
डॉ बीआर अंबेडकर (प्रतीकात्मक तस्वीर)
Mahaparinirvan Diwas: महापरिनिर्वाण दिवस हर साल भारतीय संविधान के मुख्य निर्माता डॉ. भीमराव रामजी अंबेडकर (बी.आर. अंबेडकर) की पुण्यतिथि के रूप में मनाया जाता है। यह दिन सामाजिक न्याय, समानता और मानवाधिकारों के प्रति उनके अथक प्रयासों को सम्मान देने का अवसर प्रदान करता है। बौद्ध ग्रंथ ‘महापरिनिर्वाण सुत्त’ के अनुसार भगवान बुद्ध की 80 वर्ष की आयु में हुई मृत्यु को मूल महापरिनिर्वाण माना जाता है। बौद्ध धर्म में ‘महापरिनिर्वाण’ शब्द जन्म और पुनर्जन्म के नश्वर चक्र से परम मुक्ति का प्रतीक है। डॉ. बी.आर. अंबेडकर की पुण्यतिथि के उपलक्ष्य में हर वर्ष 6 दिसंबर को यह दिवस मनाया जाता है। उनके असाधारण योगदान के लिए उन्हें 1990 में मरणोपरांत भारत रत्न से सम्मानित किया गया था।
डॉ. आंबेडकर की विपत्ति से महानता तक की यात्रा बेहद प्रेरणादायक है। बाबासाहेब आंबेडकर का जन्म 14 अप्रैल 1891 को एक हाशिए पर पड़े दलित परिवार में हुआ था। बचपन से ही उन्हें जाति-आधारित भेदभाव का सामना करना पड़ा, जिससे उनके जीवन में अनगिनत चुनौतियाँ आईं। इन बाधाओं के बावजूद उन्होंने हार नहीं मानी और एक प्रख्यात विद्वान के रूप में उभरे। उन्होंने कोलंबिया विश्वविद्यालय और लंदन स्कूल ऑफ इकोनॉमिक्स जैसे प्रतिष्ठित संस्थानों से डॉक्टरेट सहित कई उपाधियाँ प्राप्त कीं।
भारतीय संविधान के प्रमुख शिल्पकार रहे बाबासाहेब ने सामाजिक न्याय और समानता के लिए गहरा समर्पण दिखाया। उन्होंने उत्पीड़ितों और वंचितों के अधिकारों की वकालत की, छुआ-छूत और भेदभाव के विरुद्ध आजीवन संघर्ष किया और एक समावेशी भारत की नींव रखी। उनकी दृष्टि राजनीति से कहीं आगे थी—उन्होंने श्रम अधिकारों, लैंगिक समानता, आर्थिक सुधारों और मानवाधिकारों जैसे अहम मुद्दों पर जोर दिया। उनके विचारों ने भारत के लोकतांत्रिक मूल्यों को मजबूत आधार प्रदान किया।
डॉ. आंबेडकर ने जातिगत उत्पीड़न का विरोध करते हुए 1956 में अपने हजारों अनुयायियों के साथ बौद्ध धर्म अपनाया था। 6 दिसंबर 1956 को दिल्ली में उन्होंने महापरिनिर्वाण, यानी परम मोक्ष, प्राप्त किया। उनकी शिक्षा, विचार और जीवन संघर्ष आज भी भारत सहित दुनिया भर में लाखों लोगों को प्रेरित करते हैं।
हर वर्ष लाखों लोग मुंबई स्थित चैत्य भूमि पर, जहाँ डॉ. आंबेडकर की अस्थियाँ समाहित हैं, श्रद्धांजलि अर्पित करने के लिए एकत्र होते हैं। इस अवसर पर प्रार्थना सभाएँ, विचार-विमर्श, सांस्कृतिक कार्यक्रम और भाषण आयोजित किए जाते हैं, जिनमें उनके योगदान को याद किया जाता है। देशभर में लोग मोमबत्तियाँ जलाते हैं, जुलूस निकालते हैं और उनके सिद्धांतों पर आधारित आदर्शों को आत्मसात करने का संकल्प लेते हैं।
Published on:
04 Dec 2025 10:48 pm
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