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भारत की पहली मुस्लिम महिला पायलट थीं भोपाल रियासत की ये शहजादी, इंकलाब और बहादुरी की मिसाल

Bhopal Princes Abida Sultan: गुड्डा-गुडियों से खेलने की उम्र में घुड़सवारी, शिकार, हवा में उड़ने का शौक रखने वाली शहजादी आबिदा सुल्तान के जन्मदिन 28 अगस्त पर याद आए उनकी रियल लाइफ के हैरान करने वाले किस्से...

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Princess of Bhopal Abida Sultan

Princess of Bhopal Abida Sultan(photo: social media)

Princes of Bhopal Abida Sultan: तहजीब-ओ-तमीज के शहर भोपाल का इतिहास राजवंशों, मुगलशासकों, ब्रिटिश हुकूमत के दौर की एक तस्वीर दिखाता है। लेकिन एक ऐसा भी वक्त गुजरा जो नवाबों और बेगमों की हुकूमत यादें ताजा कर देता है। रियासतकालीन वो समय जब अकेली भोपाल रियासत ही नहीं, बल्कि देशभर में आमतौर पर महिलाओं का घर से बाहर निकलना सही नहीं माना जाता था। लेकिन भोपाली रियासत में बेगमों का शासन इतिहास बना। इसी दौर में सामने आई नवाबी परिवार की वो शहजादी जिसके किस्से महिलाओं को प्रेरित करने वाले बने। patrika.com पर इंकलाबी शहजादी आबिदा सुल्तान की शख्सियत बयां करते रोचक किस्से...

यूं खास हो चली थी आबिदा की शख्सियत

आम महिलाओं से इतर एक साहसी, निडर स्वभाव से भरी इस नवाबी शहजादी का नाम है आबिदा सुल्तान। भोपाल के आखरी नवाब हमीदुल्लाह की सबसे बड़ी बेटी। नवाबी परम्परा उनके रहन-सहन में कभी नहीं दिखी और न ही किसी महिला सी नजाकत और शौखियां उनके किरदार में थी। आज ही के दिन 28 अगस्त सन 1913 को नवाबी परिवार में जन्मीं शहजादी आबिदा भले ही पाकिस्तान जा बसीं और वहीं की होकर रह गईं, भारत में विलीन हुई भोपाली रियासत का नाम भोपाल हो गया, लेकिन नवाबी दौर की कहानियां आज भी उनके बिना अधूरी हैं...

नवाब हमीदुल्लाह खान दादी नवाब सुल्तान जहां बेगम के सबसे छोटे बेटे थे और भोपाल रियासत के आखिरी नवाब भी। आबिदा सुल्तान उन्हीं की सबसे बड़ी बेटी थीं। नुर-अल-सबा नाम से महल खास आबिदा सुल्तान के लिए ही बनवाया गया था। जो आज एक होटल में तब्दील हो चुका है।

बेहतरीन खिलाड़ी और एक निडर शिकारी


आबिदा सुल्तान (Abida Sultan) को परिवार में बचपन से ही ऐसी परवरिश मिलीं कि साहस उनके स्वभाव में आ गया था। आपको जानकर हैरानी होगी कि वह एक बेहतरीन खिलाड़ी ही नहीं, बल्कि एक निडर शिकारी भी थीं। लंदन में रहने के दौरान शहजादी आबिदा दक्षिण केन्सिंग्टन में ग्रैम्पियन स्कवाश कोर्ट में महान खिलाड़ी हाशिम खान के रिश्तेदारों वली खान और बहादुर खान के साथ खेलती थीं। 1949 में उन्होंने अखिल भारतीय महिला स्क्वैश चैंपियनशिप भी जीती। हॉकी खेलने का भी उन्हें बेहद शौक था।

घुड़सवारी उनकी रगों में बसी थी। जन्म के कुछ महीने बाद ही वे घुड़सवारी करने लगी थीं। दरअसल नवाबी दौर में परिवार में घुड़सवारी, तलवारबाजी को प्राथमिकता दी जाती थी। गोदी में रहने की उम्र में उन्हें और उनकी बहनों को टोकरियों में लिटाकर घोड़े के ऊपर बांध दिया जाता था और बगीचे के चक्कर लगवाए जाते थे। जब वे बैठने लायक हो गईं, तो बकेट चेयर पर बैठाकर घोड़े से बांध दिया जाता था। यही नहीं इसी उम्र में उन्हें निशानेबाजी सिखाना शुरू कर दिया गया था। उनके पास हमेशा एक बंदूक जरूर रहती थी। वे खिलौना राइफल से मक्खियों पर निशाना बनाकर उन्हें मारती थीं। बड़ी हुईं तो एयरगन से पक्षियों का शिकार करने लगीं। उन्हें और उनकी बहनो को निशानेबाजी का सैन्य अभ्यास कराया गया। इसके लिए वे हर रोज शूटिंग रेंज जाती थीं।

