जम्मू-कश्मीर पर मोदी सरकार की ताजा पहल को लेकर पाकिस्तान फिर तिलमिला रहा है। उसके विदेश मंत्रालय के बयान से यह तिलमिलाहट साफ झलकती है। इसमें कहा गया है- ‘कश्मीर में भारत फिर एकतरफा कदम उठा सकता है।’ वहां के विदेश मंत्री शाह महमूद कुरैशी ने संयुक्त राष्ट्र महासचिव को पत्र भी भेजा है। पाकिस्तान की यह कवायद भारत के आंतरिक मामलों में गैर-जरूरी दखल से ज्यादा कुछ नहीं है। उसके नापाक मंसूबों को अंतरराष्ट्रीय बिरादरी भी बखूबी जान चुकी है। भारत सरकार ने पिछले दो साल के दौरान कश्मीर में हालात जिस तरह संभाले, अंतरराष्ट्रीय संगठनों को इसकी भी जानकारी है।
गृह मंत्रालय का दावा है कि नए नागरिकता कानून से कश्मीर में पाकिस्तानी शरणार्थियों, गोरखों, पंजाब से आकर बसे सफाई कर्मियों और राज्य के बाहर विवाह करने वाली महिलाओं को काफी राहत मिली है। भेदभाव खत्म हुआ है, अचल संपत्तियों की रजिस्ट्री उनके नाम पर होने लगी है। राज्य सरकार की नौकरियों के लिए आवेदन करना आसान हुआ है। हालांकि दावे से परे नौकरियों के मोर्चे पर हालात पहले जैसे हैं। अनुच्छेद 370 निरस्त होने के बाद राज्यपाल ने तीन महीने में 50 हजार नौकरियों की घोषणा की थी। इस पर अमल का अब तक इंतजार हो रहा है। जम्मू-कश्मीर चैंबर ऑफ कॉमर्स एंड इंडस्ट्रीज के ये आंकड़े भी चिंता बढ़ाने वाले हैं कि इस दौरान राज्य में चार लाख से ज्यादा लोगों की नौकरियां जा चुकी हैं।
जिस राज्य में आतंकवाद कभी कुटीर उद्योग की तरह पनपा हो, वहां लोगों को रोजगार मुहैया कराने पर विशेष ध्यान देने की जरूरत है। उम्मीद की जानी चाहिए कि 24 जून की बैठक में दूसरे पहलुओं के साथ-साथ रोजगार की समस्या पर भी चर्चा होगी। जम्मू-कश्मीर के जिन 14 नेताओं को बैठक का न्योता भेजा गया है, उन्हें कश्मीर की जमीनी हकीकत की ज्यादा जानकारी है। संकीर्ण राजनीति से ऊपर उठकर वे कश्मीर में सामान्य जनजीवन और लोकतांत्रिक प्रक्रिया की बहाली के विकल्प सुझाकर राज्य में नई सुबह का सूत्रपात कर सकते हैं।