
भीमा विवाह की परंपरा (Photo source- Patrika)
CG Bhima Marriage: भीमा विवाह एक अनोखी ग्रामीण परंपरा है, जो खासतौर पर छत्तीसगढ़ और मध्य भारत के कुछ आदिवासी इलाकों में बड़े उत्साह के साथ मनाई जाती है। यह आयोजन गांव की सामूहिक आस्था, लोक संस्कृति और प्रकृति के प्रति कृतज्ञता का प्रतीक है। ग्रामीण मान्यता है कि भीमा विवाह के आयोजन से वर्षा संतुलित होती है, फसलें लहलहाती हैं और गांव में सुख-समृद्धि आती है। धार्मिक आस्था और सामाजिक एकजुटता से जुड़ा यह पर्व सामूहिक उत्सव और लोकविश्वास की जीवंत मिसाल है।
यह एक अनुष्ठानिक विवाह है, जिसमें असली दूल्हा-दुल्हन नहीं होते, बल्कि भीमा (कभी-कभी मिट्टी, लकड़ी या प्रतीकात्मक रूप से बनाए गए पुतले/प्रतिमाएं) का विवाह कराया जाता है। आयोजन ग्राम्य समाज की आस्था और सामूहिक विश्वास का प्रतीक होता है। ग्रामीण मानते हैं कि इस विवाह से इंद्र देव प्रसन्न होते हैं, वर्षा संतुलित होती है और फसलें लहलहाती हैं।
तारीख और स्थल का चयन
गांव के बुजुर्ग और पंच मिलकर शुभ दिन तय करते हैं।
आयोजन प्रायः बरसात शुरू होने से पहले या मध्य में किया जाता है।
प्रतीकात्मक दूल्हा-दुल्हन
मिट्टी, लकड़ी या केले के पेड़/पौधे से भीमा (दूल्हा) और दुल्हन का प्रतीक बनाया जाता है।
कहीं-कहीं अनाज की बोरी, लकड़ी या मिट्टी की मूर्तियों को भी दूल्हा-दुल्हन का रूप देकर सजाया जाता है।
विवाह की तैयारियाँ
पूरे गांव के लोग एकत्र होकर विवाह की तैयारी करते हैं।
ढोल-नगाड़ों और पारंपरिक वाद्य यंत्रों की धुन बजाई जाती है।
महिलाएँ पारंपरिक गीत गाती हैं।
पंडित/ग्राम पुजारी द्वारा अनुष्ठान
स्थानीय पुजारी या गुनिया (गांव का परंपरागत धार्मिक प्रमुख) मंत्रोच्चार और विधिवत विवाह कराता है।
हल्दी, चावल, फूल और नारियल जैसी सामग्री का प्रयोग होता है।
सामूहिक भागीदारी
हर परिवार इसमें अंशदान देता है—चावल, दाल, सब्जी या धन।
विवाह के बाद सामूहिक भोज (भोजली/भोज) का आयोजन होता है।
विश्वास और मान्यता
ग्रामीण मानते हैं कि इस विवाह से प्रकृति प्रसन्न होती है, वर्षा समय पर और संतुलित होती है।
फसल अच्छी होती है और गांव में खुशहाली आती है।
सांस्कृतिक रंग
आयोजन में नृत्य, गीत और लोकनाट्य भी शामिल होते हैं।
यह सिर्फ धार्मिक नहीं बल्कि सामाजिक मेलजोल और उत्सव का भी प्रतीक है।
आयोजन के समय महिलाएँ सोहर और विवाह गीत गाती हैं, जैसे असली शादी में गाए जाते हैं।
गीतों में इंद्र देवता, ग्राम देवी-देवता और प्रकृति से प्रचुर वर्षा और खुशहाली की कामना की जाती है।
ढोलक, मंजीरा, तुरही और नगाड़ों की ताल पर पुरुष मंडली पारंपरिक नृत्य करती है।
कई बार झूमर और राउत नाचा जैसे लोकनृत्य भी इस मौके पर किए जाते हैं।
वर्षा का संतुलन: माना जाता है कि भीमा विवाह से इंद्र देव प्रसन्न होते हैं और गांव में समय पर पर्याप्त वर्षा होती है।
खेती में उन्नति: फसलें अच्छी होती हैं और टिड्डी, कीट या प्राकृतिक आपदाओं से बचाव होता है।
गांव में सुख-शांति: अनुष्ठान से आपसी भाईचारा और गांव में एकजुटता बढ़ती है।
प्रकृति की प्रसन्नता: माना जाता है कि इस आयोजन से धरती माता और प्रकृति हरी-भरी रहती हैं।
संकट निवारण: अकाल, सूखा या बीमारियों जैसी विपत्तियों से मुक्ति पाने के लिए भी यह विवाह कराया जाता है।
धार्मिक दृष्टि से– देवताओं को प्रसन्न करने और प्रकृति के संतुलन के लिए।
सामाजिक दृष्टि से– गांव के सभी लोग एक साथ मिलकर इसे संपन्न करते हैं, जिससे सामूहिकता और भाईचारा बढ़ता है।
कृषि परंपरा से जुड़ाव– मान्यता है कि भीमा विवाह के आयोजन से अच्छी वर्षा होती है और खेती सफल होती है।
सांस्कृतिक धरोहर– यह आयोजन ग्रामीण जीवन की परंपराओं और रीति-रिवाजों का जीता-जागता उदाहरण है।
Updated on:
21 Aug 2025 05:46 pm
Published on:
21 Aug 2025 05:45 pm
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