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एक युग थे मेजर ध्यानचंद, असली नायक को भूलने की कोशिश कर रहीं हमारी सरकारें

Bharat Ratna To Major Dhyan Chand: मेजर ध्यानचंद की जन्मजयंती 29 अगस्त के अवसर पर राजधानी भोपाल में तीन दिवसीय स्पोर्ट्स और फिटनेस फेस्टिवल की शुरुआत हुई, भारत को दुनियाभर में चमकाने वाले असली महानायक पर लाभ राजनीति हावी, जबकि जन-जन चाहता है, भारत के खिलाड़ी मात्र नहीं बल्कि एक युग को भी हक है कि उसे 'भारत रत्न' पुरस्कार मिले, सवाल लाजमी है ध्यानचंद को कब मिलेगा भारत का सर्वोच्च भारत रत्म सम्मान?

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Major Dhyanchand

Major Dhyanchand: क्रिकेटर, अभिनेता, राजनेता हकदार, तो देश के बेटे ध्यानचंद को कब मिलेगा उसका असली सम्मान.(फोटो: सोशल मीडिया)

Bharat Ratna To Major Dhyan Chand: संजना कुमार@patrika.com: हॉकी का नाम आते ही जिस शख्सियत की तस्वीर आंखों के सामने आती है, वह हैं मेजर ध्यान चंद। एक ऐसा खिलाड़ी, जिसने खेल के मैदान में हॉकी स्टिक को जादू की छड़ी बना दिया। एक ऐसा खिलाड़ी, जिसकी वजह से भारत को 'हॉकी का सम्राट' कहा गया। एक ऐसा खिलाड़ी, जिसने सिर्फ गोल नहीं किए बल्कि, करोड़ों भारतीयों के दिलों में खेल की ताकत, जज्बा, गर्व और देशभक्ति का जुनून जगाया। वो भी ऐसा कि 41 साल तक कोई मेडल नहीं जीत सकी टीम इंडिया, खिलाड़ी कम होते गए, लेकिन सरकारों ने उसे नहीं छोड़ा, टूर्नामेंट आयोजित करते हुए उसे जिंदा बनाए रखा, अब खिलाड़ी फिर से मेडल जीतने लगे हैं। हॉकी फिर परवान चढ़ रही है। इसकी वजह मेजर ध्यानचंद ही हैं...जिन्होंने हॉकी के ऐसे रिकॉर्ड बनाए जिन्हें कोई तोड़ नहीं सका।

वो एक खिलाड़ी नहीं, एक युग थे

ध्यान चंद (Major Dhyan Chand) सिर्फ खिलाड़ी नहीं थे, एक युग थे, जो बीत गया और न कभी आएगा। उनका खेल आजादी से पहले भी देशवासियों में वही भावनाएं जगाता था, जो किसी स्वतंत्रता सेनानी की आवाज जगाती है। यही वजह है कि उन्हें 'हॉकी का जादूगर' कहा गया। लेकिन अफसोस कि जब उन्हें पूरी दुनिया में सम्मान मिला, जर्मनी से लेकर हॉलैंड तक उनके किस्से आज भी सुनाए जाते हैं, तब भी अब तक भारत का सर्वोच्च नागरिक सम्मान 'भारत रत्न' अब तक उनके पास नहीं आया।

लगातार जीते गोल्ड मेडल, हिटलर भी रह गया दंग

1928, 1932 और 1936 के ओलंपिक में भारत ने लगातार गोल्ड मेडल जीते। इनमें सबसे अहम 1936 का बर्लिन ओलंपिक था, जहां भारत ने जर्मनी को 8-1 से हराया। उस समय पूरा स्टेडियम हतप्रभ था। हॉकी की सबसे बेहतरी टीम को हराते देख हिटलर जैसा शासक भी ध्यानचंद से प्रभावित हुए बिना नहीं रह सका। उसे ध्यान चंद ने इतना आकर्षित किया कि वह उन्हें जर्मन सेना में उच्च पद और नागरिकता देने तक को तैयार था। लेकिन ध्यान चंद का एक लाइन का उत्तर आज भी हमें गर्व से भर देता है- 'मैं खेलूंगा तो सिर्फ अपने देश के लिए।'

देशभक्ति की मिसाल हैं ध्यानचंद

क्या यह केवल एक खिलाड़ी का जवाब था? नहीं… यह जवाब उस दौर में हर भारतीय की आवाज था, जो अपने देश की मिट्टी के लिए जीने-मरने को तैयार था। ध्यान चंद(major dhyan chand) की यह देशभक्ति उन्हें किसी भी स्वतंत्रता सेनानी से, किसी भी महापुरुष से कम नहीं ठहराती।

बर्लिन ओलंपिक में जीतकर भी रो रहे थे मेजर ध्यानचंद

एक और प्रसंग जो हर भारतीय को जरूर पता होना चाहिए, इतिहास में दर्ज है कि जब बर्लिन ओलंपिक में भारत ने जीत हासिल की तो, ध्यान चंद रो पड़े थे। कारण यह नहीं था कि वह भावुक हो गए थे, बल्कि इसलिए कि जीत तो भारत की थी, लेकिन झंडा यूनियन जैक का लहरा रहा था। उनका दर्द यही था कि यह जीत अपने तिरंगे के नीचे क्यों न मिली?

