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नए युग की ओर भारत-ब्रिटेन: व्यापार, तकनीक और भरोसे की कूटनीति

अनुरंजन झा, वरिष्ठ पत्रकार एवं अध्यक्ष, गांधियन पीस सोसायटी ब्रिटेन

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भारत और ब्रिटेन के बीच संबंधों की कहानी जितनी पुरानी है उतनी ही जटिल भी। औपनिवेशिक अतीत का बोझ, स्वतंत्रता संग्राम की विरासत और साम्राज्यवाद के दर्दनाक अनुभवों ने इस रिश्ते को लंबे समय तक संवेदनशील बनाए रखा। किंतु समय के साथ जब नए वैश्विक समीकरण बने, तब भारत और ब्रिटेन दोनों ने अपने संबंधों को नई परिभाषा देने का प्रयास किया। आज जब ब्रिटेन के प्रधानमंत्री कीर स्टार्मर भारत यात्रा पर हैं, तब यह केवल एक औपचारिक दौरा नहीं, बल्कि आने वाले कल की रूपरेखा गढ़ने का अवसर भी है। विजन 2035 की पृष्ठभूमि में यह यात्रा भारत के लिए अत्यंत महत्त्वपूर्ण है क्योंकि यही वह काल है जब भारत स्वयं को विश्व की शीर्ष तीन अर्थव्यवस्थाओं में स्थापित करने का लक्ष्य लेकर आगे बढ़ रहा है।

इस यात्रा के मायने केवल कूटनीतिक नहीं हैं, बल्कि रणनीतिक और आर्थिक दृष्टिकोण से भी निर्णायक हैं। भारत 2035 तक एक ऐसी शक्ति के रूप में उभरना चाहता है जो न केवल एशिया में बल्कि पूरे विश्व में नेतृत्वकारी भूमिका निभाए। इसके लिए उसे ऐसे साझेदारों की आवश्यकता है जिनके पास तकनीकी विशेषज्ञता हो, वित्तीय संसाधन हों और वैश्विक अनुभव हो। ब्रिटेन, भले ही ब्रेक्सिट के बाद नई चुनौतियों से जूझ रहा हो, परंतु अब भी वह विश्व राजनीति और वित्तीय व्यवस्था का एक अहम खिलाड़ी है। भारतीय दृष्टिकोण से ब्रिटेन का महत्त्व केवल अतीत के अनुभवों तक सीमित नहीं, बल्कि भविष्य की संभावनाओं से भी जुड़ा है। जब हम विजन 2035 की बात करते हैं, तो इसका अर्थ केवल आर्थिक प्रगति नहीं, बल्कि समग्र विकास से है — तकनीकी नवाचार, शिक्षा का विस्तार, स्वास्थ्य सेवाओं की मजबूती, हरित ऊर्जा की ओर संक्रमण और वैश्विक सुरक्षा में योगदान। इन सभी क्षेत्रों में भारत और ब्रिटेन के बीच सहयोग की अपार संभावनाएं मौजूद हैं।

व्यापारिक संबंध इस साझेदारी का सबसे बड़ा आधार बन चुके हैं। हाल में भारत और ब्रिटेन के बीच मुक्त व्यापार समझौते पर हस्ताक्षर हो चुके हैं, जो दोनों देशों के आर्थिक संबंधों को एक नए आयाम पर ले गया है। विजन 2035 में यह करार दोनों अर्थव्यवस्थाओं के लिए आधारभूत ढांचा तैयार करेगा। इसके परिणामस्वरूप न केवल वस्तुओं और सेवाओं का आदान-प्रदान बढ़ेगा, बल्कि स्टार्टअप्स, नवाचार, फिनटेक और आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस जैसे क्षेत्रों तक यह सहयोग फैलेगा। भारत की डिजिटल क्रांति का सपना और ब्रिटेन की तकनीकी विशेषज्ञता मिलकर एक नई आर्थिक कहानी लिख सकते हैं। इस रिश्ते की सबसे बड़ी ताकत प्रवासी भारतीय समुदाय है। आज ब्रिटेन में लगभग 20 लाख से अधिक भारतीय मूल के लोग रहते हैं। राजनीति से लेकर व्यवसाय और शिक्षा से लेकर स्वास्थ्य तक, भारतीय मूल के लोग ब्रिटेन की जीवनधारा में गहराई से जुड़े हैं। उनकी उपस्थिति दोनों देशों के बीच स्वाभाविक पुल का कार्य करती है। 2035 तक जब भारत युवा शक्ति के बल पर वैश्विक नेतृत्व की ओर बढ़ रहा होगा, तब ब्रिटेन में बसे भारतीय समुदाय इस प्रक्रिया को और मजबूत करेंगे।

हालांकि यह सब सुनने में जितना आकर्षक लगता है, उतना आसान नहीं। भारत और ब्रिटेन के बीच संबंधों के आगे कई चुनौतियां भी खड़ी हैं। ब्रेक्सिट के बाद ब्रिटेन की आर्थिक अनिश्चितता, भारत की आंतरिक नीतिगत बाधाएं और वैश्विक शक्ति संतुलन में बदलाव, ये सभी ऐसे कारण हैं जो दोनों देशों की साझेदारी की गति को प्रभावित कर सकते हैं। ब्रिटेन का भारत में निवेश केवल आर्थिक लाभ के लिए नहीं होगा, बल्कि उसकी वैश्विक प्रासंगिकता के लिए भी अनिवार्य होगा। ब्रेक्सिट के बाद जब ब्रिटेन यूरोपीय संघ से अलग हो गया, तब उसे नए साझेदारों की तलाश करनी पड़ी। भारत, अपनी विशाल जनसंख्या, तेजी से बढ़ती अर्थव्यवस्था और वैश्विक महत्त्वाकांक्षाओं के साथ, ब्रिटेन के लिए स्वाभाविक विकल्प है। वहीं भारत के लिए ब्रिटेन एक ऐसा सहयोगी है जिसके माध्यम से वह न केवल यूरोप, बल्कि पूरे अटलांटिक संसार तक पहुंच बना सकता है।

ब्रिटेन के प्रधानमंत्री की यह यात्रा एक प्रतीक है, अतीत की परछाइयों से आगे बढ़कर भविष्य की संभावनाओं की ओर देखने का। विजन 2035 केवल भारत का सपना नहीं है, बल्कि ब्रिटेन के लिए भी अवसर है कि वह एक उभरती हुई महाशक्ति के साथ मिलकर नए वैश्विक समीकरणों का निर्माण करे। यदि यह यात्रा एक नए अध्याय की शुरुआत बनती है तो दोनों देशों के लिए 2035 केवल कैलेंडर का एक वर्ष नहीं रहेगा, बल्कि साझा उपलब्धियों और सहयोग का स्वर्णिम पड़ाव साबित होगा।