भारत के सबसे बेस्ट पोलो प्लेयर साथ खेला पोलो

घुड़सवारी का क्रेज उन्हें पोलो के मैदान तक ले गया। उन्होंने राजा हनूत सिंह के साथ पोलो खेला। माना जाता है कि वे भारत के इतिहास में सबसे बेहतरीन पोलो खिलाड़ी थे। उनकी निडरता की कहानियां भी हैं। शहजादी आबिदा को उनके पिता नवाब हमीदुल्लाह अपने साथ शिकार पर लेकर जाते थे। उनके बड़े पापा नवाब नसरुल्लाह खान भी एक माहिर शिकारी और बेहतरीन निशानेबाज थे। आबिदा सुल्तान ने शिकार की बारीकियां अपने पिता और बडे़ पापा से सीखी। उनके एक संस्मरण में लिखा है कि अपने जीवन में उन्होंने 73 शेरों का शिकार किया।

नवाबी शान-ओ-शौकत से हमेशा रहीं दूर

नवाबी शान-ओ-शौकत से दूर शहजादी आबिदा सुल्तान के लिए उनके इकलौते बेटे शहरयार ने लिखा है कि उनकी शख्सियत ऐसी थी कि वे हमेशा आगे बढ़ना चाहती थीं, एक महिला होने के बावजूद उन्होंने अपने रास्ते खुद चुने और उन पर कभी किसी को अड़चन नहीं बनने दिया। जब वे 3 साल के थे तब, उन्होंने अपनी मां को देखा उनके छोटे-छोटे कटे हुए बाल, कोट और पतलून पहनती थीं। उन्हें बाद में पता चला कि वो घुड़सवारी की ड्रेस थी। वे लिखते हैं कि वे ऐसे कपड़े पहनती थीं जो अगर कोई पुरुष पहने तो ज्यादा बेहतर लगता। लेकिन उन्हें इस बात की कोई परवाह नहीं थी कि कोई उन्हें ऐसा देखेगा तो कैसा सोचेगा, क्या कहेगा?

शहजादी आबिदा कितनी विद्रोही, उनके साहस का ये किस्सा कर देता है हैरान

शहजादी आबिदा सुल्तान के स्वभाव बगावत और विद्रोह की कहानी भी सुनाता है। एक इंटरव्यू में उन्होंने जिक्र किया कि उनकी दादी ने महज 17 साल की उम्र में कोरवाई को नवाब के साथ उनका निकाह करवा दिया था। उन्होंने बायोग्राफी में बताया है कि 5 मार्च 1933 को उनकी बिदा हुई। 29 अप्रैल 1934 को उन्होंने इकलौते बेटे शहरयार मोहम्मद खान को जन्म दिया था। लेकिन उनकी ये शादी ज्यादा लंबे समय तक नहीं टिक पाई। 10 साल बाद वे अपने बेटे शहरयार को लेकर वापस भोपाल आ गईं। नवाब सरवर अली खान ने वायसराय लॉर्ड विलिंगडन से शिकायत की कि उन्हें उनके बेटे को अपने साथ रखने का कानूनी अधिकार से वंचित किया जा रहा है। कानून के तहत उन्हें अपने उत्तराधिकारी को लेने का अधिकार था। कानूनी लड़ाई चल ही रही थी कि इसी बीच एक वाकया उनके विद्रोही और साहसी स्वभाव का, जो इतिहास में दर्ज हो गया।

एक दिन आबिदा सुल्तान देर रात एक बजे भोपाल से निकल गई और सीधे कोरवाई के महल में पहुंच गईं। उन्होंने अपनी भरी हुई रिवॉल्वर अपने पति की ओर फेंकी और बोलीं- हथियार मेरा है और भरा हुआ भी है, इसका इस्तेमाल करो, मुझे मार डालो, नहीं तो मैं तुम्हें मार डालूंगी। अपने बेटे को तुम इसी तरीके से हासिल कर सकते हो।

