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श्मशान कर्मी बोले- पीपीई किट में लगती है गर्मी, पीने के लिए पानी भी नसीब नहीं

locationनोएडाPublished: May 05, 2021 06:12:49 pm

Submitted by:

lokesh verma

नोएडा सेक्टर-94 स्थित श्मशान घाट में शवों की संख्या बढ़ने पर गेट पर ग्रेटर नोएडा के शवों की नो एंट्री का नोटिस लगाया

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पत्रिका न्यूज नेटवर्क
नोएडा. कोरोना के चलते नोएडा के हालात दिन-ब-दिन खराब होते जा रहे हैं। जैसे-जैसे मरने वालों की संख्या बढ़ रही है, वैसे-वैसे श्मशान घाटों पर मुश्किलें बढ़ती जा रही हैं। कई श्मशानों में जहां दाह संस्कार के लिए आ रहे परिजनों को घंटों इंतजार करना पड़ रहा है, वहीं श्मशान में चिताएं जलाने वालों की जान पर बनी हुई है। ताजा मामला नोएडा सेक्टर-94 स्थित श्मशान घाट का है। जहां श्मशान घाट के बाहर एक नोटिस चस्पा कर दिया गया है, जिसमें लिखा है कि यहां ग्रेटर नोएडा से आने वाले शवों का अंतिम संस्कार नहीं किया जाएगा।
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मीडिया रिपोर्ट के अनुसार, यहां रात्रि 8.30 तक 21 चिताएं जल रही थीं। सीएनजी चैंबर के ऑपरेटर दीपक कुमार ने बताया कि यहां दो मशीनों में दाह संस्कार किया जा रहा है। अभी भी चार शव एम्बुलेंस में पड़े हैं, जिनका अंतिम संस्कार होना है। उन्होंने बताया कि मैं यहां लगातार 16 घंटे काम कर रहा हूं और केवल तीन-चार घंटे ही सो रहा हूं। बता दें कि कुमार बगैर पीपीई किट पहने ही दाह संस्कार में जुटे हैं। पूछने पर वह कहते हैं कि हां, मैं जानता हूं कि इसमें जान को जोखिम है, लेकिन पीपीई किट पहनकर दाह संस्कार करना संभव नहीं है। वह कहते हैं कि गर्मी से पीपीई किट सिकुड़कर हमारी खाल से चिपक जाती है। इसलिए हम बगैर पीपीई के ही लकड़ी और सीएनजी के दाह संस्कार कर रहे हैं।
हमें स्वास्थ्य बीमा जैसी चीजों की जरूरत

कुमार ने बताया कि दाह संस्कार के लिए 12,000 प्रतिमाह सामान्य वेतन मिलता है। नोएडा लोक मंच एनजीओ श्मशान घाट का प्रबंधन देखता हैं। उसी ने सैनिटाइजर, पीपीई किट, मास्क आदि सामान दिया है। लेकिन, अभी हमें स्वास्थ्य बीमा जैसी चीजों की जरूरत है, क्योंकि अगर यहां मुझे कुछ हो गया तो यह पूरी तरह से मेरे जोखिम पर ही होगा। साथ ही उन्होंने कहा कि एक गिलास पानी पीने के लिए भी दूसरी तरफ कैंटीन जाना पड़ता है, लेकिन लगातार दाह संस्कार के चलते उसके लिए भी समय नहीं मिलता है।
घर जाने का कोई सवाल ही नहीं उठता

बता दें कि कुमार और पांडे दोनों श्मशान घाट परिसर में ही रहते हैं। एक सवाल के जवाब में पांडे का कहना है कि लगातार दाह संस्कार के चलते घर जाने का कोई सवाल ही नहीं उठता। उन्होंने बताया कि शव तो कवर होते हैं, लेकिन हर रोज सैकड़ों लोगों के संपर्क में आता हूं। जिनमें से बहुत हॉस्पिटल से आते हैं तो कुछ एंबुलेंस के ड्राइवर होते हैं। हालांकि मैं यह नहीं सोचना चाहता कि कितने जोखिम में हूं।
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