
नरसिंहपुर। नरसिंहपुर से करीब 12 किमी की दूरी पर स्थित नर्मदा तट (narmada river) के ग्राम महादेव पिपरिया में जबरेश्वर महादेव (jabreshwar mahadev) के नाम से विराजे भोलेनाथ का विशाल शिवलिंग शिवभक्तों सहित नर्मदा परिक्रमावासियों की अटूट आस्था का केंद्र है। यहां पर स्थानीय स्तर पर प्रतिवर्ष बसंत पंचमी के मौके पर पांच दिवसीय मेले का आयोजन किया जाता है। नर्मदा के परिक्रमा पथ (narmada parikrama) में आने वाले इस शिवधाम में प्रत्येक परिक्रमावासी भगवान भोलेनाथ का नर्मदा जल से अभिषेक किए बिना आगे नहीं बढ़ते हैं। यहां शिवरात्रि और श्रावण मास में भी बड़ी संख्या में लोग अभिषेक पूजन के लिए पहुंचते हैं।
हिनौतिया के जंगल में प्रकट हुए भोलेनाथ
तीन पीढ़ियों से भोलेनाथ (bholenath) की सेवा कर रहे पं गुलाब गिर ने बताया कि चौधरी धुरंधर पटैल नाम के एक मालगुजार बहुत बड़े शिवभक्त थे। एक बार भगवान भोलेनाथ ने उन्हें स्वप्न देकर अपनी उपस्थिति का आभास कराया। जिसके बाद उन्होंने स्वप्न के मुताबिक ग्राम भैंसापाला के पास स्थित हिनौतिया के जंगलों में पहुंच कर तलाश आरंभ की। सुबह-सुबह के चार बजे अचानक एक शिवलिंग पहाड़ों से लुढ़कते हुए उनके सामने आ गया। उन्होंने वहीं पर पूजन-अर्चन शुरू कर दिया। इसके बाद विशाल शिवलिंग (big shivling in narsinghpur) को भक्तिभाव से नर्मदा घाट पर लाकर स्थापित किया गया।
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बड़े और मजबूत होने के कारण कहलाए जबरेश्वर महादेव
पुजारी गुलाब गिर ने बताया कि शिवलिंग करीब दो सौ वर्ष पुराना है। ऊंचाई 4.5 फीट और गोलाई 11.5 फीट है। मान्यता है कि यह शिवलिंग प्रतिवर्ष एक इंच बढ़ जाता है जिसके कारण यह इतना बड़ा हो चुका है। स्थानीय भाषा के अनुसार जबरेश्वर शब्द जबर से बना है जिसका मतलब बड़ा और मजबूत होता है, इसलिए इनका नाम जबरेश्वर महादेव पड़ा।
मनोकामना के लिए लगाते हैं उल्टी छाप
मान्यता है कि यहां हथेलियों में हल्दी लगाकर हाथ के पंजे की उल्टी छाप दीवार पर अंकित करने से सभी मनोकामना पूरी होती हैं। मनोकामना पूर्ति के बाद भक्त मंदिर में पुन: हाथ के पंजे की सीधी छाप दीवार पर लगाते हैं।
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Updated on:
09 Aug 2022 04:12 pm
Published on:
09 Aug 2022 04:05 pm
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