आबिदा सुल्तान के इस साहस को देख नवाब सरवर अली खान ने अपने बेटे को वापस पाने की हसरत ही छोड़ दी थी। उसके बाद आबिदा का इकलौता बेटा शहरयार उनके पास ही रह गया।

पिता से झूठ बोलकर पूरा किया पायलट बनने का शौक

आबिदा सुल्तान ने अपनी बायोग्राफी में लिखा है, कि उन्हें हवाबाजी का बेहद शौक था। लेकिन उनके पिता नवाब हमीदुल्ला खान ने उन्हें ऐसा करने से साफ इनकार कर दिया। उनका मानना था कि वह अपनी बेटी की जान खतरे में नहीं डाल सकते। आबिदा को लगा कि उनके पिता उनके इस शौक को कभी पूरा नहीं होने देंगे। और उन्होंने साहसिक कदम उठाया। वे अपने पिता से झूठ बोलकर घर से निकल गईं। उन्होंने लिखा है कि उन्होंने शिकार का बहाना बनाया और कलकत्ता(अब कोलकाता) पहुंच गईं। वहां एक लोकल फ्लाइंग क्लब में एडमिशन ले लिया।

वे कलकत्ता में हवाईजहाज उड़ाना सीखती रहीं और यहां भोपाल में नवाब हमीदुल्ला उन्हें लेकर परेशान हो गए, उन्होंने आबिदा को पूरे भारत में तलाशा, लेकिन उनका कहीं पता नहीं चल सका। लेकिन साहबजादे सईद जफर खान ने उन्हें ढूंढ निकाला। लेकिन आबिदा सुल्तान को यहां वापस लाने के बजाय उन्होंने हमीदुल्लाह को सूचना दी कि वे शहजादी को विमानन प्रशिक्षण जारी रखने की अनुमति दें, क्योंकि उन्होंने ऐसा कोई काम नहीं किया है, जो किसी भी तरह गलत या बुरा हो। तब नवाब हमीदुल्लाह ने उन्हें फ्लाइंग ट्रेनिंग पूरी करने की अनुमति दी। एक साल में शहजादी आबिदा सुल्तान बॉम्बे फ्लाइंग क्लब से भारत की लाइसेंस प्राप्त करने वाली दूसरी महिला और देश की पहली मुस्लिम महिला पायलट बनीं। उन्हें 25 जनवरी 1942 को उड़ान का लाइसेंस मिला था। जबकि इनसे पहले सरला ठकराल 1936 में भारत की पहली महिला पायलट बनी थीं।

वेस्टर्न अंदाज या एडवेंचर थे शौक लेकिन, धार्मिक माहौल में हुई परवरिश

शहरयार के एक संस्मरण से यह भी पता चलता है कि, सरकार अम्मा यानी आबिदा सुल्तान की दादी उनकी मां को एक आदर्श मुस्लिम महिला के तौर पर प्रशिक्षित करना चाहती थीं। वह उन्हें रोज सुबह 4 बजे उठातीं कुरान की तिलावत करवाती थीं। सही उच्चारण न करने पर उन्हें मार भी खानी पड़ी। लेकिन इसका नतीजा ये रहा कि केवल 6 साल की उम्र में उन्होंने पूरा कुरान-ए-पाक जुबानी याद कर लिया था।

70 साल की उम्र में भी करती थीं स्विमिंग, खेलती थीं टेनिस


शहजादी आबिदा सुल्तान ने 1980 के दशक से अपनी डायरियों को संस्मरण में संजोना शुरू किया। जो 2002 में उनकी मृत्यु से डेढ़ महीने पहले ही पूरे हुए थे। उनमें से एक संस्मरण बताता है कि उन्होंने 70 साल उम्र में भी न स्वीमिंग छोड़़ी न ही खेलना। वे टेनिस खेलती थीं और निशानेबाजी का शौक रखती थीं। जिंदगी के आखिरी पल भी उन्होंने युवाओं के साथ शतरंज, टेनिस खेलते बिताए। बता दें कि उनका यही संस्मरण 2004 में मेमोरीज ऑफ ए रिबेल प्रिसेंस के नाम से अंग्रेजी और आबिदा सुल्तान: एक इंकलाबी शहजादी की खुदनविश्त के नाम से 2007 में उर्दू में प्रकाशित हुआ।

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