उनके ये शब्द बताते हैं कि ध्यान चंद सिर्फ गोल बनाने वाले नहीं थे, बल्कि दिल से सच्चे देशभक्त थे। उनकी खेल यात्रा में वह गौरव भी है और वह पीड़ा भी, जिसे जानकर हर भारतीय का सिर झुक जाता है।

हम कैसे भूल सकते हैं, ध्यानचंद की शोहरत

हम ये कैसे भूल सकते हैं कि दुनियाभर में कई देशों ने ध्यान चंद को सम्मान दिया। ऑस्ट्रिया और नीदरलैंड जैसे देशों में उनकी मूर्तियां लगाई गईं। हॉकी का हर इतिहासकार उन्हें 'ग्रेटेस्ट प्लेयर' की संज्ञा देता है। यहां तक कि हमारे देश में उनकी जयंती 29 अगस्त को राष्ट्रीय खेल दिवस के रूप में मनाया जाता है। लेकिन अफसोस… यह दिन हर साल मनाने के बावजूद भारत रत्न से उन्हें अभी तक नवाजा न जा सका।

कब-कब उठी ध्यान चंद को भारत रत्न देने की मांग

2011:

82 सांसदों ने मिलकर तत्कालीन प्रधानमंत्री डॉ मनमोहन सिंह को पत्र भेजा।

2013:

तत्कालीन खेल मंत्री जितेंद्र सिंह ने भारत रत्न देने की सिफारिश की।

क्रिकेटर बिशन सिंह बेदी खिलाड़ियों के प्रतिनिधिमंडल के साथ खेल मंत्री से मिले।

2014:

गृहराज्य मंत्री किरन रिजिजू ने लोकसभा में बताया कि गृह मंत्रालय ने इस पर प्रस्ताव भेजा है।

2016:

राज्यसभा में सपा सांसद चंद्रपाल सिंह यादव ने शून्यकाल में मुद्दा उठाया, कई सांसदों ने इसका समर्थन किया।

हॉकी इंडिया अध्यक्ष दिलीप तिर्की और कई ओलंपियन खिलाड़ियों ने जंतर-मंतर पर प्रदर्शन किया।

2017:

खेल मंत्री विजय गोयल ने प्रधानमंत्री को पत्र लिखकर ध्यानचंद को भारत रत्न देने को 'सबसे बडा नमन' बताया।

सवाल जो लाजमी हैं

ऐसे में सवाल लाजमी है कि अगर क्रिकेट में सचिन तेंदुलकर भारत रत्न के हकदार हैं, तो हॉकी में ध्यान चंद क्यों नहीं? अगर राजनीति और कला जगत के दर्जनों लोगों को यह सम्मान दिया जा सकता है, तो उस खिलाड़ी को क्यों नहीं, जिसने खेल को सिर्फ खेल नहीं रहने दिया बल्कि, उसे भारत की पहचान बना दिया।

ऐतिहासिक गौरव पर सरकारों की नादानी

हमारी सरकारों की नादानी है कि अब तक ध्यान चंद जैसे खिलाड़ी को भारत रत्न नहीं मिला। पर क्या वाकई हमारी सरकारें इतनी नादान हैं, कि हमें कहना पड़ रहा है कि वो इस सर्वोच्च सम्मान के हकदार हैं। क्योंकि भारत रत्न एक पुरस्कार मात्र नहीं है, बल्कि यह राष्ट्र की तरफ से अपने हैरतअंगेज नायकों को दिया गया सर्वोच्च सम्मान है। ऐसे में तो मेजर ध्यान चंद को यह सम्मान देना सिर्फ खेल का कर्ज उतारना नहीं होगा, बल्कि देश की आत्मा से जुड़ा अहम फैसला होगा।

आखिर हम कब कह सकेंगे की भारत अपने असली नायकों को कभी नहीं भूलता

आज की पीढ़ी, जो उन्हें किताबों या कहानियों से जानती है, वो अगर देखेगी कि देश ने अपने खेल के सच्चे नायक को सर्वोच्च सम्मान दिया, तो यह उनके लिए भी सम्मान और प्रेरणा बनेगा। यह सरकार का एक ऐसा कदम होगा, जो आने वाली पीढ़ियों को संदेश देगा कि भारत अपने असली नायकों को कभी नहीं भूलता।