से सड़क मार्ग द्वारा मंडल मसीहा के समर्थकों के अंतिम दर्शन हेतु ले जाने की तैयारी कर ली है।

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मुत्यु भोज कार्यक्रम भी नहीं होगा

शरद यादव की बेटी सुभाषिनी ने अपने पोस्ट में ये भी लिखा कि, पिताजी मरणोपरांत भोज कार्यक्रम के खिलाफ थे। उनका मानना था कि, इससे समाज में खाई बढ़ती है। चाहे अमीर हो या गरीब। सब को सम्मान का अधिकार होना चाहिए। जो सक्षम है उनके द्वारा भोज के आयोजन से गरीबों को भी इस प्रथा का अनुसरण करना पड़ता है। गरीब सक्षम नहीं होते और उन पर कर्ज और आर्थिक दबाव बढ़ जाता है, इसलिए भोज प्रथा को बढ़ावा नहीं देना चाहिए। स्वर्गीय शरद यादव के विचार को आगे बढ़ाते हुए परिजन ने भोज कार्यक्रम नहीं रखने का फैसला किया है। इसके बदले दिल्ली में एक शोक बैठक आयोजित की जाएगी।

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